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तेलंगाना बनाम आंध्र प्रदेश: बनाकाचेरला परियोजना को लेकर गहराया जल विवाद, दिल्ली में सीएम स्तर की बैठक से पहले तेलंगाना का विरोध

Telangana vs Andhra Pradesh: Water dispute deepens over Banakacherla project, Telangana protests before CM level meeting in Delhi

भूमिका: तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच जल बंटवारे पर नई जंग

16 जुलाई 2025 को दिल्ली में होने जा रही तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की महत्वपूर्ण बैठक से ठीक एक दिन पहले विवाद गहराता नजर आ रहा है। बैठक में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल की मौजूदगी भी प्रस्तावित है, लेकिन उससे पहले तेलंगाना सरकार ने आंध्र प्रदेश द्वारा बैठक में उठाए गए एजेंडे पर कड़ा ऐतराज जताया है।

तेलंगाना सरकार ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ‘बनाकाचेरला’ परियोजना पर चर्चा का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि यह परियोजना अवैध, अप्रासंगिक और अनधिकृत है। इसके साथ ही राज्य सरकार ने केंद्र को चेताया है कि यदि इस तरह की योजनाओं को केंद्र द्वारा गंभीरता से लिया जाता है तो इससे न केवल संवैधानिक संस्थाओं की साख पर असर पड़ेगा, बल्कि जल विवाद समाधान की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े होंगे।


1. क्या है बनाकाचेरला परियोजना?

बनाकाचेरला एक प्रस्तावित जल परियोजना है जो कृष्णा नदी बेसिन में स्थित है और आंध्र प्रदेश द्वारा विकसित की जा रही है। यह परियोजना तेलंगाना की सीमाओं के पास प्रस्तावित है और इसका उद्देश्य कथित तौर पर सिंचाई और पेयजल आपूर्ति को बेहतर बनाना है।

हालांकि, इस परियोजना को न तो केंद्रीय जल आयोग (CWC) से मंजूरी मिली है, न ही गोदावरी नदी प्रबंधन बोर्ड (GRMB) या विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) जैसी नियामक संस्थाओं से स्वीकृति मिली है। इसके बावजूद आंध्र प्रदेश ने इसे सीएम-स्तरीय बैठक के एकमात्र एजेंडे के रूप में प्रस्तुत किया।


2. तेलंगाना सरकार की आपत्ति: कानूनी और नीतिगत आधार

तेलंगाना सरकार ने 15 जुलाई को केंद्र को एक पत्र भेजा, जिसमें स्पष्ट किया गया कि वह बनाकाचेरला परियोजना को चर्चा योग्य विषय नहीं मानती। पत्र में निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया गया:

  • यह परियोजना किसी भी कानूनी अनुमति या पर्यावरणीय मंजूरी के बिना प्रस्तावित है।
  • GRMB, CWC और EAC जैसी शीर्ष संस्थाओं ने इस परियोजना को लेकर गंभीर आपत्तियाँ दर्ज की हैं।
  • परियोजना का ट्रिब्यूनल निर्णयों और अंतरराज्यीय जल वितरण कानूनों का उल्लंघन है।
  • इस तरह के प्रस्तावों पर विचार करने से संवैधानिक संस्थाओं की वैधता कमजोर होती है।

तेलंगाना सरकार का कहना है कि यदि केंद्र सरकार इस एकतरफा एजेंडे को बैठक का हिस्सा बनाती है, तो इससे राज्यों के बीच विश्वास की कमी और राजनीतिक तनाव और अधिक बढ़ेगा।


3. तेलंगाना की मांग: लंबित और वैध मुद्दों पर हो चर्चा

तेलंगाना सरकार ने केंद्र को जो आधिकारिक एजेंडा भेजा है, उसमें कई महत्वपूर्ण और पूर्व-स्वीकृत परियोजनाओं पर चर्चा की मांग की गई है। इनमें प्रमुख हैं:

क. पल्लमूर-रंगारेड्डी और डिंडी परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा

तेलंगाना सरकार की प्रमुख मांगों में ये दोनों परियोजनाएं हैं, जिन्हें पूर्व में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय परियोजनाओं के रूप में मान्यता देने का आश्वासन दिया था। इन परियोजनाओं से दक्षिण तेलंगाना के सूखा प्रभावित जिलों को राहत मिलने की उम्मीद है।

ख. प्रणहिता परियोजना के लिए 80 टीएमसी पानी का आवंटन

तेलंगाना सरकार ने केंद्र से आग्रह किया है कि वह थुम्मडीहेट्टी में स्थित प्रणहिता परियोजना के लिए 80 टीएमसी पानी आवंटित करे। यह एक दीर्घकालिक योजना है जिसे पर्यावरणीय और तकनीकी रूप से स्वीकृति मिलने की प्रतीक्षा है।

ग. इचम्पल्ली में 200 टीएमसी बाढ़ जल के उपयोग की नई योजना को मंजूरी

तेलंगाना सरकार ने कृष्णा और गोदावरी नदी में बाढ़ के समय बह जाने वाले पानी का बेहतर उपयोग करने के लिए इचम्पल्ली पर एक नई परियोजना का प्रस्ताव दिया है, जिससे लगभग 200 टीएमसी पानी का संचयन और वितरण संभव होगा।


4. तेलंगाना बनाम आंध्र प्रदेश: जल विवाद की पृष्ठभूमि

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच जल बंटवारा 2014 में राज्य पुनर्गठन के बाद से ही एक जटिल और विवादास्पद विषय बना हुआ है। कृष्णा और गोदावरी नदियों के जल को लेकर कई बार टकराव की स्थिति बनी है।

मुख्य विवाद:

  • कृष्णा नदी का बंटवारा: दोनों राज्य कृष्णा बेसिन से अधिक पानी लेने की मांग करते हैं, जबकि मौजूदा आवंटन 2015 के अस्थायी समझौते पर आधारित है।
  • अनधिकृत परियोजनाएं: तेलंगाना बार-बार आंध्र प्रदेश पर आरोप लगाता रहा है कि वह जल आयोग की मंजूरी के बिना परियोजनाएं शुरू करता है।
  • बोर्ड की सीमित भूमिका: GRMB जैसी एजेंसियों के अधिकार और आदेशों को राज्य सरकारें मानने को तैयार नहीं होतीं, जिससे विवाद और बढ़ता है।

5. केंद्रीय जल शक्ति मंत्री की भूमिका और केंद्र की चुनौती

सीआर पाटिल के नेतृत्व में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय इस विवाद के मध्यस्थ की भूमिका में है। केंद्र की जिम्मेदारी है कि वह दोनों राज्यों के बीच संतुलित, कानूनी और व्यावहारिक समाधान निकाले। हालांकि तेलंगाना सरकार द्वारा भेजा गया विरोध पत्र केंद्र पर पक्षपात और प्राथमिकता के चयन को लेकर सवाल खड़े कर रहा है।

तेलंगाना का मानना है कि यदि केंद्र केवल आंध्र प्रदेश के प्रस्ताव को प्राथमिकता देता है और उसके अवैध प्रस्तावों को चर्चा के लिए स्वीकार करता है, तो इससे संघीय ढांचे की साख को नुकसान पहुंचेगा।


6. आंध्र प्रदेश की रणनीति: क्या है बनाकाचेरला परियोजना की असल मंशा?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आंध्र प्रदेश की ओर से बनाकाचेरला परियोजना को बैठक के एकमात्र एजेंडे के रूप में रखना एक रणनीतिक चाल हो सकती है:

  • यह परियोजना यदि मंजूरी पा जाती है, तो आंध्र प्रदेश को कृष्णा बेसिन से और अधिक जल संसाधन मिलेंगे।
  • यह तेलंगाना की कुछ परियोजनाओं पर प्रभाव डाल सकती है, जिससे राजनीतिक लाभ उठाया जा सकता है।
  • चंद्रबाबू नायडू सरकार इस बैठक का उपयोग अपनी “प्रोजेक्ट-फर्स्ट” नीति को उजागर करने के लिए कर सकती है।

7. विशेषज्ञों की राय: जल विवादों को कैसे सुलझाया जाए

भारत में जल विवाद कोई नई बात नहीं है। कावेरी, रावी-ब्यास और यमुना जल बंटवारे के मामले वर्षों से चले आ रहे हैं। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि राजनीतिक इच्छाशक्ति हो और नियामक संस्थाओं की भूमिका को मजबूत किया जाए, तो समाधान संभव है।

डॉ. टी. हनुमंत राव (जल संसाधन विशेषज्ञ):

“यदि बनाकाचेरला जैसी परियोजनाओं को बिना विधिक मंजूरी के चर्चा का विषय बनाया जाता है, तो यह देश में जल विवादों को और जटिल बना देगा।”


8. निष्कर्ष: क्या सीएम बैठक से निकलेगा हल या विवाद और गहराएगा?

16 जुलाई की बैठक अब बेहद संवेदनशील मोड़ पर आ चुकी है। तेलंगाना के विरोध के बाद सवाल उठता है — क्या यह बैठक जल विवादों को सुलझाएगी या और अधिक राजनीतिक ध्रुवीकरण पैदा करेगी?

जहां एक ओर आंध्र प्रदेश बनाकाचेरला परियोजना को प्राथमिकता देने की कोशिश कर रहा है, वहीं तेलंगाना अपने वैध और लंबित मुद्दों को प्रमुखता देने की मांग कर रहा है। ऐसे में केंद्र की भूमिका निर्णायक हो जाती है।


अंत में, भारत जैसे संघीय लोकतंत्र में नदी जल साझा करना केवल एक तकनीकी या इंजीनियरिंग का विषय नहीं है, बल्कि यह राज्यों के अधिकार, लोगों की जीविका, और राजनीतिक समझ का भी प्रतीक है। यदि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर पारदर्शिता, वैज्ञानिक आंकड़ों और निष्पक्ष नियामक तंत्र के आधार पर समाधान निकालें, तो यह न केवल तेलंगाना-आंध्र विवाद का हल देगा, बल्कि देश के अन्य जल विवादों के लिए भी एक मॉडल बन सकता है।

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