ऐतिहासिक मुलाक़ात: नेहरू–दलाई लामा, 1959
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दलाई लामा के 90वें जन्मदिन (6 जुलाई) पर याद दिलाया कि 24 अप्रैल 1959 को मुस्सोड़ीरी में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और दलाई लामा के बीच एक लगभग चार घंटे लंबा संवाद हुआ था।
इस समय के दौरान केवल विदेश सचिव सुबिमल दत्त और अनुवादक उपस्थित थे।
शरणार्थी प्रवास: मुस्सोड़ीरी से दार्जिलिंग तक
- उस वार्तालाप के कुछ ही हफ्तों बाद, दलाई लामा ने देशभर का भ्रमण किया ।
- भारत में उनका स्थायी ठिकाना 31 मार्च 1959 से शुरू हुआ।
- इसके बाद उन्होंने धर्मशाला (तिब्बती निर्वासित सरकार का सीट), बाइलकुप्पे, मुंडगोड, हुन्सुर (कर्नाटक में) जैसे स्थानों पर बस्तियां बनाई ।
‘Voice for the Voiceless’ – नई आत्मकथा
दलाई लामा ने मार्च 2025 में अपनी पुस्तक Voice for the Voiceless प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने अपनी ज़िंदगी, संघर्ष और तिब्बती समुदाय की यात्रा पर गहराई से विचार प्रस्तुत किए।
वैश्विक श्रद्धा और समर्थन
- धर्मशाला में 90वां जन्मदिन मनाने के दौरान वैश्विक नेता जमकर पहुंचे। जैसे, पीएम नरेंद्र मोदी, अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, जॉर्ज डब्ल्यू. बुश, बिल क्लिंटन, तथा ताइवान के राष्ट्रपति ने शुभकामनाएं भेजीं।
- हॉलीवुड अभिनेता रिचर्ड गेर, जो लंबे समय से दलाई लामा का समर्थक रहे हैं, उन्होंने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा, “उन्होंने तिब्बती संस्कृति की आवाज को विश्व स्तर पर गहरा असर दिलाया है”।
- मध्य-पूर्व, अमेरिका और एशिया में लोकतांत्रिक भाषणों ने भी उनकी भूमिका को सराहा ।
संवेदनशीलता वापस भारत
- दलाई लामा ने 130 वर्ष से लंबा जीवन जीने की आशा जाहिर की, साथ में संवैधानिक हिंदुत्व की सेवा करने की प्रतिबद्धता दोहराई ।
- उन्होंने स्पष्ट किया कि गाडेन फोड्रांग ट्रस्ट ही उनके उत्तराधिकारी को चुनने का अधिकार रखता है—इससे चीन में राजनीतिक तनाव बढ़ गया क्योंकि वह स्वयं को इस प्रक्रिया का अधिकारी मानता है ।
- इस निर्णय से चीन-तिब्बत मामले में भारत और विश्व समुदाय के बीच जबरदस्त नैतिक-राजनीतिक समर्थन बनकर उभरा है ।
भावनात्मक पुनरुच्चार: नेहरू के साथ संवाद का असर
- Jairam Ramesh ने कहा कि उस चार घंटे की बातचीत ने एक नए अध्याय की शुरुआत की—जिसमें सार्वजनिक रूप से दलाई लामा को भारतवर्ष में शरण देने तथा तिब्बती विमुक्ति आंदोलन को जोड़ने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- इस घटना ने भारत को ग्लोबल नैतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया—हिमालय की शांतिपूर्ण धरती ने अतिथि देवो भवः की नीति निभाई।
तिब्बती जीवन की रीइमेशन्ट: Mussoorie व Dharamsala
- दलाई लामा का मुस्सोड़ीरी में पहला ठहराव एक निर्णायक काल था — वह भारत के उच्चतम ताज़े अनुभवों और कूटनीतिक सहारा प्राप्तिबिंदु बने ।
- धरमशाला में उनका आवास एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बन गया, जो विश्वभर के तिब्बती समुदाय की आत्मा बनकर उभरा ।
नया अध्याय: उत्तराधिकारी और पुनर्जन्म
- दलाई लामा ने पुनर्जन्म जारी रखने की घोषणा की और स्पष्ट किया कि उनकी संस्था ही इसका निर्णय करेगी, न कि चीन ।
- चीन ने इसे राजनीतिक कटुता बताया, जबकि अन्य देशों ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता का एक सक्रिय कदम माना ।
अंतर्निहित संदेश
इस सब से क्या स्पष्ट होता है?
- भारत ने मानवीय मूल्यों का उज्जवल उदाहरण प्रस्तुत किया
- नेहरू–दलाई लामा वार्तालाप ने द्विपक्षीय नीति को वैश्विक चेतना के साथ जोड़ दिया
- Voice for the Voiceless पुस्तक ने जीवन संघर्षों को गहराई से रूshaled किया
- दलाई लामा की उत्तराधिकारी नीति ने तिब्बती आत्मनिर्णय में नए आयाम दिए
- विश्व समुदाय ने उनके 90वें जन्मदिन को एक वैश्विक एकता संदेश की तरह मनाया
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