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दलाई लामा का पुनर्जन्म: तिब्बत की आत्मा और चीन की सांस्कृतिक सत्ता पर चोट

Reincarnation of Dalai Lama: A blow to the soul of Tibet and the cultural power of China

भूमिका
जैसे ही 14वें दलाई लामा, तेनज़िन ग्यात्सो, धरती पर अपने 90वें वर्ष में प्रवेश करते हैं, तिब्बती समुदाय और दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों के लिए यह सिर्फ एक व्यक्तिगत मील का पत्थर नहीं है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक और राजनीतिक मोड़ भी है। तेनज़िन ग्यात्सो द्वारा स्वयं के पुनर्जन्म की घोषणा ने तिब्बत पर चीन की पकड़, विशेषकर हान जातीय प्रभाव और सैन्य कब्जे के विस्तार को गहरी चुनौती दे दी है।

इस निर्णय के साथ दलाई लामा ने न केवल पुनः अपने संस्थान को जीवित किया है, बल्कि छः मिलियन तिब्बती बौद्धों को भी आशा की एक किरण दी है, जो पिछले 75 वर्षों से चीनी शासन के अधीन जीवन व्यतीत कर रहे हैं।


पुनर्जन्म की परंपरा और उसका ऐतिहासिक आधार

दलाई लामा संस्था की शुरुआत वर्ष 1578 में मानी जाती है, जब तीसरे दलाई लामा सोनम ग्यात्सो और मंगोल शासक अल्तान खान के बीच एक धार्मिक-सांस्कृतिक समझौता हुआ। माना जाता है कि दलाई लामा करुणा के बोधिसत्व अवलोकितेश्वर (Avalokiteshvara) का अवतार होते हैं।

पुनर्जन्म की प्रक्रिया कोई साधारण विश्वास नहीं, बल्कि गहन धार्मिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया है। इसमें संकेत, स्वप्न, और पिछले अवतार की वस्तुओं को पहचानने जैसी परंपराएं शामिल होती हैं। हालांकि 1792 में किंग राजवंश ने एक राजनीतिक साधन के रूप में “गोल्डन अर्न प्रणाली” लागू की थी, परंतु तिब्बती समुदाय ने इसे कभी स्वेच्छा से स्वीकार नहीं किया। स्वयं 14वें दलाई लामा का चयन भी इस प्रणाली के अंतर्गत नहीं हुआ था।


🇨🇳 चीन की दलाई लामा संस्था पर पकड़ बनाने की साजिश

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) तिब्बत पर सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभुत्व कायम रखने के लिए दलाई लामा संस्था को निष्क्रिय करना चाहती है। चीन का अनुमान था कि 14वें दलाई लामा के निधन के बाद यह संस्था धीरे-धीरे इतिहास बन जाएगी।

बीजिंग ने 2007 में एक कानून पारित किया, जिसके अनुसार सभी पुनर्जन्मों के लिए सरकारी स्वीकृति अनिवार्य है। इसका उद्देश्य तिब्बती बौद्ध नेतृत्व को अपनी मुट्ठी में लेना है।

लेकिन दलाई लामा ने इस व्यवस्था को आध्यात्मिक स्वायत्तता पर सीधा आक्रमण बताया और स्पष्ट किया कि पुनर्जन्म न तो चीन के कानून से संचालित होगा और न ही उनके ‘गोल्डन अर्न’ से। इससे चीन की सांस्कृतिक साज़िश पर पानी फिर गया।


पुनर्जन्म की घोषणा: चीन को कूटनीतिक झटका

दलाई लामा ने यह स्पष्ट किया है कि उनका अगला जन्म चीनी नियंत्रण वाले तिब्बत में नहीं, बल्कि किसी स्वतंत्र भूमि (संभावित रूप से भारत में) होगा। इससे यह तय होता है कि 15वें दलाई लामा को चीन की अनुमति या हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होगी।

उनकी घोषणा कि पुनर्जन्म की प्रक्रिया गदेन फोडरंग ट्रस्ट द्वारा संचालित की जाएगी, एक निर्णायक रणनीति है। यह ट्रस्ट, जिसकी अगुवाई उनके गुरु समदोंग रिनपोछे कर रहे हैं, भारत के धर्मशाला में स्थित है और तिब्बती निर्वासित समुदाय द्वारा संचालित होता है।

यह स्पष्ट संदेश है कि अगला दलाई लामा न केवल तिब्बती निर्वासित समुदाय द्वारा स्वीकृत होगा, बल्कि पूरी दुनिया के बौद्ध समाज द्वारा भी उसे मान्यता मिलेगी। इसने चीन के उस सपने को तोड़ दिया है कि वह एक ‘पेपेट’ दलाई लामा स्थापित करेगा।


पंचेन लामा विवाद और उसकी छाया

1995 में 14वें दलाई लामा ने 6 वर्षीय गेधुन चोएक्यी न्यिमा को पंचेन लामा घोषित किया था, लेकिन जल्द ही वे चीन में गायब हो गए। आज तक उनका कोई अता-पता नहीं है। इसके विपरीत, चीन ने ग्याल्त्सेन नोरबु नामक एक बालक को पंचेन लामा घोषित कर रखा है, जो चीनी शासन का समर्थन करता है।

6 जून 2025 को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ग्याल्त्सेन नोरबु से मुलाकात की — यह दर्शाता है कि चीन अब इस ‘सरकारी पंचेन लामा’ के ज़रिए भविष्य में अपना स्वयं का ‘दलाई लामा’ चुनवाने की साज़िश रच सकता है।

लेकिन तिब्बती समुदाय और वैश्विक बौद्ध धर्मावलंबियों ने स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें चीन के किसी भी नियुक्ति को मान्यता नहीं मिलेगी।


अगले दलाई लामा की खोज: संभावनाएं और रणनीति

भारत, नेपाल, भूटान और मंगोलिया में खोज:

दलाई लामा ने कहा है कि उनका पुनर्जन्म स्वतंत्र बौद्ध बहुल इलाकों में खोजा जाएगा – विशेषकर भारत के हिमालयी क्षेत्रों, नेपाल, भूटान या मंगोलिया में। इन क्षेत्रों में तिब्बती समुदायों की मजबूत उपस्थिति है और चीन का कोई हस्तक्षेप नहीं है।

महिला दलाई लामा की संभावना:

दलाई लामा ने कई बार यह संकेत दिया है कि अगला दलाई लामा एक महिला भी हो सकती हैं, बशर्ते वह समाज के लिए अधिक प्रभावी सिद्ध हों।

“एमनेशन” या जीवित रहते उत्तराधिकारी घोषित करना:

14वें दलाई लामा ने यह भी कहा है कि वे जीवित रहते हुए ही अपने उत्तराधिकारी को ‘जन्म लेने वाला अवतार’ के रूप में पहचान सकते हैं। यह रणनीति चीनी हस्तक्षेप की किसी भी संभावना को समाप्त कर सकती है।


आध्यात्मिक बनाम राजनीतिक नेतृत्व की स्पष्टता

दलाई लामा ने 2011 में अपने राजनीतिक अधिकारों का हस्तांतरण केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सिक्योंग को कर दिया था। इससे दलाई लामा की भूमिका अब विशुद्ध रूप से आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नेता की बन गई है।

इससे यह संदेश गया कि तिब्बती आंदोलन अब एक संस्थागत लोकतांत्रिक ढांचे पर आधारित है, न कि केवल किसी व्यक्तिगत नेतृत्व पर।


भविष्य की राजनीति: दो दलाई लामा और वैश्विक मान्यता की लड़ाई

चीन द्वारा नियंत्रित ‘सरकारी’ दलाई लामा:

चीन अपने सरकारी पंचेन लामा और गोल्डन अर्न प्रणाली के माध्यम से अपना ‘दलाई लामा’ घोषित करेगा, जो पूरी तरह से राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित होगा।

गदेन फोडरंग द्वारा घोषित ‘वास्तविक’ दलाई लामा:

विश्व बौद्ध समुदाय और निर्वासित तिब्बती सरकार द्वारा घोषित 15वें दलाई लामा को वैश्विक मान्यता प्राप्त होगी।

यह संघर्ष उसी प्रकार का होगा जैसा आज पंचेन लामा के दो रूपों में देखा जा रहा है — एक चीन समर्थित, दूसरा दलाई लामा द्वारा मान्यता प्राप्त और लापता।


अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और चीन के लिए संदेश

यह निर्णय केवल तिब्बत या भारत तक सीमित नहीं रहेगा। अमेरिका, यूरोप, जापान, ताइवान और अन्य लोकतांत्रिक देश गदेन फोडरंग द्वारा घोषित उत्तराधिकारी को ही मान्यता देंगे। इससे चीन के सांस्कृतिक प्रभुत्व की नीति पर वैश्विक चोट पहुंचेगी।

दलाई लामा की यह घोषणा केवल एक धार्मिक निर्णय नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक प्रतिरोध है — चीन के सैन्य, सांस्कृतिक और राजनीतिक विस्तारवाद के विरुद्ध।


निष्कर्ष: तिब्बत की आत्मा जीवित है

जब तक दलाई लामा संस्था जीवित है, तिब्बत की आत्मा भी जीवित है। चीन भले ही अपने कब्जे को सैन्य और आर्थिक दृष्टिकोण से पूर्ण मानता हो, लेकिन तिब्बती जनता के दिलों में दलाई लामा ही सर्वोच्च नेता हैं।

तेनज़िन ग्यात्सो ने पुनर्जन्म की घोषणा करके न केवल चीन को चौंकाया है, बल्कि यह भी दिखा दिया है कि संस्कृति, करुणा और आस्था कभी भी किसी भी सत्ता के आगे नहीं झुकती।

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