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उद्धव-राज ठाकरे की ‘एकता रैली’ पर गरमाई सियासत: विरोधियों ने बताया ‘स्वार्थ की साजिश’, ‘हिन्दू विरोधी’ तक कह डाला

Politics heats up over Uddhav-Raj Thackeray's 'unity rally': Opponents call it a 'selfish conspiracy', even call it 'anti-Hindu'

मुंबई में बीते शनिवार को महाराष्ट्र की राजनीति का एक ऐतिहासिक क्षण उस समय सामने आया जब दो चचेरे भाई – उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे – करीब 20 साल बाद एक ही मंच पर नजर आए। लेकिन जहां एक ओर शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के समर्थकों ने इसे “मराठी अस्मिता” और “भाईचारे की वापसी” का प्रतीक बताया, वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसके सहयोगियों ने इस मिलन को लेकर कड़ा विरोध जताया।

इस रैली के बाद जिस तरह की राजनीतिक प्रतिक्रियाएं सामने आईं, उससे यह स्पष्ट हो गया कि ठाकरे भाइयों का यह ‘मेल-मिलाप’ सिर्फ एक पारिवारिक भावुकता नहीं, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम है – जिसका असर आने वाले बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव और 2029 के विधानसभा चुनाव तक देखने को मिल सकता है।


नितेश राणे ने कहा – “यह जिहादी सम्मेलन था”

महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और बीजेपी नेता नितेश राणे ने सबसे तीखा हमला बोला। उन्होंने रैली को “जिहादी सम्मेलन” करार देते हुए कहा:

“हम हिन्दू हैं और गर्वित मराठी भी। जैसे जिहादी समाज में फूट डालते हैं, वैसे ही ये लोग महाराष्ट्र में वैमनस्य फैला रहे हैं।”

राणे का यह बयान ANI के हवाले से सामने आया और सोशल मीडिया पर इसकी तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली। उन्होंने ठाकरे भाइयों पर हिंदू समाज को बांटने और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया।


मुंबई बीजेपी अध्यक्ष की नसीहत – “ये भाषा नहीं, वोट appeasement है”

मुंबई बीजेपी अध्यक्ष आशिष शेलार ने इस रैली को “चुनाव के लिए तुष्टीकरण” की रणनीति बताया। उन्होंने कहा:

“भाईचारे की याद इन पार्टियों को तब क्यों आई जब चुनाव सिर पर हैं? ये रैली भाषा प्रेम के लिए नहीं, वोटबैंक appeasement के लिए थी।”

शेलार ने अपने X (पूर्व ट्विटर) पोस्ट में तंज कसते हुए उद्धव ठाकरे की पार्टी को “उबाठा सेना” कहा – जो कि ‘उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ का मजाक उड़ाने के लिए इस्तेमाल किया गया शब्द है। उन्होंने लिखा:

“BMC चुनाव करीब है, इसलिए अब इन्हें भाईचारा याद आ रहा है… जो इन्होंने कभी निभाया ही नहीं।”


बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुंगंटीवार ने जताई शुभकामनाएं

जहां अधिकतर बीजेपी नेताओं ने आलोचना की, वहीं पूर्व मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता सुधीर मुनगंटीवार ने नरम रुख अपनाया। उन्होंने कहा:

“अगर ठाकरे भाई एक हो रहे हैं तो यह अच्छी बात है। उन्हें साथ रहना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो दोनों दलों को विलय पर भी विचार करना चाहिए। हम उन्हें शुभकामनाएं देते हैं।”

मुंगंटीवार की यह प्रतिक्रिया बताती है कि बीजेपी के भीतर भी इस घटनाक्रम को लेकर राय एकसमान नहीं है। कुछ नेता इसे राजनीतिक खतरे के बजाय सामाजिक समरसता के रूप में देख रहे हैं।


चिराग पासवान ने लगाया ‘स्वार्थ और खोई ज़मीन’ का आरोप

केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान ने ठाकरे भाइयों के मिलन को “स्वार्थ की राजनीति” करार दिया। उन्होंने कहा:

“यह मिलन भाषा के लिए नहीं, बल्कि अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने के लिए है।”

चिराग ने विशेष रूप से राज ठाकरे के उस बयान पर नाराजगी जताई, जिसमें उन्होंने कहा था कि “हिंदी भाषी राज्य महाराष्ट्र से पिछड़ गए हैं”। चिराग पासवान ने पलटवार करते हुए कहा:

“भारत का संविधान हमें देश के किसी भी कोने में रहने और किसी भी भाषा में बोलने की आज़ादी देता है। मैं हर भाषा का सम्मान करता हूं। लेकिन कुछ राजनीतिक दल अब भाषा के नाम पर भी समाज को बांटने की कोशिश कर रहे हैं।”


शिवसेना और मनसे का पक्ष – ‘महाराष्ट्र फर्स्ट, नफरत नहीं’

हालांकि बीजेपी और उसके सहयोगियों ने इस रैली को ‘हिंदू विरोधी’, ‘स्वार्थी’, और ‘तुष्टिकरण’ की राजनीति बताया, वहीं उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने मंच से साफ किया कि “यह मिलन महाराष्ट्र की संस्कृति, भाषा और गौरव को बचाने के लिए है, न कि किसी के खिलाफ़।”

उद्धव ठाकरे ने कहा:

“हमारे झगड़े राजनीतिक थे, लेकिन अब महाराष्ट्र के लिए हमें साथ आना होगा। भाषा, संस्कृति और अस्मिता की लड़ाई में हम एक हैं।”

राज ठाकरे ने भी इशारों में बीजेपी पर हमला करते हुए कहा:

“कुछ लोग हमें बांटते रहे और सत्ता का मजा लेते रहे। अब हम एक हो गए हैं, ताकि महाराष्ट्र को उसकी ताकत वापस मिल सके।”


निष्कर्ष: सियासी गर्मी का आगाज़

ठाकरे भाइयों का मंच साझा करना सिर्फ एक भावनात्मक क्षण नहीं, बल्कि एक राजनीतिक चुनौती भी है। यह न केवल मुंबई के नगर निगम चुनाव पर असर डालेगा, बल्कि महाराष्ट्र में गठबंधन राजनीति की दिशा भी तय करेगा।

विरोधी जहां इसे ‘आत्मघाती गठबंधन’ बता रहे हैं, वहीं समर्थक इसे ‘मराठी गर्व की वापसी’ मान रहे हैं। अब देखना होगा कि राजनीतिक मजबूरी का यह मेल, चुनावी ज़मीन पर कितना असर डालता है – और क्या वाकई दोनों भाई इस ‘भाईचारे’ को लंबे समय तक निभा पाते हैं या नहीं।

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