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मथुरा विवाद की परतें: श्रीकृष्ण जन्मभूमि बनाम शाही ईदगाह का कानूनी और धार्मिक संघर्ष

Layers of the Mathura dispute: Legal and religious conflict of Sri Krishna Janmabhoomi vs Shahi Idgah

भूमिका

भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक चेतना में मथुरा एक विशेष स्थान रखता है। यह स्थान श्रीकृष्ण जन्मभूमि के रूप में पहचाना जाता है, जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। हालांकि, यही पवित्र भूमि आज कई वर्षों से एक संवेदनशील और जटिल कानूनी विवाद का केंद्र बनी हुई है — श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद

यह विवाद न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर भारत की न्यायपालिका, धार्मिक संस्थाएं, स्थानीय प्रशासन, और सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन भी सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। इस लेख में हम इस मामले के कानूनी घटनाक्रम, विभिन्न याचिकाओं, अदालत के रुख और हालिया घटनाओं का गहराई से विश्लेषण करेंगे।


विवाद की पृष्ठभूमि: क्या है श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह का मामला?

इस विवाद की जड़ें मुगल काल तक जाती हैं। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि मथुरा में स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को मुगल सम्राट औरंगज़ेब के आदेश पर एक प्राचीन कृष्ण मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। उनका कहना है कि यह मस्जिद श्रीकृष्ण के जन्मस्थल पर बनी है और इसे अब हटाया जाना चाहिए।

वर्तमान में, विवादित भूमि पर दोनों धार्मिक स्थल – श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद – एक-दूसरे के पास स्थित हैं।


1968 का समझौता (Compromise Agreement)

वर्ष 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान (जिसे मंदिर का ट्रस्ट माना जाता है) और ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह के बीच एक समझौता हुआ, जिसके अनुसार दोनों धार्मिक स्थल साथ-साथ चल सकते हैं। इस समझौते को स्थानीय अदालत में रजिस्टर्ड भी किया गया था।

हालांकि, वर्तमान याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह समझौता धोखाधड़ीपूर्ण है और कानून की दृष्टि में अमान्य है। उनका कहना है कि समझौता बिना मंदिर के असली ट्रस्टी और श्रद्धालुओं की अनुमति के किया गया और जन्मभूमि की भूमि पर समझौता करने का अधिकार सेवा संस्थान को नहीं था।


वर्तमान कानूनी स्थिति: हाईकोर्ट में लंबित 18 मुकदमे

वर्तमान में, इलाहाबाद हाईकोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह से संबंधित कुल 18 याचिकाएं लंबित हैं। इनमें से अधिकांश याचिकाएं निम्नलिखित मांगें कर रही हैं:

  1. 1968 के समझौते को अमान्य घोषित किया जाए।
  2. शाही ईदगाह मस्जिद को अवैध अतिक्रमण मानते हुए हटाया जाए।
  3. श्रीकृष्ण जन्मभूमि की भूमि को पूरी तरह से मंदिर ट्रस्ट को सौंपा जाए।
  4. श्रद्धालुओं को पूर्ण पूजा अधिकार मिले।

हालिया घटनाक्रम: ‘मस्जिद’ को ‘विवादित ढांचा’ कहने की याचिका खारिज

जुलाई 2024 में, एक याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में आवेदन दायर कर आग्रह किया कि आगे से अदालत की समस्त कार्यवाहियों में “शाही ईदगाह मस्जिद” शब्द के स्थान पर “विवादित ढांचा” शब्द का प्रयोग किया जाए।

हालांकि, न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने इसे यह कहते हुए “इस चरण पर” खारिज कर दिया कि याचिका अभी सुनवाई योग्य नहीं है।

यह स्पष्ट करता है कि अदालत फिलहाल तथ्यों और सबूतों के आधार पर मूल विवाद पर ही केंद्रित है, न कि भाषा और शब्दों के चयन पर।


2023-24 का घटनाक्रम: मुख्य अदालती फैसले और निर्देश

मई 2023:

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की निचली अदालत में लंबित सभी मामलों को अपने अधीन ले लिया।

दिसंबर 2023:

हाईकोर्ट ने कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति की अनुमति दी ताकि शाही ईदगाह परिसर का निरीक्षण किया जा सके।

जनवरी 2024:

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निरीक्षण आदेश पर स्टे (stay) लगा दिया, जिसे बाद में विस्तारित किया गया।


‘राधा रानी को पक्षकार बनाने’ की याचिका भी खारिज

मई 2024 में, एक अनोखी याचिका दायर की गई, जिसमें देवी श्रीजी राधा रानी को एक मुकदमे में संयुक्त पक्षकार बनाने की मांग की गई।

इस याचिका में कहा गया कि श्रीकृष्ण और राधा रानी अविभाज्य देवता हैं और जन्मभूमि की 13.37 एकड़ भूमि पर उनका संयुक्त अधिकार है।

हालांकि, अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा कि “पुराणिक प्रमाण hearsay (श्रुति आधारित) माने जाते हैं और न्यायिक साक्ष्य नहीं होते”


मामले में पक्षकार कौन-कौन?

  1. श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान (मंदिर ट्रस्ट)
  2. श्रीकृष्ण लला विराजमान (भगवान श्रीकृष्ण को स्वयं एक जीवंत इकाई के रूप में मुकदमे में शामिल किया गया है)
  3. ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह
  4. उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड
  5. केंद्र सरकार व राज्य सरकारें (प्रशासनिक पक्षकार)
  6. श्री राधा रानी (अस्वीकृत पक्षकार)

क्या कहता है भारतीय कानून?

“Places of Worship Act, 1991” के तहत, 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थिति थी, उसे यथावत बनाए रखना अनिवार्य है।

हालांकि, याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि:

  • यह कानून राम जन्मभूमि जैसे मामलों पर लागू नहीं होता, और मथुरा का मामला भी इसी श्रेणी में आता है।
  • 1968 का समझौता fraudulent है, अतः इसके आधार पर कोई कानूनी संरक्षण नहीं मिलना चाहिए।
  • यह मामला संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में मिले धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण

मथुरा केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हिंदू भावनाओं का केंद्र है। इस स्थान को लेकर आम जनमानस में गहरी आस्था है। वहीं, मुस्लिम समुदाय इस स्थल को औरंगज़ेब द्वारा स्थापित ऐतिहासिक मस्जिद मानता है और वहां अपनी धार्मिक पहचान को संरक्षित रखना चाहता है।


निष्कर्ष: आगे की राह क्या हो सकती है?

श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद अब केवल एक ऐतिहासिक या धार्मिक मसला नहीं, बल्कि संवैधानिक और विधिक न्याय का परीक्षण बन गया है। यह केस आगे चलकर भारतीय न्यायिक प्रणाली के लिए मंदिर-मस्जिद विवादों की दिशा तय कर सकता है।

भविष्य की संभावनाएं:

  1. सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई में तेजी लाकर कानूनी स्पष्टता दे सकता है।
  2. कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट या पुरातात्विक सर्वेक्षण जैसी प्रक्रियाएं निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं।
  3. समाज के दोनों समुदायों को शांतिपूर्वक और संवाद के साथ समाधान तलाशने की आवश्यकता होगी।

जब तक अंतिम निर्णय नहीं आता, इस भूमि पर चल रही बहसें न केवल धार्मिक ध्रुवीकरण बल्कि भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के लिए भी गंभीर चुनौती पेश कर सकती हैं।

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