भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराना जल विवाद एक बार फिर चर्चा में है, और इस बार कारण बना है हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (PCA) का वह फैसला, जिसमें उसने खुद को पाकिस्तान द्वारा दर्ज मामले की सुनवाई के लिए सक्षम घोषित किया है। भारत ने इस फैसले को स्पष्ट शब्दों में “अवैध और अमान्य” बताया है, और कहा है कि PCA के किसी भी आदेश या निर्णय को वह नहीं मानता, क्योंकि यह संस्था सिंधु जल संधि के उल्लंघन के तहत गठित की गई है।
यह विवाद किशनगंगा (330 मेगावाट) और रैटल (850 मेगावाट) पनबिजली परियोजनाओं से जुड़ा है, जिन पर पाकिस्तान ने 2015-16 में आपत्ति जताई थी और फिर 2016 में एकतरफा रूप से ‘कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ की मांग की थी।
सिंधु जल संधि का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) पर हस्ताक्षर हुए थे। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण जल समझौता है, जिसने दोनों देशों के बीच जल के उपयोग को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए हैं।
- इस संधि के तहत पश्चिमी नदियाँ—सिंधु, झेलम और चेनाब—पाकिस्तान को दी गईं, जबकि पूर्वी नदियाँ—रावी, ब्यास और सतलुज—भारत के अधिकार में आईं।
- हालांकि, भारत को पश्चिमी नदियों पर सीमित उपयोग, जैसे रन-ऑफ-द-रिवर पनबिजली परियोजनाओं की अनुमति मिली।
भारत की किशनगंगा और रैटल परियोजनाएं ऐसी ही परियोजनाएं हैं, जिनमें पानी के प्रवाह को रोककर नहीं बल्कि उसकी गति से टरबाइन चलाकर बिजली उत्पन्न की जाती है, जिससे पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति में कोई ठोस नुकसान नहीं होता।
पाकिस्तान की आपत्ति और ‘कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ की स्थापना
2015 में पाकिस्तान ने किशनगंगा और रैटल परियोजनाओं की कुछ डिज़ाइन विशेषताओं को लेकर आपत्ति जताई थी, और पहले न्यूट्रल एक्सपर्ट की नियुक्ति की मांग की। लेकिन 2016 में उसने अचानक यह मांग वापस लेकर कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन की स्थापना की माँग की।
इस पर विश्व बैंक ने दोहरी प्रक्रिया शुरू कर दी—एक तरफ न्यूट्रल एक्सपर्ट और दूसरी ओर कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन, जिसे भारत ने स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया।
भारत ने हमेशा यही कहा है कि संधि के तहत दो समानांतर रास्ते नहीं चल सकते—या तो मामला न्यूट्रल एक्सपर्ट के पास जाएगा या कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन के पास। पाकिस्तान का यह कदम संधि की धारा IX का उल्लंघन है।
अप्रैल 2024 में भारत का निर्णायक रुख: संधि निलंबित
22 अप्रैल 2024 को पहलगाम आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की हत्या के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कड़े कदम उठाए, जिनमें सबसे बड़ा था—सिंधु जल संधि को निलंबित करने का निर्णय।
23 अप्रैल को विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने ऐलान किया कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता, तब तक यह संधि अस्थायी रूप से निलंबित रहेगी।
भारत ने यह भी कहा कि एक संप्रभु राष्ट्र होने के नाते, वह अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत अपने अधिकार का प्रयोग कर रहा है, और अब वह संधि की किसी भी शर्त का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है।
परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन का ताज़ा फैसला और भारत की प्रतिक्रिया
28 जून 2025 को परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने सर्वसम्मति से फैसला दिया कि भारत द्वारा संधि को निलंबित करने का निर्णय कोर्ट की कार्यक्षमता को प्रभावित नहीं करता, और कोर्ट इस मामले की सुनवाई जारी रख सकता है।
इस पर विदेश मंत्रालय ने तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा:
- यह तथाकथित “पूरक निर्णय” पूरी तरह अवैध है।
- PCA की स्थापना ही संधि के प्रावधानों का उल्लंघन करके की गई थी, इसलिए यह संस्था कानून की दृष्टि में अस्तित्वहीन है।
- भारत इस कोर्ट को कभी कानूनी रूप से मान्यता नहीं देता रहा और इसने कोर्ट की कार्यवाही में कभी भाग नहीं लिया।
- यह फैसला पाकिस्तान द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंचों के दुरुपयोग का एक और प्रयास है।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और चेतावनी
भारत के कदमों से बौखलाए पाकिस्तान ने साफ चेतावनी दी है कि अगर भारत पश्चिमी नदियों के जल प्रवाह में किसी भी तरह की कटौती करता है, तो उसे “युद्ध का कार्य” माना जाएगा।
पाकिस्तानी मंत्रियों ने कहा है कि वे भारत की संधि निलंबन की घोषणा के खिलाफ PCA और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) का रुख करेंगे।
तकनीकी दृष्टिकोण: क्या कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन को अधिकार है?
भारत का कहना है कि:
- संधि की धारा IX के तहत विवाद निवारण की स्पष्ट प्रक्रिया है, और वह प्रक्रिया न्यूट्रल एक्सपर्ट से शुरू होती है।
- पाकिस्तान ने प्रक्रिया के मध्य में रास्ता बदलकर PCA की मांग की, जो कि संधि के खिलाफ है।
- इसलिए PCA का गठन ही संधि का उल्लंघन है, और इसके किसी भी निर्णय की वैधता नहीं है।
दूसरी ओर, पाकिस्तान का दावा है कि उसे संधि में यह अधिकार प्राप्त है, और PCA का निर्णय बाध्यकारी है।
भारत की कूटनीतिक रणनीति
भारत अब सिंधु जल संधि को कूटनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है:
- जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देता रहेगा, तब तक भारत जल संबंधी जिम्मेदारियों से मुक्त रहेगा।
- यह पाकिस्तान पर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दबाव बनाने का तरीका है।
- साथ ही भारत यह भी स्पष्ट कर रहा है कि वह बिना अपनी संप्रभुता पर कोई समझौता किए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात मजबूती से रखेगा।
निष्कर्ष: क्या सिंधु जल संधि का भविष्य अंधकारमय है?
सिंधु जल संधि को दुनिया के सबसे सफल जल समझौतों में माना जाता रहा है, जिसने तीन युद्धों और कई सैन्य संघर्षों के बावजूद दोनों देशों के बीच जल प्रबंधन को स्थिर रखा।
लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में:
- पाकिस्तान का आतंकवाद को लेकर अड़ियल रवैया,
- भारत की बढ़ती जल परियोजनाएं,
- और विश्व मंचों पर दोनों देशों के अलग-अलग रुख ने इस संधि के भविष्य पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि:
- क्या पाकिस्तान भारत के आरोपों पर आत्मचिंतन करता है?
- या फिर यह विवाद और अधिक अंतरराष्ट्रीय मंचों पर फैलता है?
एक बात तो तय है—अब भारत “धैर्य और कानून” की भाषा से आगे बढ़ चुका है, और अपनी जल और कूटनीतिक संप्रभुता को लेकर कहीं अधिक आक्रामक और निर्णायक हो चुका है।
जल अब सिर्फ संसाधन नहीं, बल्कि रणनीतिक हथियार बन गया है।
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