कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद डॉ. शशि थरूर इन दिनों अपनी ही पार्टी में अलग-थलग पड़ते नज़र आ रहे हैं। भारत की विदेश नीति और हालिया आतंकी हमले ‘पहलगाम अटैक’ के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वैश्विक रणनीति की प्रशंसा करना, थरूर के लिए भारी पड़ गया है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यह सराहना केवल सरकार के आतंकवाद-विरोधी प्रयासों को लेकर है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने इसे मोदी के पक्ष में झुकाव मान लिया है। यही नहीं, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की तीखी टिप्पणी – “हमारे लिए देश पहले है, लेकिन कुछ लोगों के लिए मोदी पहले हैं” – ने इस टकराव को खुली चुनौती में बदल दिया है।
‘पक्षियों’ के ज़रिये राजनीतिक संदेश
इस पूरे विवाद में दिलचस्प मोड़ तब आया जब शशि थरूर ने सोशल मीडिया पर एक सुंदर पक्षी की तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा –
“Don’t ask permission to fly. The wings are yours. And the sky belongs to no one.”
(उड़ने की इजाज़त मत मांगो, पंख तुम्हारे हैं और आसमान किसी का नहीं।)
यह संदेश, स्पष्ट रूप से, पार्टी के अंदर उनके आलोचकों को जवाब देने के तौर पर देखा गया। पर इसके जवाब में कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने एक और पोस्ट डालकर कटाक्ष किया –
“Birds don’t need clearance to rise… but even a free bird must watch the skies — hawks, vultures and ‘eagles’ are always hunting…”
टैगोर की इस पोस्ट में छह शिकारी पक्षियों की तस्वीरें थीं – बॉल्ड ईगल, रेड-टेल्ड हॉक, ओस्प्रे, अमेरिकन केस्ट्रल, टर्की वल्चर और ग्रेट हॉर्नड आउल – जिनके माध्यम से यह संकेत दिया गया कि थरूर जैसे नेता ‘शिकार’ भी बन सकते हैं और ‘शिकार करने’ वालों की श्रेणी में भी हो सकते हैं।
क्या बीजेपी में शामिल होने की अटकलें हैं वाजिब?
पिछले कुछ समय से यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि क्या शशि थरूर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। वजह है – बीजेपी नेताओं द्वारा उनकी प्रशंसा करना, विदेश नीति पर सरकार की सराहना करना, और केंद्र की तरफ से उन्हें विदेश दौरे की अगुवाई सौंपना।
हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत द्वारा पाकिस्तान को दिया गया जवाब जब वैश्विक मंचों पर गूंज रहा था, तब थरूर ने इसे भारतीय कूटनीति की जीत बताया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की अगुवाई में भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को सख्त संदेश दिया। हालांकि इस बयान को कुछ कांग्रेस नेताओं ने ‘मोदी की तारीफ’ मानकर नापसंद किया।
थरूर ने इन अटकलों को सिरे से खारिज करते हुए कहा –
“प्रधानमंत्री की पार्टी में जाने का मेरा कोई इरादा नहीं है। सिर्फ इसलिए कि मैंने भारत की वैश्विक छवि पर सकारात्मक बात की, इसका मतलब यह नहीं कि मैं पार्टी बदल रहा हूं।”
कांग्रेस में ‘असहज’ होता रिश्ता
थरूर का कांग्रेस से यह टकराव नया नहीं है। इससे पहले भी पार्टी लाइन से हटकर बोलने, जी-23 समूह का हिस्सा बनने और कभी-कभी राहुल गांधी की रणनीति पर सवाल उठाने के चलते वे असहज स्थिति में आते रहे हैं। लेकिन इस बार मामला गंभीर इसलिए हो गया क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दे पर पार्टी नेतृत्व और थरूर के विचारों में सीधा टकराव दिखा।
कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने कहा –
“हमने शशि थरूर को कांग्रेस कार्यसमिति का सदस्य इसलिए बनाया क्योंकि उनकी अंग्रेजी बहुत अच्छी है, हम तो समझ ही नहीं पाते वे क्या कहते हैं। लेकिन जब देश के 26 नागरिक मारे गए, तब हमारी पार्टी ने कहा कि हम सेना के साथ हैं, देश के साथ हैं। लेकिन कुछ लोग शायद मोदी के साथ खड़े हैं, देश के नहीं।”
यह बयान इस बात का संकेत है कि पार्टी अब थरूर को लेकर खुलकर नाराज़ है।
विदेश नीति में भूमिका बनी विवाद की जड़
सरकार ने थरूर को विदेश दौरे पर भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए चुना, जिसमें आतंकवाद पर भारत की नीति को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करना था। चौंकाने वाली बात यह रही कि इस प्रतिनिधिमंडल में थरूर का नाम कांग्रेस ने नहीं सुझाया था, बल्कि सरकार ने स्वयं उन्हें चुना। इससे कांग्रेस के भीतर नाराज़गी और बढ़ गई।
यात्रा के दौरान, कांग्रेस नेताओं की ओर से लगातार आलोचनाएं होती रहीं, जिनका जवाब देते हुए थरूर ने कहा –
“मेरे पास समय नहीं है इन बातों के लिए। देश की छवि को प्रस्तुत करना मेरी प्राथमिकता है।”
निष्कर्ष: पार्टी के भीतर स्वतंत्र आवाज़ या असहमति का विद्रोह?
शशि थरूर की स्थिति आज कांग्रेस में उस सोच का प्रतीक बन गई है, जो पार्टी लाइन से अलग दृष्टिकोण रखने की कोशिश करती है। लेकिन क्या कांग्रेस इस असहमति को लोकतांत्रिक तरीके से स्वीकारने को तैयार है? या फिर वह हर उस आवाज़ को दबा देगी, जो ‘मोदी विरोध’ की स्थापित धारा से अलग जाती है?
थरूर जैसे विद्वान, अंतरराष्ट्रीय अनुभव वाले नेता अगर पार्टी में उपेक्षित महसूस करते हैं, तो यह न सिर्फ कांग्रेस के लिए चिंताजनक है, बल्कि भारतीय राजनीति के लिए भी एक चेतावनी है कि आलोचना और आत्म-मंथन की गुंजाइश राजनीति से खत्म न हो जाए।
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