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गाज़ियाबाद की बहू बनी ‘दहशत की साया’: सास की बेरहमी से पिटाई, ससुर को भी चाकू लेकर दौड़ाया – CCTV में कैद, 6 दिन बाद दर्ज हुई FIR

Ghaziabad's daughter-in-law became a 'shadow of terror': brutally beat up mother-in-law, chased father-in-law with a knife - caught on CCTV, FIR filed 6 days later

गाजियाबाद का गोविंदपुरम इलाका, जहां आमतौर पर जीवन सामान्य रूप से चलता है, इन दिनों एक वायरल वीडियो के चलते पूरे देश की नजरों में है। वीडियो में एक महिला अपनी सास को बेरहमी से पीटती, घसीटती और गालियाँ देती दिख रही है। यही नहीं, आरोप है कि उसने अपने ससुर पर चाकू से हमला करने की कोशिश की। यह पूरी घटना न सिर्फ एक परिवार को हिला कर रख देती है, बल्कि समाज में महिलाओं की भूमिका और घरेलू संबंधों को लेकर गहरे सवाल भी खड़े करती है।


घटना का पूरा विवरण: बहू की हैवानियत, CCTV बना गवाह

1 जुलाई को यह भयावह घटना गाज़ियाबाद के कविनगर थाना क्षेत्र के गोविंदपुरम इलाके में हुई। वायरल वीडियो में जिस महिला को सास पर हमला करते देखा गया, उसका नाम आकांक्षा बताया गया है, जो पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और घर से काम करती है। उस समय घर में उसके साथ उसकी अपनी मां भी मौजूद थी, लेकिन उन्होंने भी अपनी बेटी को रोकने की कोशिश नहीं की।

CCTV फुटेज में साफ़ दिख रहा है कि आकांक्षा ने पहले अपनी बुज़ुर्ग सास को ज़ोर से धक्का देकर ज़मीन पर गिराया, फिर उन्हें बालों से घसीटते हुए सीढ़ियों की ओर ले गई। इस दौरान उसने उन्हें कई थप्पड़ मारे, लातें मारीं और बार-बार गालियाँ दीं। यह पूरी हिंसा लगभग 2 मिनट तक चली और इस दौरान किसी ने भी बीच-बचाव नहीं किया।


ससुर का बयान: “हम कई महीनों से डर के साए में जी रहे हैं”

पीड़ित बुज़ुर्ग महिला के पति, जो आकांक्षा के ससुर हैं, ने बताया कि यह कोई पहली घटना नहीं है। उन्होंने कहा,

“मेरे बेटे की शादी को कई साल हो चुके हैं। बेटा गुरुग्राम में काम करता है और घर कम ही आता है। बहू घर पर अकेली रहती है और आए दिन हमें धमकाती है। कभी हमें घर से निकालने की बात करती है, तो कभी पुलिस में झूठे केस डालने की धमकी देती है।”

ससुर ने यह भी आरोप लगाया कि आकांक्षा अपने पिता के पुलिस विभाग में होने का फायदा उठाकर हमें डराती थी।

“उसके पिता पुलिस इंस्पेक्टर हैं। वह अकसर कहती थी कि ‘तुम लोगों को जेल में सड़वा दूंगी’,” उन्होंने कहा।


आकांक्षा की मां की चुप्पी: मौन सहमति या मानसिकता की समस्या?

CCTV में यह भी देखा गया कि जब आकांक्षा अपनी सास को बेरहमी से पीट रही थी, तब उसकी मां वहीं पास में खड़ी थी। न उसने कोई प्रतिरोध किया, न अपनी बेटी को समझाया, न ही बुजुर्ग महिला की मदद की।
इस तरह की घटनाएं सिर्फ एक व्यक्ति की हिंसा नहीं होतीं, बल्कि यह दर्शाती हैं कि किस तरह एक मानसिकता पूरे परिवार को प्रभावित कर सकती है।


पुलिस कार्रवाई में देरी: छह दिन तक चुप क्यों रही व्यवस्था?

सबसे चिंताजनक पहलू यह रहा कि इतनी गंभीर घटना होने के बावजूद पुलिस ने तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की। ससुर ने आरोप लगाया कि वे 1 जुलाई से पुलिस स्टेशन के चक्कर लगा रहे थे, लेकिन उनकी शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया गया।

“हम रोज जाकर कहते थे कि FIR दर्ज करो, लेकिन हमें टाल दिया गया। शायद इसलिए क्योंकि आकांक्षा का पिता पुलिस विभाग में है।”

आखिरकार, 7 जुलाई को कविनगर थाने के सहायक पुलिस आयुक्त (ACP) भास्कर वर्मा ने पुष्टि की कि FIR दर्ज कर ली गई है।


पुलिस की प्रतिक्रिया और जांच की स्थिति

ACP भास्कर वर्मा ने बयान दिया:

“घटना की गंभीरता को देखते हुए मामला दर्ज कर लिया गया है। आरोपी आकांक्षा और उसकी मां के खिलाफ IPC की विभिन्न धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। SHO योगेंद्र मलिक इस मामले की जांच कर रहे हैं और जल्द ही आरोपियों से पूछताछ की जाएगी।”

पुलिस के अनुसार, केस में आईपीसी की धारा 323 (मारपीट), 504 (गाली-गलौज), 506 (धमकी) और 452 (घर में घुसकर हमला) लगाई गई हैं।


सवाल जो इस घटना ने खड़े किए

इस घटना ने सिर्फ एक परिवार को नहीं, बल्कि पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। ऐसे में कुछ अहम सवाल उठते हैं:

  1. क्या महिलाएं भी घरेलू हिंसा की दोषी हो सकती हैं?
    आम तौर पर घरेलू हिंसा की पीड़ित महिलाएं मानी जाती हैं, लेकिन यह घटना बताती है कि पुरुष और बुजुर्ग भी पीड़ित हो सकते हैं।
  2. क्या पुलिस विभाग में संबंधों के चलते न्याय में देरी हो सकती है?
    अगर आरोपी के पिता पुलिस में हैं, तो क्या शिकायतकर्ता को न्याय नहीं मिलेगा?
  3. CCTV जैसे साक्ष्य होने के बावजूद तत्काल कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
  4. क्या माता-पिता की भूमिका केवल जैविक होती है या वे गलत कार्यों को भी बढ़ावा दे रहे हैं?

मानवाधिकार विशेषज्ञों की राय

इस घटना पर बात करते हुए NCR स्थित सामाजिक कार्यकर्ता और वकील सरिता वर्मा कहती हैं:

“यह केस उन दुर्लभ मामलों में से है जहां पीड़ित बुज़ुर्ग हैं और आरोपी महिला। हमें यह समझना होगा कि कानून किसी एक लिंग का पक्ष नहीं लेता – अपराधी कोई भी हो, कानून एक जैसा होना चाहिए।”

वे आगे कहती हैं,

“पुलिस को सबसे पहले वीडियो देखकर तुरंत गिरफ्तारी करनी चाहिए थी। देरी इस बात का संकेत देती है कि दबाव हो सकता है।”


आकांक्षा का पक्ष: क्या है उसकी सफाई?

फिलहाल, मीडिया को आकांक्षा या उसके परिवार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं मिला है। पुलिस का कहना है कि पूछताछ के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी। सूत्रों के अनुसार, आकांक्षा ने अपने पति से अलग रहने के लिए ससुराल वालों को जिम्मेदार ठहराया था।


सोशल मीडिया पर गुस्सा और बहस

जैसे ही वीडियो वायरल हुआ, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर हजारों लोगों ने इस घटना की निंदा की।
कुछ प्रतिक्रियाएं:

  • “इतनी पढ़ी-लिखी होकर कोई इतनी बेरहमी से कैसे पेश आ सकता है?”
  • “बुज़ुर्गों पर हाथ उठाने वाले को कठोर सज़ा मिलनी चाहिए।”
  • “पुलिस की देरी साबित करती है कि आज भी सिस्टम में असरदार लोगों का दबदबा है।”

न्याय की दिशा में अगला कदम

पुलिस ने बयान दिया है कि यदि आरोप सिद्ध होते हैं तो आकांक्षा और उसकी मां को जेल की सजा हो सकती है। पीड़िता का मेडिकल चेकअप कराया गया है और अन्य गवाहों से भी बयान लिए जा रहे हैं। SHO योगेंद्र मलिक की निगरानी में केस की तफ्तीश तेजी से की जा रही है।


निष्कर्ष: एक घटना, कई सबक

गोविंदपुरम की यह घटना हमें एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करती है कि:

  • पारिवारिक रिश्ते कितने नाजुक होते हैं,
  • गुस्सा और सत्ता का अहंकार रिश्तों को किस हद तक तोड़ सकता है,
  • और यह कि न्याय प्रणाली को प्रभावशाली लोगों के प्रभाव से मुक्त रखने की कितनी आवश्यकता है।

अब देखना यह है कि क्या पुलिस निष्पक्ष जांच कर पाती है या फिर एक और मामला फाइलों में दब जाएगा। लेकिन एक बात तय है – यह वीडियो और इसके पीछे की पीड़ा अब समाज की चेतना का हिस्सा बन चुकी है।

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