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भारत की सुरक्षा पर चीन-पाकिस्तान-बांग्लादेश की संभावित साठगांठ का खतरा: जनरल अनिल चौहान का चेतावनीपूर्ण बयान

The threat of possible China-Pakistan-Bangladesh nexus to India's security: General Anil Chauhan's warning

भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने एक बेहद अहम और रणनीतिक चेतावनी दी है, जिसका सीधा संबंध भारत की सुरक्षा, स्थिरता और भविष्य की युद्ध नीति से है। उन्होंने यह बात ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) में दिए गए एक भाषण में कही, जहां उन्होंने चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के संभावित गठजोड़ को भारत की सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बताया।

हालाँकि जनरल चौहान ने सीधे किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन उन्होंने स्पष्ट रूप से यह संकेत दिया कि भारतीय उपमहाद्वीप में बदलते सामरिक समीकरण भारत के लिए चिंताजनक हो सकते हैं। उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का भी उल्लेख किया, जो दो परमाणु शक्तियों के बीच पहला प्रत्यक्ष सैन्य संघर्ष रहा।


चीन-पाकिस्तान-बांग्लादेश: एक नया त्रिकोण?

जनरल चौहान ने कहा,

“चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच संभावित हितों का मेल देखा जा सकता है, जो भारत की स्थिरता और सुरक्षा की दिशा में असर डाल सकता है।”

यह बयान उस समय आया है जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन की बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों में उसकी बढ़ती आर्थिक व सामरिक पहुंच देखी जा रही है। पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से लेकर बांग्लादेश के चिटगांव बंदरगाह तक, चीन का प्रभुत्व स्पष्ट रूप से उभर रहा है।

बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध सामान्य रूप से अच्छे रहे हैं, लेकिन चीन की मौजूदगी और कुछ हालिया कूटनीतिक घटनाएं एक नए रणनीतिक गठबंधन की ओर संकेत कर रही हैं, जो भारत के लिए संभावित खतरा हो सकता है।


हिंद महासागर क्षेत्र में आर्थिक संकट और बाहरी ताकतों का प्रभाव

जनरल चौहान ने यह भी कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में आर्थिक संकट झेल रहे देशों पर बाहरी ताकतें अपना प्रभाव बढ़ा रही हैं। यह प्रभाव सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि सामरिक और राजनीतिक भी हो सकता है।

श्रीलंका, मालदीव, मॉरीशस और यहां तक कि बांग्लादेश जैसे देशों में चीन की आर्थिक घुसपैठ ने वहां की सरकारों को दबाव में ला दिया है। भारत की चिंता यह है कि ये देश धीरे-धीरे सामरिक रूप से चीन के पाले में जा सकते हैं।


ऑपरेशन सिंदूर: परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों का पहला सीधा संघर्ष

जनरल अनिल चौहान ने पहली बार सार्वजनिक रूप से यह माना कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ दो परमाणु संपन्न राष्ट्रों के बीच हुआ पहला सीधा सैन्य संघर्ष था। उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन ने वैश्विक सुरक्षा विशेषज्ञों को एक अनूठा उदाहरण दिया है।

उनके अनुसार,

“दुनियाभर में सैकड़ों युद्ध हुए हैं, लेकिन यह पहली बार था कि दो परमाणु शक्तियों ने सीधे युद्ध किया। यह ऑपरेशन अपनी प्रकृति में अनोखा है और इससे पूरी दुनिया को सीख मिल सकती है।”

जनरल चौहान ने यह भी जोड़ा कि भारत ने स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया है कि वह परमाणु ब्लैकमेलिंग से डरने वाला नहीं है।


चीन की भूमिका: अस्पष्ट लेकिन नजरअंदाज नहीं

जनरल चौहान ने यह स्पष्ट किया कि यह कहना मुश्किल है कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को चीन से कितना प्रत्यक्ष समर्थन मिला। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि भारत-चीन सीमा पर कोई असामान्य गतिविधि उस दौरान नहीं देखी गई।

इससे यह संकेत मिलता है कि चीन ने सार्वजनिक रूप से तो अपनी भूमिका नहीं दिखाई, लेकिन बैक-चैनल समर्थन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।


भारत की परमाणु नीति और ‘नो फर्स्ट यूज़’

भारत की ‘नो फर्स्ट यूज़’ (पहले इस्तेमाल नहीं) नीति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह नीति भारत और पाकिस्तान के बीच एक ‘स्पेस फॉर कन्वेंशनल ऑपरेशन’ तैयार करती है, यानी परमाणु युद्ध की आशंका के बावजूद पारंपरिक सैन्य कार्रवाई के लिए जगह छोड़ी जाती है।

उन्होंने कहा कि भारत को हर स्तर की लड़ाई—पारंपरिक और उप-पारंपरिक—के लिए तैयार रहना चाहिए। परमाणु हथियार केवल निरोधक के रूप में होने चाहिए, न कि युद्ध लड़ने के औज़ार के रूप में।


आतंकवाद पर भारत की जवाबी नीति: बदला या रोकथाम?

जनरल चौहान ने यह भी बताया कि कैसे पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविरों को नष्ट किया। उन्होंने कहा,

“आप इसे बदला कहें या प्रतिशोध, लेकिन इसका उद्देश्य अगली हमलों को रोकना था।”

उन्होंने यह भी बताया कि संघर्ष को पारंपरिक क्षेत्र में ले जाने की ज़िम्मेदारी पाकिस्तान की थी। भारत की कार्रवाई एक रोकथाम रणनीति के तहत थी, जबकि पाकिस्तान ने इसे युद्ध की दिशा में धकेला।


आधुनिक युद्ध के नए आयाम: साइबर और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक क्षेत्र

जनरल चौहान ने यह भी कहा कि अब पारंपरिक युद्ध सीमित नहीं रहा। आज युद्ध साइबर स्पेस, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम, और सूचना युद्ध में भी लड़ा जाता है। भारत को इन सभी नए आयामों में खुद को मज़बूत करने की ज़रूरत है।

उन्होंने चेतावनी दी कि:

“हमारे पास अब भी बैलिस्टिक मिसाइल, हाइपरसोनिक, क्रूज़ मिसाइलों और ड्रोन जैसे हमलों से पूरी तरह सुरक्षित रक्षा प्रणाली नहीं है।”

यह बयान दर्शाता है कि आने वाले समय में एंटी-मिसाइल डिफेंस, AI-सक्षम युद्ध, और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर पर भारत को और निवेश करना होगा।


थिएटराइजेशन: संयुक्त संचालन की ओर एक कदम

जनरल चौहान ने ‘थिएटराइजेशन’ की प्रक्रिया को भारत की सैन्य भविष्य रणनीति का आधार बताया। इसका उद्देश्य तीनों सेनाओं—थल सेना, वायु सेना, और नौसेना—के बीच सामरिक एकता और संयुक्त संचालन (jointness) को मजबूत करना है।

उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान यह संयुक्तता स्वाभाविक रूप से देखने को मिली, जो भविष्य की रक्षा तैयारियों का मार्ग प्रशस्त करती है।


निष्कर्ष: भारत को क्या करना होगा?

जनरल चौहान के वक्तव्य से भारत के लिए निम्नलिखित प्राथमिकताएं उभरती हैं:

  1. तीन मोर्चों—चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश—के संभावित गठबंधन को ध्यान में रखते हुए बहु-आयामी रक्षा रणनीति बनाना।
  2. हिंद महासागर में अपने प्रभाव को बनाए रखना और छोटे पड़ोसी देशों में चीन के आर्थिक व राजनीतिक प्रभाव को संतुलित करना।
  3. परमाणु युद्ध नीति में ‘नो फर्स्ट यूज़’ को बनाए रखते हुए पारंपरिक और हाई-टेक युद्ध की पूरी तैयारी।
  4. साइबर, ड्रोन, हाइपरसोनिक मिसाइलों से सुरक्षा के लिए रक्षा प्रणाली को अत्याधुनिक बनाना।
  5. संयुक्त संचालन को और तेज़ी से लागू करना और थिएटर कमांड को यथाशीघ्र प्रभावी बनाना।

समापन

जनरल अनिल चौहान का यह बयान सिर्फ एक सैन्य दृष्टिकोण नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की जमीनी सच्चाई को उजागर करता है। बदलते वैश्विक और क्षेत्रीय समीकरणों में भारत को सतर्क, संगठित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तैयार रहना होगा।

ऑपरेशन सिंदूर और उससे जुड़ी सामरिक सीखें केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी हैं—कि परमाणु ताकतें भी जब लड़ने लगें, तो उसका असर सीमाओं से कहीं अधिक दूरगामी हो सकता है।

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