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यमन में भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की फांसी का मामला: एक त्रासदी, एक अपील

The case of Indian nurse Nimisha Priya's hanging in Yemen: A tragedy, an appeal

भारत की केरल राज्य की रहने वाली 37 वर्षीय नर्स निमिषा प्रिया आज एक बेहद गंभीर और जटिल अंतरराष्ट्रीय संकट का चेहरा बन चुकी हैं। वर्ष 2017 में एक यमनी नागरिक की हत्या के आरोप में दोषी करार दी गई निमिषा को यमन की राजधानी सना में मौत की सज़ा सुनाई गई है। यह फांसी 16 जुलाई 2025 को तय मानी जा रही है।

इस मामले ने न केवल मानवीय संवेदनाओं को झकझोर दिया है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, महिला अधिकारों और न्याय प्रक्रिया को लेकर भी गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। आइए, इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं।


कौन हैं निमिषा प्रिया?

निमिषा केरल के पालक्काड जिले के कोल्लेंगोडे की रहने वाली एक शिक्षित और अनुभवी नर्स हैं। वर्ष 2011 में उन्होंने बेहतर रोज़गार की तलाश में यमन का रुख किया और सना शहर में एक क्लिनिक में काम करने लगीं। कुछ वर्षों बाद, 2014 में, यमन में बढ़ती अशांति और वित्तीय संकट के कारण उनके पति और बेटी भारत लौट आए। लेकिन निमिषा वहीं रुकी रहीं ताकि अपने परिवार को आर्थिक रूप से सहारा दे सकें।


एक मजबूर साझेदारी और उत्पीड़न की दास्तां

वर्ष 2015 के बाद, यमन में विदेशी नागरिकों को स्वतंत्र रूप से क्लिनिक या अस्पताल खोलने की अनुमति नहीं थी। इसी मजबूरी में निमिषा ने एक स्थानीय यमनी नागरिक तालाल अब्दो महदी के साथ साझेदारी में क्लिनिक खोला।

हालांकि, इस साझेदारी ने उनके जीवन को नर्क में बदल दिया।

निमिषा के मुताबिक, महदी ने फर्जी तरीके से खुद को उनका पति घोषित कर दिया, जिससे उसे कानूनी नियंत्रण मिल गया। इसके बाद उसने निमिषा पर शारीरिक शोषण, आर्थिक दोहन और मानसिक प्रताड़ना का लंबा सिलसिला शुरू किया।

वह न केवल निमिषा का पासपोर्ट ज़ब्त करके बैठ गया, बल्कि उसे नशे की दवाइयों के ज़रिए नियंत्रित करने की कोशिश की।

निमिषा ने इस उत्पीड़न के खिलाफ स्थानीय प्रशासन से भी मदद मांगी, लेकिन बजाय सुरक्षा मिलने के, उन्हीं को गिरफ्तार कर लिया गया। यमन की युद्धग्रस्त और गुटीय राजनीतिक स्थिति में एक विदेशी महिला की सुनवाई न के बराबर थी।


हत्या की घटना और मौत की सजा

वर्ष 2017 में जब हालात असहनीय हो गए, तो निमिषा ने अपने पासपोर्ट को वापस लेने और यमन से भागने की योजना बनाई। इसके लिए उसने महदी को बेहोश करने के लिए एक दवा दी, जिससे वह अपना पासपोर्ट लेकर भाग सके। लेकिन दुर्भाग्यवश वह दवा जानलेवा साबित हुई, और महदी की मौत हो गई।

इस घबराहट में, एक स्थानीय महिला हनान की मदद से निमिषा ने महदी के शव के टुकड़े किए और उन्हें एक पानी की टंकी में छिपा दिया।

यह अपराध बेहद गंभीर था। कुछ ही दिनों में स्थानीय पुलिस ने जांच के बाद निमिषा को गिरफ्तार कर लिया। मामला कोर्ट में गया और 2020 में यमन की एक अदालत ने निमिषा को मौत की सज़ा सुनाई।

इस सजा को नवंबर 2023 में हौथी प्रशासन के सर्वोच्च न्यायिक परिषद ने बरकरार रखा।


🇮🇳 भारत सरकार की कोशिशें और कूटनीतिक चुनौती

भारत सरकार ने इस मामले को लेकर गंभीरता दिखाई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता और संसद में भी यह कहा गया कि सरकार निमिषा की मदद के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है

लेकिन एक बड़ी चुनौती यह है कि सना में सत्ता पर काबिज हूथी प्रशासन को भारत आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं देता। ऐसे में भारत और हूथी प्रशासन के बीच कोई औपचारिक कूटनीतिक संपर्क नहीं है, जिससे बातचीत और अपील प्रक्रिया बेहद जटिल हो जाती है।

इसके बावजूद, भारत ने निमिषा के परिवार से संवाद बनाए रखा और स्थानीय संपर्कों के माध्यम से राहत की संभावना तलाशने की कोशिश की।


‘दियत’ यानी ‘ब्लड मनी’ की कोशिशें

यमन का कानून “दियत” (blood money) की अनुमति देता है – यानी अगर आरोपी पीड़ित के परिवार को मुआवज़ा देता है और वे माफ़ी दे देते हैं, तो सजा कम या माफ हो सकती है।

इसी दिशा में, निमिषा की मां प्रेमकुमारी पिछले साल यमन गईं ताकि महदी के परिवार से संपर्क कर सकें और ‘दियत’ के माध्यम से बेटी की जान बचा सकें।

लेकिन यह प्रयास स्थानीय राजनीतिक जटिलताओं, पारिवारिक अड़चनों और सुरक्षा कारणों से ठप पड़ गया।

बताया गया कि महदी का परिवार भी हौथी प्रशासन से जुड़ा हुआ है, जिससे बातचीत असंभव नहीं तो बेहद कठिन हो गई।


अब सिर्फ 7 दिन बचे हैं…

अब जबकि फांसी की तारीख 16 जुलाई 2025 घोषित हो चुकी है, निमिषा अभी भी सना की जेल में कैद हैं। हर घंटे के साथ उनके जीवन की डोर कमजोर होती जा रही है।

इस पूरे मामले ने भारत में एक जनआंदोलन का रूप ले लिया है। कई मानवाधिकार संगठनों, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और नागरिक संगठनों ने भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से तत्काल हस्तक्षेप की अपील की है।

केरल में निमिषा प्रिया की रिहाई के लिए रैलियां, याचिकाएं और सोशल मीडिया अभियान चलाए जा रहे हैं।


मुख्य प्रश्न जो आज हम सबको पूछने चाहिए:

  1. क्या किसी महिला को इस कदर मजबूर किया जा सकता है कि वह अपराध की ओर धकेल दी जाए?
  2. जब एक भारतीय नागरिक विदेश में अत्याचार का शिकार होती है, तो हमारी कूटनीतिक व्यवस्था कितनी सक्षम है?
  3. क्या ‘दियत’ जैसी प्रणालियों के ज़रिए जीवन बचाने की कोशिशें नीतिगत रूप से सही हैं या ये अन्यायपूर्ण समझौते बनते हैं?
  4. क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ऐसे मामलों में और ज़िम्मेदारी नहीं निभानी चाहिए?

एक उम्मीद की किरण?

इस समय भारत सरकार के पास अभी भी विकल्प बचे हैं, जैसे:

  • हौथी प्रशासन से अंतिम समय की माफी की याचना, मानवीय आधार पर।
  • संयुक्त राष्ट्र या अन्य मध्यस्थ संगठनों की मदद लेना
  • तेहरान, ओमान या कतर जैसे देशों से बैकचैनल डिप्लोमेसी के जरिए दबाव डालना।

निष्कर्ष: यह सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि सवाल है हमारी व्यवस्था पर

निमिषा प्रिया की कहानी एक महिला की संघर्षगाथा है – जो अपने परिवार को पालने के लिए यमन गई, लेकिन धोखे, उत्पीड़न और न्याय की कमी का शिकार बनी।

अगर समय रहते कोई चमत्कार नहीं हुआ, तो 16 जुलाई को एक बेहद त्रासद अंत का गवाह बन सकता है – वो अंत जिसे रोका जा सकता है, अगर दुनिया सिर्फ एक बार इंसानियत से देखे।


आप क्या कर सकते हैं?

  • इस मुद्दे को सोशल मीडिया पर उठाएं
  • याचिकाओं पर हस्ताक्षर करें
  • भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से अपील करें

क्योंकि कभी-कभी आवाज़ ही आखिरी उम्मीद होती है।

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