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तेजस्वी यादव ने SIR पर उठाए गंभीर सवाल, ‘स्रोत’ पर किया व्यंग्य

Tejashwi Yadav raised serious questions on SIR, made a satire on 'source'

रविवार को बिहार विधानसभा चुनावों से पहले चल रहे SIR पर RJD नेता तेजस्वी यादव ने प्रश्न खड़े किए। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि बिहार SIR के दौरान बूथ‑स्तर भुगतान अधिकारियों (BLOs) ने “बंगladesh, नेपाल व म्यांमार के लोगों को” मतदाता सूची में पाया है। तेजस्वी यादव ने सवाल किया, कहा:

“ये सोउत्र कौन हैं?”

उन्होंने इस रिपोर्ट को असंयत बताया और तीखा व्यंग्य किया:

“ये वही स्रोत हैं जो कहते थे कि इस्लामाबाद, कराची और लाहौर कब्ज़ा कर लिए गए। ये सूत्र को हम मूत्रा समझते हैं।”

तेजस्वी ने SIR की सत्यता से सवाल उठाते हुए कहा कि अगर सच में विदेशियों का नाम वोटर लिस्ट में जुड़ गया था, तो पहले भी चुनावों में उसे नतीजे पर असर पड़ना चाहिए था। उन्होंने भाजपा‑NDA को दोषी ठहराया जिसे तेजस्वी ने “भ्रष्‍ट और अंदरूनी गड़बड़ी का नेतृत्व” बताया।

“SIR एक आँखमिचौली है। चुनाव आयोग एक राजनीतिक दल की शाखा बन गया है।”


वोटरों की सूची संशोधन परिसर: SIR क्या है और इसका इतिहास

विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) एक सतर्कता अभियान है जिसे चुनाव आयोग हर छह‑आठ वर्षों में कराया करता है। इसका उद्देश्य होता है:

  1. वैध नागरिकों को सुनिश्चित करना,
  2. द्वैध प्रवासियों या फर्जी प्रविष्टियों को हटाना,
  3. मतदाता सूची को सटीक व अपडेट रखना

भारत में SIR पिछली बार 2003 में UPA सरकार के दौरान हुआ था। उसके बाद 2014, 2019, और 2024 के चुनावों तक बड़ी अपडेट नहीं की गई। तेजस्वी यादव ने तर्क दिया:

“यदि विदेशी मतदाता वोट देते, तो हमारा अंतर तीन‑चार लाख से नहीं होता। यह साबित हो रहा है कि बीजेपी इवेंट्स के दौरान खुद ही संदिग्ध प्रविष्टियों को अनुमति देती रही है।”

SIR की प्रक्रिया में बूथ‑लेवल अधिकारी (BLOs) घर‑घर जाकर प्रत्येक मतदाता की उपस्थिति, पहचान और जन्मस्थान की जानकारी इकट्ठा करते हैं। यदि किसी को संदिग्ध पाया गया, तो उसका नाम “फ्लैग” किया जाता है। इन लोगों की नागरिकता की जांच आगामी चरणों में अगस्त 2025 के बाद शुरू होगी।

ECI का दावा है कि “गैर‑भारतीय मतदाताओं के नाम अंतिम सूची से नहीं जुड़ेंगे”, जो 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित की जाएगी।


सुप्रीम कोर्ट ने दी मान्यता – एडार, EPIC मान्यता चाहिए

SIR पर सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक वैधता को स्वीकार किया, लेकिन प्रार्थना की कि आधार, मतदाता पहचान पत्र (EPIC), और राशन कार्ड को सत्यापन के वैध दस्तावेज माना जाएं। कोर्ट ने ऐसे दस्तावेज मांगने की वकालत की जो आम जनता आसानी से प्रस्तुत कर सके, जिससे वैध मतदाता त्रुटिवश ड्राफ्ट से बाहर न हो जाए।

यह कोर्ट द्वारा दिये गये सुझाव विपक्षियों के सवालों की भी आंशिक मान्यता है।


राजनीतिक टकराव: तेजस्वी यादव और NDA की जुबानी जंग

तेजस्वी ने NDA को सीधे निशाने पर रखा:

  • “जिन्होंने चुनाव जीता है, वे धोखाधड़ी से जीत रहे हैं” – तेजस्वी की यह टिप्पणी विवादित रही है।
  • उन्होंने SIR पर व्यंग्य किया—“EC चुनाव आयोग नहीं, पार्टी‑कमेटी लग रही है।”
  • उन्होंने कहा कि SIR का उद्देश्य “राजनीतिक विरोधियों में भय पैदा करना, राज्य में अस्थिरता दिखाना” है, ताकि चुनावी माहौल BJP‑NDA के लिए अनुकूल बने।

वहीं, भाजपा और बाकी NDA समर्थक दलों का कहना है कि जिस प्रकार देश में अवैध प्रवासियों पर नजर रखी जाती है, ठीक उसी तरह SIR न्यायपूर्ण प्रक्रिया है। उनका तर्क है कि यह अभियान “राष्‍ट्रीय संरक्षा और चुनावी न्याय सुनिश्चित करने” हेतु किया जा रहा है।


SIR और कानून: अन्य राज्यों की स्थिति

Bihar के बाद ECI ने संकेत दिया है कि SIR भविष्य में Assam, Kerala, Tamil Nadu, Puducherry, West Bengal आदि राज्यों में भी लागू किया जा सकता है। बिहार जैसे सीमावर्ती राज्य में SIR का महत्व खास है, लेकिन भारत‑व्यापी तर्क भी मजबूत है:

  • Assam में पहले से भी भारत‑बांग्लादेश सीमा विवाद और मुफ्त राशन-आधारित मतदाता समस्या रही है।
  • West Bengal में भाजपा‑TMC टकराव चलता रहता है, इसलिए मतदाता सूची की विश्वसनीयता की मांग भी बढ़ी है।

हालांकि, विपक्ष के अनुसार, इसके चलते वैध मतदाताओं का बहिष्करण हो सकता है, और इससे राजनीतिक अस्थिरता भी पैदा हो सकती है।


समाज, संसाधन और चुनावी असर

SIR से जुड़े डराने की राजनीति भी सामने आई है। कई अधिकार संगठन कहते हैं कि कहीं SIR गरीब, ग्रामीण या पिछड़े क्षेत्रों से मतदाताओं को बेवजह न हटाने का कारण न बन जाए।

बुजुर्ग, दलित, आदिवासी, एवं ग्रामीण महिलाओं को सरकारी दस्तावेज जुटाने में अक्सर दिक्कत होती है—Aadhaar/EPIC नहीं मिल पाते, या मौखिक दस्तावेज नहीं माने जाते। इससे उनका बहिष्करण हो सकता है।

हिमाचल, महाराष्ट्र और असम में चुनाव आयोग को ऐसे मामले सामने आये हैं जहाँ दस्तावेज़ की कमी से अधिकतर ग्रामीण वोटर्स को हतोत्साहित किया गया।


निष्कर्ष: SIR – सुरक्षा या राजनीति?

  1. SIR का उद्देश्य – मान्यता है कि यह कार्य वैध वोटरों की पहचान के लिए जरूरी है।
  2. विवाद – तेजस्वी यादव जैसे नेताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया राजनीतिक रूप से मोदी‑भाजपा को फायदेमंद बनाए रखने के लिए है।
  3. गलतियां – ड्राफ्ट ईरर, दस्तावेज़ों का असंगत सत्यापन, ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी।
  4. कोर्ट का आदेश – आम लोगों के दस्तावेजों को मान्यता देने का निर्देश, ताकि धक्का‑टक्कर से बचा जा सके।
  5. राजनीतिक असर – समूचा भारत चुनावी माहौल के लिए सजग है, SIR जैसे कदमों से विपक्षी दल भय महसूस कर रहे हैं।

अंतिम निष्कर्ष

SIR एक वैध और जरूरत आधारित प्रक्रिया है—लेकिन तेजस्वी यादव जैसे विपक्षी नेताओं के सवाल भी गंभीर हैं, क्योंकि वे इसे “राजनीति या डराने की रणनीति” के तौर पर देखते हैं। सुप्रीम कोर्ट के कदम से स्पष्ट हुआ कि मानवीय दस्तावेज जांच में व्यापक ढांचा होना चाहिए, साथ ही यदि SIR का उपयोग चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया गया तो जनता का विश्वास टूट सकता है।

आने वाले महीनों में बड़ी चुनौती होगी:

  • ECI का पारदर्शी कार्यान्वयन,
  • राजनीतिक दलों का सहयोग,
  • वैध मतदाताओं की रक्षा,
  • भ्रष्ट प्रविष्टियों की पहचान

अगर यह संतुलन टूट गया तो चुनावी निष्पक्षता पर सवाल उठेंगे, और तेजस्वी जैसे नेता इस मुद्दे को सत्ता पक्ष पर धरना अपमान के रूप में इस्तेमाल करेंगे। इसी बीच विरोध किए गये अनेक राज्यों में SIR की परीक्षा भी होने वाली है—और इनकी रणनीति में बदलाव देखने को मिलेगी।

2025 बिहार चुनावों में SIR की प्रक्रियाएं और इसके परिणाम पूरे देश के चुनावी परिदृश्य में भी बदलाव ला सकते हैं।

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