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खबर का शिकार

पूर्व CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ से सुप्रीम कोर्ट ने मांगा आधिकारिक बंगला वापस: न्यायिक आवासीय संकट और संवेदनशील मानवीय पहलुओं के बीच उठता विवाद

Supreme Court asks former CJI D.Y. Chandrachud to return official bungalow: Dispute arises between judicial housing crisis and sensitive human aspects

सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने हाल ही में पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ को आवंटित सरकारी बंगले — 5, कृष्णा मेनन मार्ग — को रिक्त करने के लिए केंद्र सरकार के आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय को एक औपचारिक पत्र भेजा है। यह मांग ऐसे समय आई है जब सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत 33 न्यायाधीशों के लिए आवास की भारी कमी बनी हुई है।

यह मामला न केवल सुप्रीम कोर्ट प्रशासनिक नियमों का मुद्दा है, बल्कि एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के व्यक्तिगत व पारिवारिक ज़रूरतों और मानवीय सहानुभूति से भी जुड़ा हुआ है। यह विवाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय के भीतर न्यायिक शिष्टाचार बनाम संस्थागत विवशता के बीच संतुलन की गहन तस्वीर पेश करता है।


मामला क्या है?

नवंबर 2024 में सेवानिवृत्त हुए भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ को सेवानिवृत्ति के समय 5, कृष्णा मेनन मार्ग स्थित बंगला आवंटित किया गया था — जो परंपरागत रूप से कार्यरत CJI का आधिकारिक निवास होता है। नियमों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट जजेज़ रूल्स, 2022 के तहत कोई भी सेवानिवृत्त CJI अधिकतम 6 महीने तक उस सरकारी आवास में रह सकता है।

इस सीमा को देखते हुए, उन्हें 30 अप्रैल 2025 तक वह आवास खाली करना था।


क्यों मांगा गया बंगला वापस?

सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने 1 जुलाई 2025 को आवासन मंत्रालय को पत्र लिखते हुए यह स्पष्ट किया कि:

“पूर्व CJI को दिया गया आधिकारिक आवास खाली करने की निर्धारित अवधि समाप्त हो चुकी है, और अब उसे सुप्रीम कोर्ट के हाउसिंग पूल में वापस लाया जाना चाहिए।”

इस पत्र का मुख्य तर्क यह था कि सुप्रीम कोर्ट के पास वर्तमान में 34 में से 33 कार्यरत न्यायाधीश हैं, और आवास की कमी लगातार चुनौती बनी हुई है।


चंद्रचूड़ का पक्ष क्या है?

पूर्व CJI डी. वाई. चंद्रचूड़ ने बताया कि उन्होंने:

  • 18 दिसंबर 2024 को तत्कालीन CJI जस्टिस संजीव खन्ना को पत्र लिखकर 30 अप्रैल 2025 तक बंगला खाली करने की अनुमति मांगी थी, जो मिल गई।
  • 28 अप्रैल 2025 को एक और पत्र लिखकर 30 जून 2025 तक और समय मांगा, यह कहते हुए कि उनकी दो बेटियों को विशेष ज़रूरतें हैं, और उन्हें ऐसी जगह की आवश्यकता है जो इन ज़रूरतों को पूरा कर सके।

उन्होंने यह भी कहा कि:

“इस दूसरे पत्र का कोई औपचारिक उत्तर मुझे नहीं मिला, लेकिन मैंने वर्तमान CJI जस्टिस बी. आर. गवई से फ़ोन पर बात की थी और उन्हें जानकारी दी थी कि सरकार ने मुझे किराए पर एक आवास आवंटित किया है, जिसकी मरम्मत का कार्य 30 जून तक पूरा होना तय था।”


मरम्मत और देरी का कारण

पूर्व CJI ने स्पष्ट किया कि जो नया घर उन्हें किराए पर आवंटित हुआ है, वह लगभग दो वर्षों से उपयोग में नहीं था, इसलिए उसमें मरम्मत आवश्यक थी। इसके कारण:

  • ठेकेदार ने मरम्मत के लिए समय मांगा
  • काम पूरा होते-होते 30 जून की समयसीमा बीत गई
  • अब “कुछ ही दिनों में” वह बंगला छोड़ने को तैयार हैं

उनका तर्क है कि:

“जजों को अपने आधिकारिक आवास में अतिरिक्त समय तक रहने की अनुमति देना असाधारण बात नहीं है।”


व्यक्तिगत पहलू: दो बेटियों की विशेष ज़रूरतें

पूर्व CJI चंद्रचूड़ की पारिवारिक स्थिति भी इस पूरे मामले का मानवीय पहलू उजागर करती है। उनकी दो बेटियाँ विशेष ज़रूरतों (special needs) वाली हैं। उन्हें ऐसे घर की आवश्यकता है जिसमें:

  • न्यूनतम शारीरिक बाधाएँ हों
  • थेरैपी या चिकित्सा सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हों
  • व्यक्तिगत और पारिवारिक गोपनीयता बनी रहे

इस कारण उन्होंने 5, कृष्णा मेनन मार्ग से तुरंत स्थानांतरण में कठिनाई जताई।


न्यायिक इतिहास और परिप्रेक्ष्य

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जजों द्वारा आवास विस्तार मांगा जाना कोई नई बात नहीं है:

  • पूर्व CJIs ने भी 2–3 महीने की अतिरिक्त अवधि मांगी है
  • प्रशासनिक सहमति के आधार पर यह दिया जाता रहा है
  • लेकिन इस बार आवासीय संकट ने इसे संवेदनशील मुद्दा बना दिया है

चंद्रचूड़ ने यह भी बताया कि जब वे जज बने थे, तो 6 महीने तक उत्तर प्रदेश सदन में ठहरे थे, जब तक कि उन्हें सरकारी आवास नहीं मिला।

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