परिचय
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने 13 जुलाई 2025, रविवार को एक महत्वपूर्ण घोषणा की, जिसमें बताया गया कि बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के दौरान नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के बड़ी संख्या में नागरिक पाए गए हैं। आयोग ने स्पष्ट किया है कि इन लोगों के नाम 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित होने वाली अंतिम मतदाता सूची में शामिल नहीं किए जाएंगे।
यह घोषणा उस समय आई है जब सर्वोच्च न्यायालय भी बिहार में SIR प्रक्रिया को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है। इन याचिकाओं में मतदाता पहचान के लिए मांगे गए दस्तावेजों की सूची को चुनौती दी गई है, जिसमें आधार कार्ड, EPIC (मतदाता पहचान पत्र) और राशन कार्ड को शामिल नहीं किया गया है।
इस लेख में हम इस पूरी प्रक्रिया, इससे जुड़े विवाद, कानूनी पक्ष, और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।
क्या है विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)?
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) एक ऐसा अभियान है जिसमें निर्वाचन आयोग मतदाता सूची को अद्यतन करने के लिए घर-घर जाकर जांच करता है। इसका उद्देश्य है – मतदाता सूची से फर्जी नाम हटाना, दोहराव रोकना, और ऐसे नागरिकों को शामिल करना जो अब तक सूची से बाहर थे।
बिहार में यह प्रक्रिया 25 जून 2025 को शुरू हुई और 25 जुलाई 2025 तक मतदाताओं को एन्यूमरेशन फॉर्म (EF) जमा करने का समय दिया गया है। इसके बाद 1 अगस्त को ड्राफ्ट मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी और 30 सितंबर को अंतिम सूची।
मुख्य समयसीमा
- 25 जून 2025: SIR की शुरुआत
- 25 जुलाई 2025: Enumeration Form (EF) जमा करने की अंतिम तिथि
- 1 अगस्त 2025: ड्राफ्ट मतदाता सूची का प्रकाशन
- 1 अगस्त – 30 सितंबर 2025: आपत्तियों और दावों का निपटारा
- 30 सितंबर 2025: अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन
निर्वाचन आयोग के अनुसार, 12 जुलाई तक 6,32,59,497 फॉर्म एकत्र किए जा चुके हैं, यानी कुल अनुमानित मतदाताओं का 80.11% हिस्सा फॉर्म जमा कर चुका है। यह एक बड़ा कदम है, विशेषकर बिहार जैसे बड़े राज्य में।
विदेशी नागरिकों की पहचान: संवेदनशील मामला
13 जुलाई को ECI सूत्रों ने बताया कि SIR के दौरान बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) ने बड़ी संख्या में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए लोगों को बिहार में रहते हुए पाया है। ऐसे लोगों के पास भारतीय नागरिकता के पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं।
सूत्रों ने कहा:
“इन व्यक्तियों के नाम अंतिम मतदाता सूची में शामिल नहीं किए जाएंगे। 1 अगस्त के बाद उनके मामलों की उचित जांच की जाएगी और तभी निर्णय लिया जाएगा।”
यह बयान कई सवाल खड़े करता है:
- क्या ये लोग पहले से मतदाता सूची में शामिल थे?
- यदि हां, तो पिछली जांच प्रक्रिया में चूक कहां हुई?
- क्या इन व्यक्तियों ने पहले मतदान किया है?
- क्या इसके पीछे संगठित पहचान धोखाधड़ी है?
बिहार की भौगोलिक स्थिति — खासकर नेपाल और बंगाल की सीमाओं के निकटवर्ती जिलों — को देखते हुए यह समस्या नई नहीं है, लेकिन इस बार आयोग की सतर्कता अधिक रही है।
सुप्रीम कोर्ट की दखल: दस्तावेजों की स्वीकार्यता पर सवाल
10 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार SIR को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वह आधार कार्ड, EPIC कार्ड और राशन कार्ड को भी पहचान प्रमाण के तौर पर स्वीकार करने पर विचार करे।
ECI द्वारा निर्धारित 11 दस्तावेजों की सूची में इन सामान्य पहचान पत्रों को शामिल नहीं किया गया था, जिससे मतदाताओं में भ्रम और नाराजगी देखी गई। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि ये सबसे सामान्य पहचान पत्र हैं और इन्हें अस्वीकार करना लाखों वैध मतदाताओं को मतदाता सूची से बाहर कर सकता है।
अब यह मामला 28 जुलाई को फिर से सर्वोच्च न्यायालय में सुना जाएगा, ठीक उस समय जब ड्राफ्ट सूची जारी होने वाली है।
ECI ने आधार, EPIC और राशन कार्ड को क्यों बाहर रखा?
ECI का तर्क यह है कि आधार, EPIC और राशन कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं हैं।
- आधार कार्ड: केवल निवास प्रमाण है, न कि नागरिकता का।
- EPIC (वोटर ID): पूर्व में कई मामलों में फर्जी पाए गए हैं।
- राशन कार्ड: राज्य सरकार द्वारा जारी होते हैं और नागरिकता की पुष्टि नहीं करते।
ECI का उद्देश्य है कि केवल उन्हीं लोगों को सूची में शामिल किया जाए जो भारतीय नागरिक हैं और इसके लिए अधिक सटीक दस्तावेज जैसे जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल प्रमाण पत्र, जमीन-सम्पत्ति के दस्तावेज आदि को अनिवार्य किया गया है।
मैदानी स्तर पर निगरानी और क्रियान्वयन
SIR के सफल संचालन के लिए निम्नलिखित अधिकारियों की तैनाती की गई है:
- 38 जिला निर्वाचन अधिकारी (DEOs)
- 243 निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (EROs)
- 963 सहायक EROs (AEROs)
इन सभी को राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) द्वारा लगातार निगरानी में रखा गया है। 12 जुलाई तक सभी EF की छपाई 100% पूरी हो चुकी है और लगभग सभी का वितरण हो चुका है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और सामाजिक चिंता
इस पूरी प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं भी भिन्न रही हैं:
- भाजपा और जदयू: इस प्रक्रिया का समर्थन करते हुए कहा कि यह आवश्यक था ताकि फर्जी और विदेशी मतदाताओं को बाहर किया जा सके।
- राजद और कांग्रेस: आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया गरीब और अल्पसंख्यक समुदायों को मतदाता सूची से बाहर करने की कोशिश हो सकती है।
- सिविल सोसायटी और सामाजिक कार्यकर्ता: आरोप है कि आम जनता के पास जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज नहीं हैं, और आधार, EPIC जैसे दस्तावेज ही उनके पास होते हैं। इनको अस्वीकार करना न्यायसंगत नहीं है।
अंतिम मतदाता सूची: संभावित प्रभाव
30 सितंबर 2025 को जब अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होगी, तब यह स्पष्ट हो पाएगा कि कितने लोगों को सूची में से हटाया गया और कितनों को जोड़ा गया।
प्रमुख प्रभाव:
- मतदाता वैधता की पहचान
- ग़लत ढंग से वंचित हुए लोगों के लिए कानूनी विकल्प
- राजनीतिक संतुलन में बदलाव की संभावना
- नागरिकता और सीमा सुरक्षा पर नई बहस
निष्कर्ष: लोकतंत्र की कसौटी पर ECI की पारदर्शिता
बिहार में SIR सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं रही, यह अब नागरिकता, मतदान अधिकार, और लोकतांत्रिक मूल्यों का गंभीर विषय बन चुका है। एक ओर यह विदेशी नागरिकों की पहचान कर चुनावी पारदर्शिता को मजबूत कर सकता है, वहीं दूसरी ओर गलत तरीके से वैध मतदाताओं की छंटनी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आहत कर सकती है।
अब निगाहें 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और 1 अगस्त को ड्राफ्ट मतदाता सूची के प्रकाशन पर टिकी हैं।
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