महाराष्ट्र की राजनीति में विवाद कोई नई बात नहीं है, लेकिन कुछ नेता ऐसे होते हैं जो बार-बार अपने बयानों और व्यवहारों से सुर्खियों में छा जाते हैं। बुलढाणा से शिवसेना (शिंदे गुट) के विधायक संजय गायकवाड़ उन्हीं चेहरों में से एक हैं, जिनकी पहचान अब एक विधायक से ज्यादा विवादप्रिय व्यक्तित्व के तौर पर होती जा रही है। कभी राहुल गांधी की ज़ुबान काटने पर इनाम की घोषणा, तो कभी मतदाताओं की तुलना वेश्याओं से करना — गायकवाड़ ने बार-बार मर्यादा की सीमाएं लांघी हैं।
उनका ताज़ा विवाद मुंबई के चर्चगेट स्थित विधायकों के कैंटीन में एक कर्मचारी को थप्पड़ मारने और ज़मीन पर गिराने का है, जिसमें वह दाल की गुणवत्ता को लेकर भड़क उठे। इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या जनप्रतिनिधियों को कानून से ऊपर मान लिया गया है?
1. ताज़ा विवाद: दाल के बहाने हमला
मुंबई के विधायक निवास में स्थित कैंटीन में सोमवार को जो हुआ, वह किसी आम खाने की शिकायत से कहीं ज़्यादा था। विधायक संजय गायकवाड़ ने दाल की गुणवत्ता खराब होने के आरोप में कैंटीन के एक कर्मचारी को सरेआम थप्पड़ मारा और उस पर मुक्के बरसाए। मार से कर्मचारी ज़मीन पर गिर पड़ा। यह पूरा घटनाक्रम वहां मौजूद किसी व्यक्ति ने कैमरे में कैद कर लिया और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
जब मीडिया ने गायकवाड़ से संपर्क किया, तो उन्होंने आरोप लगाया कि दाल सड़ी हुई थी, जिसके कारण उन्हें उल्टी आ गई और तबीयत खराब हो गई। उनके अनुसार, उन्होंने कैंटीन कर्मचारियों को कई बार ताज़ा खाना देने की चेतावनी दी थी, लेकिन लगातार शिकायतों के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ।
गायकवाड़ ने कहा,
“मैंने सिर्फ दाल, चावल और दो रोटी मंगाई थी। कुछ निवाले खाते ही मेरी तबीयत बिगड़ गई। मैंने उल्टी कर दी। मैं सीधा कैंटीन गया, कपड़े भी नहीं बदले। मैंने उनसे सूंघकर खाने की हालत देखने को कहा। मैनेजर ने भी माना कि खाना खराब था।”
लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि क्या खराब भोजन पर प्रतिक्रिया देना का यही तरीका है? क्या एक विधायक को यह हक है कि वह सार्वजनिक स्थान पर किसी कर्मचारी के साथ मारपीट करे?
2. मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम की प्रतिक्रिया
इस घटना पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री (शिवसेना प्रमुख) एकनाथ शिंदे ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। फडणवीस ने इसे “जन प्रतिनिधि के लिए शर्मनाक व्यवहार” बताया, जबकि शिंदे ने कहा कि पार्टी इसे गंभीरता से ले रही है और आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन यथार्थ में अब तक शिंदे गुट या शिवसेना की ओर से विधायक गायकवाड़ पर कोई कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं हुई है। पार्टी की चुप्पी और ढील इस बात का संकेत देती है कि सत्ता पक्ष में बैठे विधायक किसी भी मर्यादा के उल्लंघन पर भी बच निकलते हैं।
3. पुराने विवाद: भाषण नहीं, धमकी का रिकॉर्ड
संजय गायकवाड़ का नाम सिर्फ मारपीट तक सीमित नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने कई बार ऐसे बयान दिए हैं, जो न सिर्फ असंवैधानिक हैं, बल्कि आपराधिक प्रकृति के हैं।
a. राहुल गांधी की ज़ुबान काटने का इनाम
सितंबर 2024 में राहुल गांधी के आरक्षण पर दिए गए बयान को लेकर गायकवाड़ ने ऐलान किया था कि जो कोई भी राहुल गांधी की ज़ुबान काटकर लाएगा, उसे 11 लाख रुपये का इनाम दिया जाएगा।
उन्होंने कहा था,
“राहुल गांधी ने अमेरिका में कहा कि वह भारत से आरक्षण खत्म करना चाहते हैं। यह कांग्रेस का असली चेहरा उजागर करता है।”
यह बयान न सिर्फ आपराधिक उकसावे के अंतर्गत आता है, बल्कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ एक सीधा हमला भी है। बावजूद इसके, विधायक के खिलाफ कोई गंभीर कानूनी कार्रवाई नहीं हुई।
b. मतदाताओं की तुलना वेश्याओं से
जनवरी 2025 में गायकवाड़ ने एक और विवादित बयान देते हुए कहा था कि
“जो मतदाता शराब, मटन और दो हज़ार रुपये में वोट बेचते हैं, वे वेश्याओं से भी बदतर हैं।”
यह बयान एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम नागरिकों का अपमान है। एक निर्वाचित विधायक द्वारा अपने ही मतदाताओं के लिए ऐसी भाषा का उपयोग चिंताजनक है।
4. ‘शेट्टियों’ पर टिप्पणी और भाषा विवाद
गायकवाड़ ने हालिया हमले के बाद एक और नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा कि
“अगर मराठियों को विधायकों की कैंटीन चलाने की अनुमति दी जाती, तो खाने की गुणवत्ता खराब नहीं होती। ये शेट्टी लोग हमारे स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।”
यह बयान सीधे तौर पर एक समुदाय विशेष के खिलाफ है और महाराष्ट्र में पहले से चल रहे भाषा विवाद को और भड़काता है। पिछले कुछ समय से महाराष्ट्र में मराठी बनाम दक्षिण भारतीय भाषी समुदायों को लेकर तनाव की खबरें आती रही हैं।
शेट्टी समुदाय, विशेष रूप से होटल और खानपान के क्षेत्र में सक्रिय है और इस तरह का आरोप लगाना क्षेत्रवाद और भाषावाद को हवा देना है।
5. बाघ की हत्या और वन्य जीव अधिनियम का उल्लंघन
गायकवाड़ ने फरवरी 2024 में दावा किया था कि उन्होंने 1987 में एक बाघ का शिकार किया था और उसकी दाँत को अपने गले में पहनते हैं। इस बयान के बाद वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया।
भारत में बाघ एक संरक्षित प्रजाति है और इसका शिकार पूरी तरह से गैरकानूनी है। यह बयान यह साबित करता है कि विधायक को न तो कानून का डर है और न ही पर्यावरणीय जिम्मेदारी का अहसास।
6. पुलिसकर्मी से कार धोने का मामला
एक अन्य वायरल वीडियो में देखा गया कि एक वर्दीधारी पुलिसकर्मी गायकवाड़ की गाड़ी धो रहा है। जब इस पर सवाल उठे, तो विधायक ने सफाई दी कि
“मुझे उल्टी हो गई थी और पुलिसवाले ने स्वेच्छा से गाड़ी साफ की।”
हालांकि यह तर्क कानून व्यवस्था और पुलिस की गरिमा पर सवाल खड़ा करता है। क्या एक विधायक के लिए पुलिस के कर्तव्यों का दुरुपयोग करना जायज है?
7. क्या लोकतंत्र में जवाबदेही सिर्फ जनता की है?
संजय गायकवाड़ जैसे जनप्रतिनिधियों के लगातार विवादित बर्ताव पर राजनीतिक दलों की चुप्पी, पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता और न्याय प्रणाली की धीमी प्रतिक्रिया यह संकेत देती है कि लोकतंत्र में जवाबदेही सिर्फ जनता पर नहीं होनी चाहिए। निर्वाचित प्रतिनिधियों को भी संविधान, मर्यादा और कानून की सीमाओं का पालन करना चाहिए।
शिवसेना (शिंदे गुट) को यह तय करना होगा कि क्या वह ऐसे नेताओं को संरक्षण देती रहेगी जो बार-बार लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन करते हैं। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की आलोचना के बावजूद अगर गायकवाड़ पर कोई कार्रवाई नहीं होती, तो यह संदेश जाएगा कि सत्ता में बैठे लोग कानून से ऊपर हैं।
निष्कर्ष: क्या सख्ती होगी या फिर से बख्शे जाएंगे?
संजय गायकवाड़ के मामलों की सूची लंबी होती जा रही है — जुबान से लेकर हाथ तक, हर बार उन्होंने लोकतांत्रिक सीमाएं लांघी हैं। अब प्रश्न यह है कि क्या महाराष्ट्र की राजनीति में कोई ऐसा तंत्र है, जो ऐसे विधायकों को उत्तरदायी ठहरा सके?
क्या विधानसभा में एक साधारण कैंटीन कर्मचारी की पिटाई महज़ “दाल” तक सीमित रहेगी या यह घटना जनता, सरकार और न्यायपालिका के लिए एक चेतावनी बनेगी?
अगर इस बार भी गायकवाड़ जैसे नेता बिना किसी गंभीर परिणाम के बच निकलते हैं, तो यह न सिर्फ महाराष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति, बल्कि पूरे लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत होगा।
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