भूमिका:
हाल ही में मीडिया में यह खबर तेजी से फैली कि एक रूसी महिला अपने बच्चों को भारत के कर्नाटक राज्य के गोकर्णा क्षेत्र के जंगलों में कथित रूप से खतरनाक और अस्वास्थ्यकर हालात में पाल रही थी। सोशल मीडिया और कुछ राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स ने इस मुद्दे को एक “अत्याचार” और “लापरवाही” का मामला बताया। लेकिन अब कुटीना ने खुद सामने आकर अपनी बात रखी है। उनका पक्ष तथाकथित खबरों के बिल्कुल उलट है। उनका कहना है कि उन्होंने अपने बच्चों को प्राकृतिक, स्वास्थ्यवर्धक और रचनात्मक जीवन देने की कोशिश की और जो कहा जा रहा है, वह सब झूठ है।
‘हम जंगल में मरे नहीं, बल्कि जिए और खूब सीखा’: कुटीना
कुटीना ने कहा कि वे और उनके बच्चे प्रकृति में रह रहे थे, लेकिन उस जीवन में कोई अस्वस्थता या खतरनाक स्थिति नहीं थी। उन्होंने कहा:
“आपने बहुत झूठी बातें फैलाई हैं। हमें जंगल में रहने का बड़ा अनुभव है, हम कभी नहीं मरे, और मैं अपनी बेटियों को मरने के लिए नहीं लाई थी। वे बहुत खुश थीं। वे झरनों में नहाती थीं, बहुत अच्छा सोने का स्थान था, कला की कक्षाएं होती थीं, हम मिट्टी से कुछ बनाते थे, चित्रकारी करते थे। मैं गैस से अच्छा और स्वादिष्ट खाना बनाती थी।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके पास सब कुछ था—पहनने के लिए कपड़े, अच्छा खाना, सुरक्षित सोने की जगह, और शिक्षा भी।
“उनके पास सबसे अच्छा सब कुछ था। वे खुश थीं, अच्छा सोती थीं, चित्रकारी करती थीं, पढ़ना-लिखना सीख रही थीं। वे भूख से नहीं मर रही थीं, यह सब झूठ है।”
‘मैंने अपने अनुभव को सालों से ऑनलाइन साझा किया है’
कुटीना ने कहा कि उन्होंने अपने जीवनशैली को सोशल मीडिया पर खुले तौर पर साझा किया है:
“मेरे पास सोशल मीडिया पर बहुत सी वेबसाइट्स और प्रोफाइल्स हैं, जहां मेरे जीवन के अनुभवों के वीडियो हैं। हम लगभग 20 देशों में रह चुके हैं—जंगलों में, प्राकृतिक जगहों में। हमें प्रकृति से प्रेम है।”
‘हमें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन मेरे बच्चे पूरी तरह स्वस्थ हैं’
जब प्रशासन उन्हें और उनके बच्चों को अस्पताल ले गया, तो उन्हें किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं मिली। कुटीना ने बताया:
“आज हमें अस्पताल ले जाया गया। यह पहली बार था जब मेरी बेटियां अस्पताल गईं। वे पूरी तरह से स्वस्थ हैं। कभी भी बीमार नहीं रही हैं। न कोई दर्द, न कोई परेशानी।”
‘गुफा एक सुरक्षित और सुंदर स्थान था’
उनका कहना है कि वे जिस गुफा में रह रही थीं, वह न तो खतरनाक थी और न ही दूर-दराज के इलाके में:
“हम प्राकृतिक जीवन पसंद करते हैं। यह गुफा कोई बड़ा, गहरा जंगल नहीं था। यह गांव के पास था, और बहुत ही सुंदर गुफा थी—छोटी नहीं, बहुत बड़ी, समुद्र के दृश्य के साथ।”
“यह कोई खतरनाक स्थान नहीं था। हर तीन मिनट में पर्यटक वहां पहुंच सकते थे। जहाँ तक साँपों की बात है, हाँ, कुछ साँप हमने देखे, लेकिन गोकर्णा के ग्रोव में लोग तस्वीरें डालते हैं जहाँ साँप उनके घर, रसोई, टॉयलेट तक में पहुंचते हैं। सब एक जैसा ही है।”
‘वीजा की वैधता समाप्त हो गई थी, लेकिन ओवरस्टे नहीं किया’
कुटीना ने यह स्वीकार किया कि उनका वीजा समाप्त हो गया था, लेकिन उन्होंने 2017 से ओवरस्टे के आरोपों को नकारा:
“यह झूठ है। उन्होंने मेरा पुराना पासपोर्ट देखा और बिना जांचे कह दिया कि हमने ओवरस्टे किया। 2017 के बाद हम चार देशों में गए, भारत से बाहर और फिर वापिस आए। वीजा हाल ही में समाप्त हुआ था।”
‘बेटे की मृत्यु के बाद थोड़ी देर और रुकी’
अपने बेटे की मृत्यु का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा:
“मेरे बेटे की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद मैं कुछ और समय रुकी। लेकिन उतना नहीं, जितना बताया जा रहा है।”
‘रूस में नहीं रहती, 15 साल से यात्रा में हूँ’
कुटीना ने कहा कि वे रूस में पैदा हुई थीं, लेकिन पिछले 15 वर्षों से वहां नहीं रह रहीं।
“मैंने कोस्टा रिका, मलेशिया, बाली, थाईलैंड, नेपाल और यूक्रेन में समय बिताया है।”
‘हम आध्यात्मिकता के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक जीवन जीते हैं’
कई रिपोर्ट्स में कहा गया कि वे एक आध्यात्मिक जीवन की तलाश में थीं, लेकिन कुटीना ने इस धारणा को नकारा:
“यह सिर्फ आध्यात्मिकता के लिए नहीं है, जैसा कि वे लिखते हैं। हम प्राकृतिक जीवन जीते हैं क्योंकि यह हमें स्वास्थ्य देता है। यह बहुत बड़ा स्वास्थ्य है। यह वैसा नहीं है जैसे कोई घर में रहता हो।”
‘हमारा जीवन बहुत आरामदायक था’
उन्होंने दावा किया कि उनके बच्चों के पास आरामदायक जीवन था:
“बहुत आरामदायक। मेरे पास टेलीग्राम चैनल है, जहां गुफा में बिताए हर समय की फोटो और वीडियो हैं—हम क्या खा रहे हैं, कैसे स्वादिष्ट खाना बनाते हैं, कैसे कला, पेंटिंग, मिट्टी से चीजें बनाते हैं, सबकुछ।”
निष्कर्ष:
कुटीना की यह पूरी बयानबाज़ी मीडिया और सोशल मीडिया में चल रही एकतरफा रिपोर्टों पर गंभीर सवाल उठाती है। उनकी बातों से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने किसी भी तरह से अपने बच्चों को खतरे में नहीं डाला, बल्कि एक वैकल्पिक जीवनशैली अपनाई जो प्रकृति, कला और स्वतंत्रता पर आधारित थी। यह मामला भारत में प्रवासी अधिकार, वैकल्पिक जीवनशैली, बच्चों की सुरक्षा और मीडिया नैरेटिव की जिम्मेदारी पर भी विमर्श को जन्म देता है।
कुटीना का पक्ष इस पूरी कहानी का एक और दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है—ऐसा दृष्टिकोण जो यह दिखाता है कि हर ‘असामान्य’ जीवन विकल्प असहायता या लापरवाही का पर्याय नहीं होता।
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