भारत और चीन के बीच लंबे समय से चला आ रहा सीमा विवाद एक बार फिर वैश्विक मंच पर चर्चा का केंद्र बना है। इस बार मौका था शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक का, जो चीन के क़िंगदाओ शहर में आयोजित हुआ। इस बैठक के इतर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून के बीच महत्वपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता हुई। इस मुलाकात ने दोनों देशों के संबंधों में स्थिरता लाने और सीमा पर शांति बनाए रखने की उम्मीदें फिर से जगाई हैं।
सीमा विवाद: रेखांकन की पुरानी मांग पर नया ज़ोर
भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी हिमालयी सीमा है, जिसे अब तक स्पष्ट रूप से चिह्नित नहीं किया गया है। यही अस्पष्टता समय-समय पर विवाद और तनाव की जड़ बनती रही है। इसी संदर्भ में राजनाथ सिंह ने चीन के समकक्ष से सीमा के स्थायी रेखांकन की पुरानी मांग को फिर से दोहराया। भारतीय रक्षा मंत्रालय के अनुसार, उन्होंने बातचीत के दौरान इस विषय पर “गंभीर और स्पष्ट” चर्चा की और सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए स्थापित द्विपक्षीय संवाद प्रक्रियाओं को फिर से सक्रिय करने का आग्रह किया।
राजनाथ सिंह ने यह भी कहा कि जब तक सीमा का स्पष्ट निर्धारण नहीं होता, तब तक भ्रम और टकराव की आशंका बनी रहेगी। उन्होंने सीमा पर शांति बनाए रखने को भारत-चीन संबंधों के लिए मूलभूत शर्त बताया और यह रेखांकित किया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर यथास्थिति को एकतरफा तरीके से बदलने का कोई भी प्रयास स्वीकार्य नहीं होगा।
चीन की प्रतिक्रिया: “विवाद सुलझाने की इच्छा” भर तक सीमित
चीन की आधिकारिक समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने इस बैठक को लेकर एक बयान जारी किया, लेकिन उसमें सीमा निर्धारण या रेखांकन के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया। बयान केवल इतना कहता है कि भारत “विवादों को सुलझाने का इच्छुक” है। इससे स्पष्ट होता है कि चीन इस विषय पर खुलकर संवाद करने से अभी भी बच रहा है।
2020 की झड़पें: तनाव की चरम स्थिति
भारत-चीन संबंधों में सबसे बड़ा झटका जून 2020 में तब लगा था, जब गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारत के कम से कम 20 सैनिक और चीन के चार सैनिक मारे गए थे। इस घटना के बाद दोनों देशों ने सीमा पर भारी संख्या में सैनिक, टैंक, मिसाइल और लड़ाकू विमान तैनात कर दिए थे। द्विपक्षीय संबंधों में आई इस तीव्र गिरावट ने दोनों देशों के बीच सामरिक संवाद को लगभग ठप कर दिया था।
मोदी-शी मुलाकात: संवाद की शुरुआत
हालांकि, पिछले वर्ष रूस में हुई BRICS बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात के बाद दोनों देशों के संबंधों में कुछ हद तक सुधार देखा गया। इस मुलाकात ने उच्चस्तरीय संवाद की एक नई राह खोली, जिसे अब राजनाथ सिंह की इस यात्रा ने और गति देने की कोशिश की है।
विशेष दूतों की वार्ता और अगली बैठक की तैयारी
सीमा विवाद के स्थायी समाधान के लिए दोनों देशों ने विशेष दूत नियुक्त किए हैं, जो अब तक कई दौर की वार्ता कर चुके हैं। विदेश मंत्रालय ने हाल ही में बयान जारी कर बताया था कि जल्द ही भारत में विशेष दूतों की एक और बैठक आयोजित की जाएगी, जो इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।
रूस के साथ द्विपक्षीय बैठक: रक्षा सहयोग पर चर्चा
क़िंगदाओ में राजनाथ सिंह ने चीन के अलावा रूस के नवनियुक्त रक्षा मंत्री आंद्रेई बेलोउसॉव से भी मुलाकात की। इस द्विपक्षीय बैठक में भारत-रूस रक्षा सहयोग को और मजबूत करने की दिशा में कई मुद्दों पर चर्चा हुई। भारत ने S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की डिलीवरी में तेजी लाने, Su-30MKI फाइटर जेट्स को अपग्रेड करने और अत्याधुनिक सैन्य साजोसामान की खरीद को लेकर अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट कीं।
यह बैठक ऐसे समय पर हुई है जब रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण उसकी सैन्य आपूर्ति श्रृंखला पर दबाव बना हुआ है। इसके बावजूद भारत-रूस रक्षा संबंधों में निरंतरता बनाए रखने की इस कोशिश को रणनीतिक दृष्टि से बेहद अहम माना जा रहा है।
निष्कर्ष: भविष्य की राह
राजनाथ सिंह की यह चीन यात्रा और उनकी सख्त, लेकिन संतुलित कूटनीति यह दर्शाती है कि भारत अब सीमा विवाद को अनिश्चितता में छोड़ने के मूड में नहीं है। एक दशक बाद किसी शीर्ष भारतीय नेता द्वारा सीमा रेखांकन की इतनी स्पष्ट मांग एक मजबूत संदेश देती है कि भारत अब केवल “शांति और स्थिरता” की बात नहीं, बल्कि स्थायी समाधान चाहता है।
हालांकि चीन की प्रतिक्रिया फिलहाल संयमित और अस्पष्ट रही है, लेकिन राजनाथ सिंह की इस पहल ने दोनों देशों के बीच रुके हुए संवाद को गति देने का काम किया है। वहीं, रूस के साथ रक्षा सहयोग को आगे बढ़ाने की दिशा में भी यह दौरा अहम रहा है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या चीन इस बार भारत की पहल को गंभीरता से लेता है, या फिर एक बार फिर बातचीत का यह सिलसिला धुंध में खो जाता है।Tools
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