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हिमाचल प्रदेश में बारिश का कहर: भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ से 80 मौतें, तबाही का आंकड़ा भयावह

Rain havoc in Himachal Pradesh: 80 deaths due to landslides, cloudburst and floods, the number of devastation is horrifying

हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष का मानसून कहर बनकर टूटा है। बादल फटने, भूस्खलन, बिजली गिरने, डूबने और बारिश से जुड़े अन्य हादसों में अब तक 80 लोगों की मौत हो चुकी है। यह आंकड़ा राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) की 20 जून से 7 जुलाई तक की रिपोर्ट में सामने आया है। राज्य के कई जिले—विशेषकर मंडी, कांगड़ा, कुल्लू और शिमला—इस तबाही के केंद्र में हैं, जहां जान-माल का भारी नुकसान हुआ है।


मानसून बना मौत का पैग़ाम

पिछले दो सप्ताहों से हिमाचल प्रदेश में लगातार बारिश हो रही है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, 14 मौतें बादल फटने, 8 मौतें फ्लैश फ्लड (अचानक बाढ़), 1 मौत भूस्खलन, जबकि बाकी मौतें बिजली गिरने, बहाव में बहने, और गिरने जैसी अन्य बारिश-जनित घटनाओं में हुई हैं।

SDMA के मुताबिक, कम-से-कम 52 मौतें सीधे-सीधे प्राकृतिक आपदा की वजह से हुई हैं, जबकि बाकी अप्रत्यक्ष रूप से मानसून के प्रभाव से जुड़ी हैं।


सबसे ज़्यादा प्रभावित ज़िले: मंडी और कांगड़ा

मंडी जिला – तबाही का केंद्र

इस बार सबसे बुरी मार मंडी जिले पर पड़ी है, जहां कम से कम 17 मौतें दर्ज की गई हैं। भारी बारिश से नदियाँ उफान पर हैं, सड़कें टूट गई हैं, पुल बह गए हैं और कई गाँवों का संपर्क कट चुका है।

गांवों में बिजली और पानी की आपूर्ति बाधित है और भूस्खलनों की वजह से कई परिवारों को रातों-रात अपने घर छोड़ने पड़े।

कांगड़ा जिला – दूसरी सबसे गंभीर स्थिति

कांगड़ा जिला दूसरा सबसे प्रभावित इलाका रहा, जहां 11 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। यहां बादल फटने की कई घटनाएं सामने आई हैं और कई गांवों में जलभराव और मिट्टी धंसने की खबरें हैं।


तबाही के आँकड़े – एक भयावह तस्वीर

SDMA द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में मानसून से अब तक जो नुकसान हुआ है, उसका ब्योरा चौंकाने वाला है:

  • 128 लोग घायल
  • 320 घर पूरी तरह से ध्वस्त
  • 38 घर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त
  • 10,254 पशु और पोल्ट्री की मौत
  • ₹69,265.60 लाख (लगभग ₹692 करोड़) की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान

इनमें मुख्य रूप से सड़कें, पुल, विद्युत लाइनों, और पानी की आपूर्ति की व्यवस्था शामिल हैं।


प्राकृतिक आपदाएं: फ्लैश फ्लड, क्लाउडबर्स्ट, लैंडस्लाइड

राज्य में इस मानसून सीज़न में अब तक:

  • 23 फ्लैश फ्लड (अचानक बाढ़)
  • 19 क्लाउडबर्स्ट (बादल फटने की घटनाएं)
  • 16 भूस्खलन (लैंडस्लाइड)

रिपोर्ट की गई हैं। इन घटनाओं ने राज्य की संवेदनशील भौगोलिक स्थिति और जलवायु संकट की गंभीरता को उजागर कर दिया है।


बुनियादी ढांचे पर मार

राज्य भर में सड़कों का जाल बुरी तरह प्रभावित हुआ है। खासतौर पर नेशनल हाईवे 3 और 5, जो कुल्लू-मनाली और शिमला-किन्नौर को जोड़ते हैं, भूस्खलन के कारण बार-बार बंद हो रहे हैं।

रेल सेवाएं भी कई स्थानों पर बाधित हुई हैं। पुलों के टूटने और सड़कों के बह जाने से ग्रामीण क्षेत्रों में राहत पहुंचाना चुनौती बन गया है।


राहत और बचाव कार्य

राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिलकर राहत कार्यों को तेज़ी से अंजाम दे रही हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) की टीमें स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर राहत और बचाव अभियान चला रही हैं।

अब तक:

  • सैकड़ों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया
  • कई राहत शिविरों की स्थापना की गई है
  • पानी, राशन, दवाइयों की आपूर्ति प्रभावित क्षेत्रों में की जा रही है

सतर्कता और चेतावनी

SDMA ने आम जनता से अपील की है कि वे:

  • नदी किनारों से दूर रहें
  • तेज़ ढलानों और निर्माणाधीन क्षेत्रों से बचें
  • भूस्खलन संभावित इलाकों में अनावश्यक यात्रा से बचें

सरकार ने स्कूलों को अस्थायी रूप से बंद करने और पार्कों व पर्यटन स्थलों तक आम लोगों की आवाजाही पर रोक लगाने जैसे कदम उठाए हैं।


पर्यटन पर असर

हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बड़ा योगदान है। लेकिन बारिश और आपदाओं के कारण:

  • पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई है
  • कई होटल और रिज़ॉर्ट्स को नुकसान हुआ है
  • मनाली, कसौली, धर्मशाला जैसे पर्यटन केंद्रों में बुकिंग रद्द हुई हैं

जलवायु परिवर्तन की भूमिका

विशेषज्ञों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण अब मॉनसून का पैटर्न अनियमित और खतरनाक होता जा रहा है
पहले जहां बारिश धीरे-धीरे होती थी, अब वही पानी कुछ घंटों में गिर जाता है, जिससे:

  • भूस्खलन की संभावना बढ़ती है
  • क्लाउडबर्स्ट की घटनाएं सामान्य हो गई हैं
  • नदियां अचानक उफान पर आ जाती हैं

विशेषज्ञों की राय

वातावरण वैज्ञानिकों और आपदा प्रबंधन विशेषज्ञों का कहना है कि:

  • हिमाचल प्रदेश को “वेदर रेसिलियंट इंफ्रास्ट्रक्चर” (मौसम प्रतिरोधी संरचनाएं) की जरूरत है
  • पहाड़ों में अनियोजित निर्माण और अवैध खनन को रोकना होगा
  • पूर्वानुमान प्रणाली और रियल-टाइम चेतावनी तंत्र को मज़बूत करना जरूरी है

आगे की रणनीति

राज्य सरकार ने केंद्र से विशेष राहत पैकेज की मांग की है और प्रधानमंत्री राहत कोष से भी सहायता की अपील की गई है।

इसके अलावा:

  • रिहायशी इलाकों में आपदा चेतावनी तंत्र लगाया जा रहा है
  • स्थानीय प्रशासन को आपातकालीन बजट जारी किया गया है
  • Panchayat स्तर पर आपदा प्रबंधन समितियों को सक्रिय किया गया है

निष्कर्ष

हिमाचल प्रदेश में इस बार की बारिश केवल एक मौसमी घटना नहीं रही—यह एक गंभीर मानवीय और पर्यावरणीय आपदा बन चुकी है।
80 मौतें, सैकड़ों घायलों, लाखों की संपत्ति का नुकसान और बर्बाद होती ज़िंदगियाँ… ये आँकड़े केवल संख्या नहीं, एक त्रासदी की गवाही हैं।

यह जरूरी है कि राज्य सरकार, केंद्र और आम नागरिक सभी मिलकर इस चुनौती का सामना करें। साथ ही हमें यह भी समझना होगा कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का जवाब प्रकृति इसी तरह देती है—भीषण, निर्दयी और चेतावनी भरी।

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