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राहुल गांधी का तीखा हमला: “मोदी सरकार के पास नारे हैं, समाधान नहीं”

Rahul Gandhi's scathing attack: "Modi government has slogans, not solutions"

भूमिका: विपक्ष के तेवर तीखे, केंद्र पर सीधा हमला
21 जून 2025 को कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री सिर्फ “नारों की कला” में माहिर हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस समाधान नहीं दे पाए। उनके बयान का फोकस ‘मेक इन इंडिया’, पीएलआई योजना, बढ़ती बेरोजगारी और चीन से बढ़ते आयात जैसे प्रमुख आर्थिक मुद्दों पर था।


‘मेक इन इंडिया’ पर सवाल
राहुल गांधी ने कहा कि 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ का जबरदस्त प्रचार हुआ था, उम्मीद थी कि देश में कारखानों की बाढ़ आएगी और युवा वर्ग को रोजगार मिलेगा। लेकिन हकीकत इससे उलट निकली। उन्होंने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा:

“मेक इन इंडिया ने कारखानों में उछाल का वादा किया था। तो विनिर्माण रिकॉर्ड निचले स्तर पर क्यों है, युवा बेरोजगारी रिकॉर्ड ऊंचाई पर क्यों है, और चीन से आयात दोगुने से अधिक क्यों हो गया है?”

उनका आरोप है कि 2014 से लेकर अब तक भारत का विनिर्माण जीडीपी में 14% तक सिमट कर रह गया है, जो किसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए बेहद चिंताजनक है।


“नारे हैं, समाधान नहीं”: मोदी सरकार पर कटाक्ष
राहुल गांधी का कहना था कि प्रधानमंत्री मोदी को नारे गढ़ने की कला में महारत हासिल है, लेकिन वे ठोस रणनीति और परिणाम देने में नाकाम रहे हैं। उन्होंने कहा:

“मोदी जी ने नारों की कला में महारत हासिल कर ली है, समाधान में नहीं।”

उन्होंने दावा किया कि ‘मेक इन इंडिया’ हो, ‘स्टार्टअप इंडिया’ हो या ‘आत्मनिर्भर भारत’ — सब केवल नारों तक सीमित रह गए हैं। जमीन पर इनके नतीजे दिखाई नहीं दे रहे।


PLI योजना पर भी उठाए सवाल
राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार की बहुप्रचारित प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना को भी “चुपचाप” बंद कर दिया गया है। इस योजना का उद्देश्य भारत में मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना था, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और ऑटोमोबाइल सेक्टर में।

उनके मुताबिक, यह योजना भी केवल कुछ चुनिंदा कॉर्पोरेट्स को फायदा पहुंचाने का जरिया बनी, आम उद्यमियों और युवाओं के लिए इसका कोई लाभ नहीं दिखा।


‘मेड इन इंडिया’ बनाम ‘असेंबल इन इंडिया’
दिल्ली के नेहरू प्लेस में मोबाइल रिपेयर तकनीशियनों से मुलाकात के दौरान राहुल गांधी ने कहा:

“हम मेड इन इंडिया नहीं कर रहे, हम सिर्फ असेंबल इन इंडिया कर रहे हैं। चीन से पुर्जे मंगाकर यहां जोड़ देना निर्माण नहीं होता।”

उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को असली निर्माण शक्ति (manufacturing capability) विकसित करनी होगी, तभी देश आत्मनिर्भर बन सकता है।


चीन से आयात और भारत की निर्भरता
राहुल गांधी का एक बड़ा आरोप यह भी था कि चीन से भारत का आयात लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि भारत की नीति ऐसी बन गई है कि हम खुद निर्माण करने की जगह चीनी सामान खरीदने पर निर्भर हो गए हैं। उन्होंने कहा:

“अगर हम निर्माण नहीं करेंगे, तो हम उनसे खरीदते रहेंगे जो निर्माण करते हैं। और इसका लाभ चीन को होता रहेगा।”


तकनीकी शिक्षा और स्किल की जरूरत पर जोर
मोबाइल रिपेयरिंग से जुड़े युवाओं से संवाद करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि भारत को मशीनिंग, क्वालिटी कंट्रोल और सूक्ष्म तकनीकों में दक्षता हासिल करनी होगी। उन्होंने कहा:

“आईफोन असेंबल करना और बनाना दो अलग चीजें हैं। असली निर्माण के लिए उच्च स्तर के स्किल और मशीनिंग की जरूरत होती है।”

उन्होंने यह भी कहा कि यह एक सीखा हुआ कौशल है जिसे समय, संसाधन और सम्मान की जरूरत होती है।


जाति, श्रम और सम्मान का सवाल
अपने भाषण के एक संवेदनशील हिस्से में राहुल गांधी ने सामाजिक ढांचे पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि भारत में शारीरिक श्रम करने वालों को पर्याप्त सम्मान नहीं मिलता। उनका मानना है कि यह सम्मानहीनता जाति व्यवस्था की देन है। उन्होंने कहा:

“जब तक हम हाथ से काम करने वाले लोगों का सम्मान नहीं करेंगे, जब तक हम उन्हें समाज की मुख्यधारा में नहीं लाएंगे, तब तक असली परिवर्तन संभव नहीं है।”

उन्होंने भारत में सत्ता और सम्मान के वितरण को पारदर्शी बनाने की आवश्यकता बताई और कहा कि इसीलिए कांग्रेस लगातार जाति जनगणना की मांग कर रही है।


“देश को ईमानदार सुधारों की जरूरत”
राहुल गांधी ने यह भी कहा कि भारत को सतही घोषणाओं या कॉर्पोरेट लाभ आधारित योजनाओं की नहीं, बल्कि ईमानदार सुधारों और वित्तीय समर्थन की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जब तक देश के लाखों छोटे उत्पादकों और कारीगरों को सशक्त नहीं किया जाएगा, तब तक भारत आत्मनिर्भर नहीं बन सकता।


निष्कर्ष: आर्थिक और सामाजिक मॉडल पर बहस का समय
राहुल गांधी की यह आलोचना केवल एक राजनीतिक हमला नहीं, बल्कि एक व्यापक आर्थिक और सामाजिक मॉडल पर सवाल है। उन्होंने केवल ‘मेक इन इंडिया’ की विफलता की बात नहीं की, बल्कि यह भी दिखाया कि असमानता, कौशल की कमी और सामाजिक पूर्वाग्रह कैसे भारत की प्रगति में बाधा बनते हैं।

अब यह सरकार पर है कि वह इन आरोपों का जवाब केवल बयानबाज़ी से नहीं, बल्कि ठोस नीतियों और कार्यान्वयन से दे। क्योंकि जैसा राहुल गांधी ने कहा:

“समय बीतता जा रहा है। अगर अब भी नहीं जागे, तो भविष्य में निर्माण करने की नहीं, केवल उपभोग करने की आदत रह जाएगी।”

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