पंजाब एक बार फिर धार्मिक भावनाओं की सुरक्षा के सवाल पर राजनीतिक और सामाजिक बहस के केंद्र में आ गया है। मुख्यमंत्री भगवंत मान की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने राज्य में पवित्र धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी को रोकने के लिए एक सख्त कानून का प्रस्ताव रखा है। इस नए कानून का नाम “Punjab Prevention of Offenses Against Holy Scripture(s) Act, 2025” है, और इसे विधान सभा में पेश किए जाने की तैयारी चल रही है।
जहां एक ओर सरकार इसे धार्मिक सौहार्द और सामाजिक समरसता की दिशा में उठाया गया ज़रूरी कदम बता रही है, वहीं दूसरी ओर कई राजनीतिक दल, कानूनी विशेषज्ञ और सामाजिक संगठन इस पर सवाल भी उठा रहे हैं — क्या यह कानून वास्तव में बेअदबी रोक पाएगा या यह धार्मिक भावनाओं की आड़ में स्वतंत्रता पर हमला बन जाएगा?
इस विस्तृत रिपोर्ट में हम इस कानून की बारीकियों, इसके कानूनी और सामाजिक निहितार्थों, ऐतिहासिक संदर्भों, राजनीतिक प्रतिक्रियाओं और संभावित प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।
कानून की पृष्ठभूमि: पंजाब में बेअदबी की घटनाएं क्यों बनीं एक गंभीर समस्या?
पंजाब में धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी कोई नई समस्या नहीं है। विशेष रूप से गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं ने बीते एक दशक में कई बार राज्य की शांति भंग की है।
मुख्य घटनाएं:
- 2015 – बेअदबी कांड (बर्गाड़ी, फरीदकोट): गुरु ग्रंथ साहिब के अंग फाड़कर गांव में फेंकने की घटना हुई। इसके बाद व्यापक विरोध, गोलीकांड और राजनीतिक उथल-पुथल हुई।
- 2018-19: कई जिलों में सिख धर्मग्रंथों, श्रीमद्भगवद गीता और कुरान शरीफ की कथित बेअदबी की घटनाएं सामने आईं।
इन घटनाओं से न केवल धार्मिक भावनाएं आहत हुईं, बल्कि कानून-व्यवस्था पर भी गंभीर असर पड़ा। सामाजिक सद्भाव बिगड़ा और कई जगहों पर हिंसा भड़की।
नया कानून: क्या है ‘Punjab Prevention of Offenses Against Holy Scripture(s) Act, 2025’?
भगवंत मान सरकार द्वारा प्रस्तावित यह नया कानून पंजाब में पवित्र धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के मामलों में सख्त कार्रवाई का प्रावधान करता है। इस कानून के मसौदे के मुताबिक:
प्रमुख प्रावधान:
- बेअदबी की परिभाषा: किसी भी धार्मिक ग्रंथ को जानबूझकर अपवित्र करना, जलाना, फाड़ना, अपमानजनक टिप्पणी करना या सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट डालना।
- लागू ग्रंथ:
- गुरु ग्रंथ साहिब
- श्रीमद्भगवद गीता
- कुरान शरीफ
- बाइबिल
- और अन्य मान्यता प्राप्त धार्मिक ग्रंथ
- सजा का प्रावधान:
- 10 साल से उम्रकैद तक की सजा
- जुर्माना (जिसकी राशि न्यायालय तय करेगा)
- पुलिस द्वारा सीधा FIR दर्ज कर गिरफ्तारी
- गैर-जमानती अपराध: यह अपराध गंभीर, संज्ञेय और गैर-जमानती श्रेणी में आएगा।
राज्य सरकार का तर्क: “धार्मिक सौहार्द की रक्षा हमारा कर्तव्य”
मुख्यमंत्री भगवंत मान ने विधानसभा में कहा:
“हमारे राज्य में हर धर्म के पवित्र ग्रंथों का सम्मान सर्वोपरि है। जो भी व्यक्ति जानबूझकर समाज की एकता को चोट पहुंचाने के लिए पवित्र ग्रंथों की बेअदबी करेगा, उसे अब बख्शा नहीं जाएगा।”
मान सरकार का दावा है कि यह कानून किसी एक धर्म के लिए नहीं बल्कि सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथों की समान रक्षा सुनिश्चित करेगा। सरकार का तर्क है कि:
- पहले के कानूनों में इस तरह के अपराधों पर स्पष्टता और गंभीर दंड का अभाव था।
- यह कानून समाज में “डर और सम्मान का संतुलन” स्थापित करेगा।
- यह prevention-focused कानून है, यानी यह घटना घटने से पहले ही उसे रोकने का कार्य करेगा।
विपक्ष की प्रतिक्रिया: धार्मिक भावनाओं की आड़ में कानून की दुरुपयोग की आशंका
कांग्रेस:
पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग ने कहा:
“धार्मिक भावनाओं की रक्षा ज़रूरी है, लेकिन इस कानून का दुरुपयोग न हो, इसकी गारंटी कौन देगा? कहीं यह अल्पसंख्यकों या असहमति जताने वालों के खिलाफ हथियार न बन जाए।”
शिरोमणि अकाली दल (SAD):
अकाली दल ने कानून का समर्थन किया है लेकिन एक संशोधन की मांग रखी है कि गुरु ग्रंथ साहिब के लिए अलग से और अधिक कठोर दंड का प्रावधान किया जाए।
भारतीय जनता पार्टी (BJP):
भाजपा नेताओं ने इसे “vote bank law” बताते हुए कहा कि इससे धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा मिल सकता है।
कानूनी विशेषज्ञों की राय: क्या यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) यानी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है?
भारतीय संविधान के तहत हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है। लेकिन यह स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है, बल्कि इसके कुछ “यथोचित प्रतिबंध” हैं।
संवैधानिक सवाल:
- क्या यह कानून धार्मिक आलोचना और नफरत फैलाने वाले भाषण (Hate Speech) में फर्क करता है?
- क्या यह कानून धार्मिक असहमति जताने वालों पर दमन का औजार बन सकता है?
- सोशल मीडिया पर व्यंग्य, आलोचना, या स्क्रिप्चरल चर्चा क्या इस कानून के दायरे में आएगी?
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह के अनुसार:
“अगर इस कानून का दायरा बहुत व्यापक हुआ, तो यह लोकतांत्रिक समाज में विचारों की विविधता को कुचल सकता है। ज़रूरत है स्पष्ट परिभाषा और सीमित कार्यान्वयन की।”
पुलिस और प्रशासन की भूमिका: क्या मौजूदा तंत्र तैयार है?
अगर यह कानून पारित होता है तो इसका क्रियान्वयन पुलिस और प्रशासन के हाथों में होगा। लेकिन क्या पंजाब पुलिस के पास:
- इस कानून की गंभीरता समझने की ट्रेनिंग है?
- क्या वो भेदभावरहित जांच और गिरफ़्तारी सुनिश्चित कर सकेगी?
- धार्मिक संगठनों के दबाव से ऊपर रहकर निष्पक्ष कार्रवाई कर पाएगी?
विशेषज्ञों का मानना है कि जब किसी कानून में धर्म जुड़ता है, तो राजनीतिक और सामाजिक दबाव कानून के निष्पक्ष कार्यान्वयन में बाधा बन सकते हैं।
सामाजिक संगठनों की राय: ज़रूरत है या दिखावा?
समर्थन में:
- कई सिख जत्थेबंदियों, हिंदू संगठनों और मुस्लिम व ईसाई संगठनों ने इस कदम का स्वागत किया है। उनका कहना है कि धार्मिक ग्रंथों का सम्मान सामाजिक शांति की नींव है।
आलोचना में:
- मानवाधिकार संगठन जैसे PUCL (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) ने इसे “धार्मिक कट्टरता को बढ़ाने वाला कानून” बताया है।
“धर्मनिरपेक्ष देश में कानून धर्मनिरपेक्षता के साथ खड़ा होना चाहिए, न कि धार्मिक भावनाओं की आड़ में सेंसरशिप का माध्यम बने।”
क्या इससे बेअदबी की घटनाएं रुकेंगी?
यह सबसे बड़ा और जटिल सवाल है।
संभावित सकारात्मक असर:
- कठोर सज़ा का डर हो सकता है
- समाज में पवित्र ग्रंथों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ सकती है
संभावित नकारात्मक असर:
- विरोध की आवाज़ों पर कार्रवाई हो सकती है
- छोटे झगड़ों में राजनीतिक लोग इस कानून का दुरुपयोग कर सकते हैं
- धार्मिक कट्टरता को संस्थागत समर्थन मिल सकता है
वैकल्पिक उपाय: कानून के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता
अगर राज्य सरकार वाकई में पवित्र ग्रंथों की गरिमा को बचाना चाहती है, तो केवल कानून बनाना पर्याप्त नहीं होगा। इसके लिए नीचे दिए गए कदम भी ज़रूरी हैं:
- स्कूल और कॉलेजों में धार्मिक सद्भाव पर जागरूकता कार्यक्रम
- इंटर-फेथ डायलॉग प्लेटफॉर्म्स का निर्माण
- सोशल मीडिया पर निगरानी और फेक न्यूज़ की रोकथाम
- पुलिस बल की विशेष ट्रेनिंग
निष्कर्ष: एक संवेदनशील कानून, जिसके लिए संतुलन बेहद ज़रूरी
‘Punjab Prevention of Offenses Against Holy Scripture(s) Act, 2025’ एक ऐसा कानून है, जो नीयत के स्तर पर भले ही धार्मिक सौहार्द की रक्षा की बात करता हो, लेकिन व्यवहारिक स्तर पर इसके क्रियान्वयन में कई सामाजिक, कानूनी और राजनीतिक पेच हैं।
अगर सरकार इसे भेदभावरहित, सीमित दायरे में और पारदर्शी ढंग से लागू कर पाए, तो यह एक सकारात्मक पहल साबित हो सकती है। लेकिन अगर यह कानून राजनीतिक प्रतिशोध, धार्मिक कट्टरता और असहमति को दबाने का हथियार बन गया, तो यह पंजाब की पहले से संवेदनशील सामाजिक संरचना के लिए घातक हो सकता है।
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