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पुणे पुल हादसा: प्रशासनिक लापरवाही या टल सकती थी यह त्रासदी?

पुणे पुल हादसा: प्रशासनिक लापरवाही या टल सकती थी यह त्रासदी?

रविवार की शांत दोपहर महाराष्ट्र के पुणे जिले के तालेगांव में उस वक्त चीख-पुकार और मातम में बदल गई जब इंद्रायणी नदी पर बना एक पुराना और संकरा फुटब्रिज अचानक भरभराकर ढह गया। इस हृदय विदारक हादसे में अब तक चार लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 51 से अधिक लोग घायल हैं और कई अन्य अभी भी लापता बताए जा रहे हैं। घटना दोपहर करीब 3:15 बजे की है, जब कथित तौर पर 150 से अधिक लोग पुल पर मौजूद थे।

प्रत्यक्षदर्शियों ने जो भयावह दृश्य बयां किए, वह रूह कंपा देने वाले हैं। स्वप्निल कोल्लम नाम के एक चश्मदीद ने कहा कि यदि भगवान की कृपा नहीं होती, तो शायद उनका पूरा परिवार इस हादसे की भेंट चढ़ जाता। इसी तरह, निखिल कोल्लम ने इस हादसे को “ईश्वरीय हस्तक्षेप” बताते हुए कहा कि उनका और उनके परिवार का यह “पुनर्जन्म” है। लोग नदी किनारे कांपते हुए खड़े थे, जब पुल के टूटे हिस्से से लोग चीखते-चिल्लाते हुए पानी में समा रहे थे।

पुराना पुल, लापरवाह सिस्टम

स्थानीय लोग और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह पुल कई वर्षों से खस्ताहाल था और इसकी मरम्मत या पुनर्निर्माण को लेकर प्रशासन के पास बार-बार शिकायतें भेजी गई थीं। इसके बावजूद, किसी ने इस पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। यह फुटब्रिज ना केवल संकरा था, बल्कि उस दिन भारी भीड़ के कारण इसकी संरचनात्मक क्षमता से कहीं अधिक लोग उस पर मौजूद थे। यह सवाल खड़ा करता है कि क्या प्रशासन ने सुरक्षा मानकों की अनदेखी की?

प्रशासनिक प्रतिक्रिया

पुणे के जिला कलेक्टर जितेंद्र डूडी ने मीडिया को बताया कि घायल लोगों का इलाज विभिन्न अस्पतालों में चल रहा है और राहत एवं बचाव कार्य लगातार जारी है। मृतकों की पहचान चंद्रकांत साल्वे, रोहित माने और विहान माने के रूप में हुई है, जबकि एक अन्य मृतक की पहचान अभी नहीं हो पाई है।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और जवाबदेही की मांग

घटना के बाद कांग्रेस ने इस दुखद हादसे पर शोक व्यक्त किया और साथ ही सरकार से जवाबदेही तय करने की मांग की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि यह त्रासदी “टक सकती थी”, यदि समय रहते आवश्यक मरम्मत और एहतियाती कदम उठाए जाते। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर इस हादसे को “बेहद दुखद” बताया और पीड़ित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की। पवन खेड़ा ने कहा कि यह केवल एक हादसा नहीं, बल्कि “व्यवस्था की विफलता” है।

निष्कर्ष

यह घटना एक बार फिर बताती है कि देश में कई ऐसी बुनियादी संरचनाएं (पुल, भवन, रेलवे प्लेटफॉर्म) हैं जो वर्षों से जर्जर हालत में हैं, लेकिन प्रशासन की लापरवाही और बजट की अनदेखी के कारण ऐसी त्रासदियां घटती रहती हैं। पुणे की यह घटना महज़ एक तकनीकी विफलता नहीं, बल्कि सिस्टम के उस सड़ चुके हिस्से का प्रतीक है, जहाँ जनजीवन की कीमत वोटों से कम आँकी जाती है।

अब देखना यह है कि क्या यह हादसा सरकार और प्रशासन की आंखें खोल पाएगा या फिर यह भी एक और “मुआवज़े और बयानबाज़ी” में दबकर रह जाएगा।

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