नई नियुक्तियों की आधिकारिक घोषणा
14 जुलाई 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने देश के तीन प्रमुख केंद्रशासित और राज्य क्षेत्रों के लिए शीर्ष संवैधानिक पदों पर नई नियुक्तियों की घोषणा की। राष्ट्रपति भवन से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, हरियाणा और गोवा के लिए नए राज्यपाल नियुक्त किए गए हैं, वहीं लद्दाख के उपराज्यपाल पद पर भी बदलाव किया गया है।
लद्दाख में बदलाव: कवींद्र गुप्ता बने नए उपराज्यपाल
राष्ट्रपति मुर्मु ने सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर (डॉ.) बी. डी. मिश्रा का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है, जो अब तक लद्दाख के उपराज्यपाल के रूप में कार्यरत थे। उनकी जगह पर कवींद्र गुप्ता को नया उपराज्यपाल नियुक्त किया गया है।
यह नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है जब लद्दाख में फिर से जन आंदोलन तेज़ हो गया है। लद्दाख एपेक्स बॉडी (LAB) ने राज्य का दर्जा, संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत विशेष संरक्षण और नौकरी-शिक्षा में आरक्षण जैसे कई संवैधानिक अधिकारों की मांग को लेकर नया संघर्ष शुरू करने की घोषणा की है।
लद्दाख को 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया था, लेकिन राज्य का दर्जा अब तक बहाल नहीं हुआ है। अब इस नियुक्ति को केंद्र सरकार द्वारा लद्दाख की स्थिति को राजनीतिक रूप से संभालने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
कवींद्र गुप्ता: भाजपा नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री
कवींद्र गुप्ता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता हैं और जम्मू-कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। वे लंबे समय तक भाजपा की प्रदेश इकाई में सक्रिय रहे हैं और संगठनात्मक मजबूती के लिए जाने जाते हैं।
उनकी नियुक्ति को एक रणनीतिक निर्णय माना जा रहा है, जो केंद्र सरकार की मंशा को दर्शाता है कि वह लद्दाख में बढ़ते जन असंतोष को राजनीतिक संवाद और प्रशासनिक नेतृत्व के ज़रिए नियंत्रित करना चाहती है।
हरियाणा के राज्यपाल बने प्रो. असीम कुमार घोष
राष्ट्रपति द्वारा किए गए अन्य दो प्रमुख बदलावों में प्रोफेसर असीम कुमार घोष को हरियाणा का नया राज्यपाल नियुक्त किया गया है। प्रो. घोष एक शिक्षाविद और पूर्व कुलपति रह चुके हैं। उनका प्रशासनिक और अकादमिक अनुभव हरियाणा जैसे औद्योगिक और शैक्षिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य में सकारात्मक योगदान दे सकता है।
हरियाणा में यह नियुक्ति ऐसे समय हुई है जब राज्य सरकार और विश्वविद्यालयों के बीच प्रशासनिक तालमेल की ज़रूरत लगातार महसूस की जा रही है। प्रो. घोष का शैक्षणिक दृष्टिकोण और दूरदृष्टि राज्य के नीति-निर्माण में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
गोवा के राज्यपाल बनाए गए अशोक गजपति राजू
पुसापति अशोक गजपति राजू को गोवा का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। वे पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री और आंध्र प्रदेश से आने वाले अनुभवी राजनेता हैं। अशोक गजपति राजू की छवि एक सजग और अनुशासित प्रशासक की रही है।
उनकी नियुक्ति से यह संकेत मिलता है कि केंद्र सरकार गोवा जैसे छोटे लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में राजनीतिक और प्रशासनिक संतुलन बनाए रखने के लिए अनुभवी नेताओं को तैनात करना चाहती है।
गोवा में पर्यटन, पर्यावरण और खनन जैसे विषय संवेदनशील हैं, जिन पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त राज्यपाल की भूमिका अहम मानी जाती है।
संवैधानिक प्रक्रिया और नियुक्तियों का प्रभाव
राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि उपरोक्त सभी नियुक्तियां संबंधित अधिकारियों द्वारा अपने-अपने पदभार ग्रहण करने की तारीख से प्रभाव में आएंगी। इन नियुक्तियों के लिए राष्ट्रपति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 155 और 156 के तहत यह अधिकार प्राप्त है।
राज्यपालों की भूमिका केवल औपचारिक नहीं होती, बल्कि वे राज्य और केंद्र के बीच सेतु की भूमिका निभाते हैं, खासकर उन परिस्थितियों में जब संवैधानिक संकट या राजनीतिक अस्थिरता उत्पन्न होती है। इसी तरह, केंद्रशासित प्रदेशों में उपराज्यपाल की भूमिका प्रत्यक्ष प्रशासनिक नियंत्रण और केंद्र सरकार की नीतियों को लागू करने में अहम होती है।
लद्दाख आंदोलन की पृष्ठभूमि
लद्दाख में नियुक्ति का विशेष राजनीतिक महत्व है। हाल ही में लद्दाख एपेक्स बॉडी और करगिल डेमोक्रेटिक एलायंस ने एक संयुक्त मोर्चा बनाकर लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने, संविधान में विशेष संरक्षण और संसदीय प्रतिनिधित्व की मांग फिर से उठाई है।
उन्होंने अगस्त 2025 से व्यापक जन आंदोलन शुरू करने की चेतावनी दी है। इस पृष्ठभूमि में कवींद्र गुप्ता जैसे राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव वाले व्यक्ति को उपराज्यपाल बनाना एक निर्णायक कदम माना जा सकता है।
भविष्य की दिशा
इन नियुक्तियों से केंद्र सरकार ने संकेत दिया है कि वह संवेदनशील राज्यों और क्षेत्रों में अनुभव, संवाद और नियंत्रण — तीनों को संतुलन में लाने की कोशिश कर रही है।
जहां लद्दाख की नियुक्ति जन आक्रोश को शांत करने और राजनीतिक संवाद को बढ़ावा देने की दिशा में है, वहीं हरियाणा और गोवा की नियुक्तियाँ प्रशासनिक दक्षता और नीति-निर्माण के क्षेत्र में स्थिरता लाने के लिए की गई प्रतीत होती हैं।
निष्कर्ष
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा की गई ये नियुक्तियाँ महज संवैधानिक औपचारिकताएं नहीं, बल्कि आने वाले समय में देश की राजनीतिक दिशा और प्रशासनिक व्यवस्थाओं को प्रभावित करने वाले निर्णय हैं। विशेष रूप से लद्दाख में यह बदलाव अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जहां एक ओर जनता का दबाव बढ़ रहा है, वहीं केंद्र सरकार पर लोकतांत्रिक संवाद की ज़िम्मेदारी भी है।
देखना यह होगा कि ये नए राज्यपाल और उपराज्यपाल किस प्रकार अपनी भूमिका का निर्वहन करते हैं और संवैधानिक दायित्वों के साथ-साथ जन आकांक्षाओं को भी पूरा करने में कितनी सफलता पाते हैं।
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