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महाराष्ट्र में मराठी भाषा विवाद पर गरमाई सियासत: ठाणे में MNS कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी, रैली मार्ग पर भिड़ंत और मुख्यमंत्री फडणवीस की सफाई

Politics heats up in Maharashtra over Marathi language controversy: Arrest of MNS workers in Thane, clash on rally route and clarification by Chief Minister Fadnavis

महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी भाषा विवाद एक बार फिर उग्र होता नज़र आ रहा है। बीते मंगलवार को ठाणे के मीरा रोड इलाके में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कार्यकर्ताओं को भारी संख्या में हिरासत में लिया गया। MNS कार्यकर्ता मीरा रोड में एक विरोध मार्च निकालना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें अनुमति नहीं दी। इसके बाद तनाव बढ़ा और अंततः पुलिस ने धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू करते हुए बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस पूरे विवाद पर सफाई देते हुए कहा कि किसी को भी मार्च निकालने से रोका नहीं गया, लेकिन MNS कार्यकर्ता जिस रूट पर अड़े हुए थे, वहां कानून-व्यवस्था बिगड़ने का खतरा था।

इस घटनाक्रम ने एक बार फिर से महाराष्ट्र में भाषा को लेकर जारी तनाव, राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, और सड़कों पर उतरते आंदोलनों को चर्चा के केंद्र में ला दिया है।


■ विवाद की पृष्ठभूमि: ‘मराठी बोलो’ की धमकियाँ और व्यापारियों का आक्रोश

इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत कुछ दिन पहले हुई जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कुछ कार्यकर्ताओं ने मीरा रोड में एक दुकानदार को इसलिए पीट दिया क्योंकि उसने मराठी बोलने से मना किया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसके बाद व्यापारी वर्ग ने इसका विरोध किया और एक शांतिपूर्ण मार्च निकाला।

यह शांतिपूर्ण मार्च उसी मीरा रोड इलाके में हुआ, जहां बाद में MNS ने अपने समर्थकों के साथ प्रतिरोध मार्च निकालने की घोषणा की। लेकिन मामला तब और उलझ गया जब पुलिस ने MNS को उसी इलाके में मार्च निकालने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। इसके बाद से ही भाषा के नाम पर राजनीतिक टकराव खुलकर सामने आ गया।


■ मुख्यमंत्री फडणवीस की सफाई: “मार्ग की ज़िद की वजह से टकराव हुआ”

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने NDTV से बातचीत में कहा कि MNS को रैली निकालने से नहीं रोका गया था, बल्कि रूट को लेकर टकराव हुआ। उन्होंने स्पष्ट किया —

“किसी को भी मार्च की अनुमति से इनकार नहीं किया गया था। लेकिन जिस रूट पर MNS ज़ोर दे रही थी, वह मार्ग सुबह के समय अत्यधिक भीड़भाड़ वाला होता है, खासकर मीरा रोड रेलवे स्टेशन के पास। इस इलाके में रैली की इजाज़त देने से गंभीर कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती थी।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि व्यापारी संगठन को इसलिए अनुमति दी गई थी क्योंकि उन्होंने पुलिस द्वारा निर्धारित सामान्य रूट को स्वीकार किया था।


■ पुलिस का रुख: निषेधाज्ञा के बावजूद निकाला गया जुलूस

मीरा रोड पुलिस ने कहा कि जब यह स्पष्ट कर दिया गया कि MNS को प्रस्तावित रूट पर अनुमति नहीं मिलेगी और निषेधाज्ञा लागू हो चुकी है, तब भी कार्यकर्ताओं ने रैली निकालने की कोशिश की। पुलिस ने बयान में कहा —

“जब पांच से अधिक लोगों की सभा पर प्रतिबंध था, तब भी कार्यकर्ता विरोध मार्च निकालने पर अड़े रहे।”

इसके बाद पुलिस ने करीब 12 बसों में भरकर MNS कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी थीं।


■ MNS का आरोप: “सरकार पक्षपात कर रही है”

MNS के मुंबई अध्यक्ष संदीप देशपांडे ने कहा कि सरकार का रवैया दोहरा है। उन्होंने कहा —

“व्यापारी संगठन को मीरा रोड में मार्च निकालने की अनुमति मिल जाती है लेकिन हमें कहा जाता है कि हम घोड़बंदर रोड पर मार्च निकालें। ये सीधा इशारा करता है कि सरकार हमें मीरा रोड में प्रदर्शन नहीं करने देना चाहती।”

उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा —

“अब राज्यभर से हमारे कार्यकर्ता मीरा रोड पहुंचेंगे और जब तक हमें उसी स्थान पर प्रदर्शन की अनुमति नहीं मिलती, हम शांत नहीं बैठेंगे।”

देशपांडे के इस बयान के बाद मीरा रोड में और अधिक सुरक्षा बल तैनात कर दिए गए।


■ खुफिया इनपुट और सुरक्षा चिंताएं

मुख्यमंत्री फडणवीस ने यह भी बताया कि पुलिस आयुक्त को कुछ विशेष इनपुट प्राप्त हुए थे कि प्रदर्शनकारियों में से कुछ लोग हिंसा भड़काने की योजना बना रहे थे।

“मीरा-भायंदर पुलिस आयुक्त से मेरी बात हुई थी। उन्हें कुछ प्रदर्शनकारियों द्वारा अशांति फैलाने की योजना के पुख्ता संकेत मिले थे। इसी कारण से रैली को विशेष मार्ग पर अनुमति नहीं दी गई।”

फडणवीस का यह बयान स्पष्ट करता है कि सरकार इस मसले को केवल भाषा विवाद नहीं बल्कि संभावित शांति भंग की आशंका के रूप में देख रही है।


■ मराठी बनाम हिंदी: राजनीतिक एजेंडा या सामाजिक बेचैनी?

इस पूरी बहस की जड़ें मराठी अस्मिता और हिंदी भाषा के विस्तार को लेकर बढ़ती राजनीतिक बेचैनी में हैं। MNS का दावा है कि भाजपा नेतृत्व वाली राज्य सरकार हिंदी थोप रही है और मराठी भाषा को दबा रही है। वहीं भाजपा का तर्क है कि सरकार सभी भाषाओं के लिए समान अवसर प्रदान कर रही है।

राज ठाकरे के नेतृत्व में MNS वर्षों से “मराठी मानुष” के मुद्दे को लेकर राजनीति करती रही है। उनके समर्थक लंबे समय से गैर-मराठी भाषियों पर मराठी बोलने के लिए दबाव बनाते रहे हैं, जो कि मुंबई और ठाणे जैसे बहुभाषी शहरों में संवेदनशील मुद्दा बन जाता है।


■ सामाजिक प्रतिक्रिया और विभाजन की चिंता

मीरा रोड जैसे क्षेत्र, जहां उत्तर भारतीय, गुजराती, कोंकणी और दक्षिण भारतीय भाषाओं के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं, वहां इस तरह की घटनाएं सामुदायिक सौहार्द को प्रभावित कर सकती हैं।

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अमृता जोशी कहती हैं —

“यह बहस मराठी या हिंदी के सम्मान की नहीं है। यह बहस है कि क्या हम एक-दूसरे की भाषा, संस्कृति और पहचान का सम्मान कर सकते हैं या नहीं। महाराष्ट्र में जो बहुभाषीय समाज है, उसे टूटने से बचाना सरकार और समाज दोनों की ज़िम्मेदारी है।”


■ कानून व्यवस्था बनाम लोकतांत्रिक अधिकार

इस पूरे विवाद में सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा हो रहा है — क्या विरोध प्रदर्शन के अधिकार को सरकार उचित रूप से नियंत्रित कर रही है या भाषाई राजनीति के चलते चुनिंदा समूहों को ही मंच मिल रहा है?

राजनीतिक विश्लेषक संजय जोग का कहना है —

“यह सच है कि मीरा रोड जैसे इलाकों में कानून-व्यवस्था चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन अगर पुलिस के पास पर्याप्त बल है और पहले से तैयारियां हैं, तो दोनों पक्षों को समान मंच दिया जाना चाहिए। अन्यथा यह पक्षपात प्रतीत होगा।”


■ निष्कर्ष: आग से खेल रही है मराठी राजनीति?

महाराष्ट्र में भाषाई राजनीति एक बार फिर सिर उठा रही है। एक तरफ MNS है जो मराठी भाषा और अस्मिता की रक्षा के नाम पर आक्रोश और धमकी का सहारा ले रही है, तो दूसरी तरफ भाजपा सरकार है जो कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए MNS के मार्च को नियंत्रित कर रही है। लेकिन इस टकराव में सबसे अधिक नुकसान आम नागरिकों और सांस्कृतिक विविधता को हो रहा है।

यदि दोनों पक्ष समय रहते संवाद और संयम का रास्ता नहीं अपनाते, तो यह विवाद स्थानीय स्तर पर सांप्रदायिक और जातीय तनावों को जन्म दे सकता है। सरकार को जहां कानून-व्यवस्था की दृढ़ता दिखानी होगी, वहीं MNS जैसे दलों को लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन करते हुए अपने मुद्दे रखने होंगे।

भविष्य के लिए यही सबसे बड़ी सीख है — भाषा, संस्कृति और राजनीति के बीच संतुलन बनाए रखना, जिससे महाराष्ट्र की गंगा-जमुनी तहज़ीब बनी रहे और समाज बंटने की बजाय जुड़ता जाए।

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