प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर भारत की आवाज़ को बुलंद किया है। इस बार मौका था नामीबिया की संसद में उनका ऐतिहासिक संबोधन, जहां उन्हें सांसदों ने स्टैंडिंग ओवेशन और तालियों की गूंज के साथ सम्मानित किया।
यह अवसर कई कारणों से महत्वपूर्ण था—कूटनीतिक रूप से, ऐतिहासिक दृष्टिकोण से और आंकड़ों के लिहाज से भी। प्रधानमंत्री मोदी ने अब तक 17 देशों की संसदों को संबोधित किया है, जो अब तक के सभी कांग्रेस प्रधानमंत्री मिलाकर जितने बार विदेशी संसदों में बोले हैं, उतना ही है।
नामिबिया में ऐतिहासिक पल: एक नेता, एक संदेश
बुधवार को नामीबिया की संसद में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-अफ्रीका संबंधों को एक नए मुकाम पर पहुंचाया। उन्होंने कहा:
“हम प्रतिस्पर्धा नहीं, सहयोग चाहते हैं। हमारा उद्देश्य है मिलकर निर्माण करना—not to take, but to grow together.“
प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि भारत अफ्रीका को सिर्फ कच्चे माल का स्रोत नहीं मानता, बल्कि उसे “मूल्य निर्माण और टिकाऊ विकास का नेतृत्वकर्ता” देखना चाहता है।
उन्होंने अफ्रीकी संघ के G20 में स्थायी सदस्य बनने पर भी गर्व व्यक्त किया और कहा कि यह भारत के प्रयासों का परिणाम था:
“हमने G20 अध्यक्षता के दौरान अफ्रीका की आवाज़ को प्राथमिकता दी।”
भारत-अफ्रीका साझेदारी की दिशा: निवेश से लेकर रक्षा सहयोग तक
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी भाषण में भारत और अफ्रीका के संबंधों को लेकर 2018 में घोषित 10 सिद्धांतों की पुनः पुष्टि की। उन्होंने बताया कि:
- भारत ने अफ्रीका में 12 बिलियन डॉलर से अधिक का विकास सहयोग किया है।
- यह निवेश केवल आर्थिक नहीं, बल्कि स्थानीय कौशल, रोजगार और नवाचार को बढ़ावा देने वाला है।
- भारत रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में अफ्रीका के साथ सहयोग बढ़ाने को तैयार है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र में ‘आरोग्य मैत्री’ कार्यक्रम के तहत अस्पताल, दवाइयाँ, उपकरण और प्रशिक्षण अफ्रीकी देशों को दिया गया है।
- COVID-19 महामारी के दौरान भारत ने वैक्सीन और दवाओं की आपूर्ति कर मानवीय मित्रता की मिसाल पेश की।
विदेशी संसदों में PM मोदी का प्रभाव: आंकड़ों की कहानी
प्रधानमंत्री मोदी ने अब तक 17 बार विदेशी संसदों को संबोधित किया है। इसकी तुलना में सभी कांग्रेस प्रधानमंत्री—जवाहरलाल नेहरू से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक—ने मिलकर भी 17 बार ही ऐसा किया था।
कांग्रेस प्रधानमंत्रीगण की विदेश संसदों में भाषण संख्या:
- डॉ. मनमोहन सिंह: 7 बार
- इंदिरा गांधी: 4 बार
- जवाहरलाल नेहरू: 3 बार
- राजीव गांधी: 2 बार
- पी.वी. नरसिम्हा राव: 1 बार
कुल = 17 बार
अन्य प्रधानमंत्रियों द्वारा भाषण:
- अटल बिहारी वाजपेयी: 2 बार
- मोरारजी देसाई: 1 बार
PM मोदी के संसदीय भाषण – वर्षवार विवरण:
- 2014: ऑस्ट्रेलिया, फिजी, भूटान, नेपाल
- 2015: मॉरीशस, मंगोलिया, अफगानिस्तान, UK, श्रीलंका
- 2016: US (संयुक्त सत्र)
- 2018: युगांडा
- 2019: मालदीव
- 2023: US (दूसरी बार)
- 2024: गुयाना
- 2025: घाना, त्रिनिडाड और टोबैगो, नामीबिया
यह उपलब्धि न केवल रिकॉर्ड की दृष्टि से अहम है, बल्कि यह संकेत भी देती है कि भारत अब वैश्विक मंचों पर संवाद का प्रमुख चालक बन चुका है।
बीजेपी का सोशल मीडिया पोस्ट: राजनीतिक संदेश स्पष्ट
भारतीय जनता पार्टी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:
“पीएम मोदी ने विदेशी संसदों में 17 भाषण देकर वह उपलब्धि हासिल की है, जिसे कांग्रेस प्रधानमंत्रियों को पूरा करने में कई दशक लगे। यह उनकी वैश्विक स्वीकार्यता और प्रभावशाली नेतृत्व का प्रतीक है।”
पार्टी ने इसे “भारत के नेतृत्व के वैश्विक युग की शुरुआत” बताया।
प्रधानमंत्री का पांच देशों का दौरा: वैश्विक रणनीति की झलक
PM मोदी का यह दौरा केवल नामीबिया तक सीमित नहीं था। घाना, त्रिनिडाड एंड टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राज़ील और नामीबिया—इन पाँच देशों की यात्रा ने वैश्विक दक्षिण (Global South) के साथ भारत की भागीदारी को और मजबूत किया।
घाना: अफ्रीका में भारत का एक महत्वपूर्ण साझेदार। शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि में सहयोग की घोषणा।
त्रिनिडाड एंड टोबैगो: भारतवंशी आबादी का बड़ा केंद्र। भारतीय मूल के नेताओं के साथ सांस्कृतिक और रणनीतिक बैठकें।
अर्जेंटीना और ब्राज़ील: BRICS और G20 सहयोग को नई दिशा। व्यापार, ऊर्जा और जलवायु पर चर्चा।
नामिबिया: अफ्रीकी सहयोग, रक्षा भागीदारी, संसदीय संबोधन और Agenda 2063 के समर्थन की पुष्टि।
यह दौरा भारत की उस दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation) नीति को मज़बूती देता है जिसमें विकासशील देशों के साथ बराबरी के आधार पर संबंधों का विस्तार प्राथमिकता है।
भारत-अफ्रीका संबंध: नई सदी की साझेदारी
अफ्रीका को लेकर भारत की नीति अब aid-based नहीं, बल्कि partnership-based है। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया कि:
“हम लेने नहीं, साथ मिलकर बढ़ने आए हैं।”
भारत ने अफ्रीकी यूनियन को G20 में स्थायी सदस्यता दिलवाकर यह स्पष्ट किया कि वह अफ्रीका को केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्णय निर्माता के रूप में देखना चाहता है।
भारत के निवेश और साझेदारी की कुछ मुख्य बातें:
- सौर ऊर्जा, डिजिटल अवसंरचना और कौशल विकास में सहयोग
- अफ्रीकी छात्रों के लिए भारत में छात्रवृत्तियाँ
- डिफेंस ट्रेनिंग और आपदा प्रबंधन में सहयोग
- व्यापार और निवेश में 20+ द्विपक्षीय समझौते
नामिबिया के साथ विशेष रिश्ता: सिंहों की वापसी से संसद तक
नामिबिया और भारत के बीच हाल के वर्षों में संबंध और गहरे हुए हैं। 2022 में नामीबिया ने चीतों को भारत भेजा, जिससे दोनों देशों के बीच प्राकृतिक और सांस्कृतिक साझेदारी की एक नई मिसाल बनी।
अब 2025 में संसद में प्रधानमंत्री का संबोधन इस रिश्ते को राजनीतिक और रणनीतिक स्तर पर और मज़बूत करता है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया और आलोचना
हालांकि बीजेपी इस दौरे को ऐतिहासिक बता रही है, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसे “प्रचार की राजनीति” बता रहे हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा:
“विदेशी संसदों में भाषण देना अच्छी बात है, लेकिन देश में बेरोज़गारी, महंगाई और सामाजिक असंतोष पर भी ध्यान देना ज़रूरी है।”
हालांकि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में पीएम मोदी की सक्रियता को बड़ी संख्या में विदेशी विश्लेषकों और मीडिया ने सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है।
निष्कर्ष: भारत की वैश्विक आवाज़, अब पहले से अधिक स्पष्ट
प्रधानमंत्री मोदी की नामीबिया संसद में दी गई स्पीच केवल आंकड़ों की दृष्टि से ऐतिहासिक नहीं थी, बल्कि उसमें भारत की 21वीं सदी की विदेश नीति का मूल दर्शन था—सम्मान, सहयोग और साझा विकास।
भारत अब वैश्विक मंचों पर अनुसरण करने वाला नहीं, दिशा देने वाला बन चुका है। और इस दिशा की गूंज, नामीबिया की संसद में उठी तालियों की गूंज के रूप में, पूरे विश्व में सुनाई दी।
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