बीजिंग में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने सोमवार को क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। उनका यह बयान पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवादी गतिविधियों के समर्थन की ओर स्पष्ट इशारा था।
इस बैठक में NSA डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच भारत-चीन संबंधों को लेकर भी विस्तार से चर्चा हुई। पूर्वी लद्दाख में सीमा तनाव के बाद यह बैठक दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है।
SCO बैठक का संदर्भ और भारत की भूमिका
यह बैठक शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों का एक महत्वपूर्ण सम्मलेन था, जिसकी मेज़बानी इस बार चीन कर रहा है। SCO एक प्रभावशाली क्षेत्रीय संगठन है, जो खासतौर पर सुरक्षा, आतंकवाद-विरोध, क्षेत्रीय सहयोग और राजनीतिक स्थिरता जैसे मुद्दों पर केंद्रित रहता है।
NSA डोभाल भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए इस मंच पर पहुँचे, जहाँ उन्होंने आतंकवाद को जड़ से खत्म करने की ज़रूरत दोहराई। उनके बयान में खासतौर पर सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ सख़्त रुख देखने को मिला।
आतंकवाद पर डोभाल का स्पष्ट संदेश
डोभाल ने दो टूक कहा कि:
“क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए आतंकवाद के सभी रूपों और उसकी सभी अभिव्यक्तियों का विरोध अत्यंत आवश्यक है।”
यह बयान सीधे तौर पर पाकिस्तान के खिलाफ परोक्ष संदेश था, जो बार-बार आतंकवादी संगठनों को शरण देने और समर्थन देने के आरोपों में घिरा रहता है। यह बयान खासकर उस पृष्ठभूमि में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब भारत ने मई 2025 की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान में 9 आतंकी ठिकानों पर सटीक हवाई हमले किए थे।
चीन को भी भेजा गया संदेश
भारत के इस रुख में चीन के लिए भी एक परोक्ष चेतावनी थी। चीन, जो पाकिस्तान का “ऑल-वेदर” सहयोगी माना जाता है, अक्सर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूहों के खिलाफ प्रस्तावों को रोकने या कमज़ोर करने में सक्रिय रहा है।
MEA (विदेश मंत्रालय) की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया कि डोभाल ने चीन को स्पष्ट रूप से आतंकवाद के मुद्दे पर जवाबदेही लेने और जिम्मेदार व्यवहार दिखाने की बात कही।
भारत-चीन संबंधों पर चर्चा: तनाव से सहयोग की ओर?
बैठक में NSA डोभाल और वांग यी के बीच भारत-चीन संबंधों के तमाम पहलुओं पर भी चर्चा हुई। यह बातचीत ऐसे समय पर हुई है जब दोनों देशों के रिश्ते 2020 के पूर्वी लद्दाख सैन्य गतिरोध के बाद से बेहद तनावपूर्ण रहे हैं।
हालांकि पिछले कुछ महीनों में डेमचोक और डेपसांग से सैनिकों की वापसी जैसे सकारात्मक संकेत भी सामने आए हैं, लेकिन विश्वास की बहाली की दिशा में अब भी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
वांग यी का बयान: “ड्रैगन और एलिफैंट साथ नाचें”
चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भारत-चीन संबंधों में सकारात्मक प्रगति की बात कही और कहा:
“ड्रैगन और एलिफैंट अगर साथ नाचें, तो परिणाम हमेशा जीत के होंगे। दोनों देशों को संवेदनशील मुद्दों को संभालते हुए सीमा क्षेत्रों में शांति बनाए रखनी चाहिए।”
यह बयान प्रतीकात्मक रूप से यह दर्शाता है कि चीन भी अब संबंध सुधार की दिशा में गंभीर है, हालांकि चीन के वास्तविक व्यवहार और कार्यों पर भारत की नजर बनी हुई है।
Doval ने जताया SCO में सहयोग का समर्थन
NSA डोभाल ने चीन द्वारा SCO की अध्यक्षता को सफल बनाने की प्रतिबद्धता जताई और कहा कि भारत बहुपक्षीय मंचों पर चीन के साथ सहयोग को तैयार है। उन्होंने चीन की SCO शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की सराहना करते हुए भारत की ओर से पूर्ण समर्थन की बात कही।
सीमा विवाद पर SR स्तर की बातचीत की तैयारी
MEA के अनुसार, डोभाल और वांग ने Special Representative (SR) स्तर की अगली बैठक को लेकर भी सहमति जताई। दोनों पक्ष जल्द ही इस वार्ता को भारत में आयोजित करने की योजना पर सहमत हुए हैं।
यह बातचीत विशेष रूप से सीमा विवाद समाधान के लिए केंद्रित होती है और इससे पहले दिसंबर 2024 में बीजिंग में SR डायलॉग के तहत बैठक हो चुकी है।
मोदी-शी भेंट और रणनीतिक पृष्ठभूमि
यह पूरी कूटनीतिक प्रक्रिया पीएम नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच अक्टूबर 2024 में कज़ान में हुई बैठक के बाद तेज़ हुई है। दोनों नेताओं ने उस समय सीमा तनाव कम करने और संवाद को फिर से सक्रिय करने की सहमति दी थी।
डेमचोक और डेपसांग से सैन्य वापसी का समझौता इसी दिशा में एक निर्णायक क़दम था।
निष्कर्ष: क्षेत्रीय संतुलन की ओर बढ़ते कदम
SCO की यह बैठक केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं थी, बल्कि इसके ज़रिए कई कूटनीतिक संकेत और संदेश दिए गए हैं। भारत ने न केवल आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख दिखाया, बल्कि चीन को भी उसके सहयोगियों के प्रति जवाबदेही का अहसास कराया।
भारत और चीन, दोनों ही एशिया की दो बड़ी शक्तियां हैं, और इनकी स्थिरता पूरे क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है। डोभाल की बीजिंग यात्रा इस दिशा में एक संतुलित और सामरिक कूटनीति की मिसाल बन सकती है — बशर्ते कि दोनों देश वाकई में आत्मीय संवाद और पारस्परिक सम्मान के रास्ते पर आगे बढ़ें।
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