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भाषा का प्रश्न, क्षेत्रीय पहचान का संघर्ष: हिंदी पाठ्यक्रम को लेकर मराठी-तमिल एकता

Language question, struggle for regional identity: Marathi-Tamil unity over Hindi curriculum

पृष्ठभूमि – महाराष्ट्र का ‘तीन भाषा नीति’ विवाद

  • नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP) 2020 के तहत राज्यों को स्कूलों में तीन-भाषा फार्मूला लागू करने का प्रस्ताव था।
  • महाराष्ट्र ने इससे पहले क्लास I से V तक हिंदी भाषा को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने की पहल की — जिससे मराठी-औरंगाबाद(!) और हिंदी भाषी समुदायों में तीव्र विरोध हुआ।
  • जून 2025 की शुरुआत में Uddhav Sena (Shiv Sena UBT) और Raj Thackeray की MNS ने संयुक्त रूप से इसका विरोध करते हुए जोरदार आंदोलन छेड़ा।
  • राज्य सरकार ने दो सरकारी आदेश (GR) 29 जून को वापस ले लिए — इसे मराठी संघर्ष की बड़ी जीत मानकर विरोध का स्वरूप ‘आंदोलन से विजय जुलूस’ में परिवर्तित कर दिया गया।

🤝 पहला बड़ा राजनीतिक मेल – ठाकरे चचेरे भाइयों का मिलन

  • Uddhav Thackeray और राज ठाकरे लगभग 20 वर्षों बाद 5 जुलाई 2025 को वॉर्ली मैदान में एक मंच पर आए।
  • इस ‘Awaj Marathicha’ रैली को दोनों दलों ने भाषाई अस्मिता बचाने का संगठित मंच बनाया। राज ने इसे “हिन्दी को जबरदस्ती थोपने का विरोध” बताया और शुद्ध शैक्षणिक प्रक्रिया पर जोर दिया।

मुख्य बिंदु:

  • राज ठाकरे: “आप क्या हिंदी पढ़ाना चाहते हो, जबकि हिंदी बोलने वाले भी पीछे हैं?”
  • उद्धव ठाकरे: “हिंदी को धौंस के रूप में दबाया नहीं जायेगा। महाराष्ट्र में शिक्षा को मराठी संस्कृति से जोड़ना हमारा मकसद है।”

Uddhav Sena की स्पष्टीकरण – हिंदी के खिलाफ नहीं, जबरदस्ती के खिलाफ

  • Sena UBT के सांसद संजय राउत ने स्पष्ट किया: हम हिंदी की विरोधी नहीं — हमारा विरोध केवल प्राथमिक स्कूल में अतिव्यापक हिंदी को लागू करने से है।
  • राउत ने कहा, “हम हिंदी बोलते हैं, हिंदी संगीत, सिनेमा, रंगमंच यहाँ हैं। विरोध सिर्फ जबरन थोपे जाने से है।”

“उनका रुख कहता है कि वे हिंदी न बोलेंगे और न किसी को हिंदी बोलने देंगे। लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा नहीं है। हम हिंदी बोलते हैं… हमारा विरोध प्राथमिक शालाओं में हिंदी की कड़ाई से नहीं होगा।”


🕊️तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन का समर्थन

  • तमिलनाडु के मुख्यमन्त्री एमके स्टालिन ने ट्वीट कर इस आंदोलन का स्वागत किया: “तमिलनाडु में हिंदी थोपने की लड़ाई अब महाराष्ट्र में भी उठी है, यह पूरे देश में एक तूफानी विरोध बन चुकी है।”
  • उन्होंने यह भी कहा कि अब संघीय रुझानों के खिलाफ विरोध सीमित राज्यों तक नहीं सिमटेंगे, बल्कि भाषा अधिकारों के व्यापक अभियान का हिस्सा बनेंगे।

“बिजनेसा शक्तियों का मुकाबला करने वाले तमिल नाडु और महाराष्ट्र ने मिलकर हिंदी थोपने की कोशिशों की आंखें खोल दी हैं।”


स्थानीय राजनीति और राज्य प्रतिक्रिया

  • उद्धव और राज का गठबंधन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के लिए चेतावनी संदेश है — देशराज्य गठबंधन में अहंकार और विसंगति पैदा हो रही है।
  • फडणवीस का कहना, तीन-भाषा नीति NEP 2020 पर आधारित है तथा हिंदी अनिवार्य नहीं — वर्तिया विकल्प में अन्य भारतीय भाषाएँ भी मान्य होती हैं।
  • उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा, “भावनाएं स्वाभाविक हैं, लेकिन नीति में सलाह लेने की प्रक्रिया से विरोध को संतुलित किया जाना चाहिए।”

समान अनुभव – तमिलनाडु की ऐतिहासिक विरोध की पृष्ठभूमि

  • तमिलनाडु में 1937–1940 और 1965–1968 के हिंदी विरोध आंदोलन में सार्वजनिक हड़तालें, आत्मदाह, गिरफ्तारी और राजनीतिक बलिदान हुए थे।
  • C. Rajagopalachari और DMK नेताओं ने “English Ever, Hindi Never” के नारे से यह स्पष्ट किया कि शिक्षा पर भाषाई विस्तार से लोकतंत्र को खतरा था।

सामान्य सीख: जबरदस्ती शिक्षा में भाषा लागू करना, लोकसंस्कृति और संस्थागत स्वायत्तता पर संकट होता है।


क्या बदल गया है?

विषयस्थिति पहलेस्थिति अब
हिंदी अनिवार्यतापूर्ण कक्षा I-Vविकल्पात्मक तीसरी भाषा
राजनीतिक समर्थनमोदी सरकार, हिंदीमंचमराठी नेताओं की एकजुटता
विरोधी राजनीतिअकेले ठाकरे गुटहिंदी विरोध में तमिल-तमिलनाडु समर्थन
भाषा नीतिसख्ती, GR जारीGR वापस, समीक्षा कमेटी बनी

आगे की संभावित राह

  1. नीति समीक्षा कमेटी – प्रो. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में, तीन महीने में फाइनल रिपोर्ट देनी है।
  2. संघीय संवाद प्रारंभ – तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केंद्र के बीच भाषा नीति पर बहु-राज्यीय समन्वय की संभावना
  3. विधानसभा चुनाव 2025-26 – मराठी अस्मिता और शिक्षा मुद्दों की वापसी, संभवित चुनावी मुद्दा
  4. NEP में संशोधन – राज्यों की भाषाई अस्मिताओं को संक्षिप्त रूप से सम्मानित करने का नियोजन

निष्कर्षः अस्मिता, राष्ट्रभाषा और संघीय संतुलन

  • यह घटना केवल राज्य स्तर की घटना नहीं — बल्कि यह है केंद्रीय नीति में संस्थागत चेतना का उदय।
  • मराठी अस्मिता ने न केवल स्थानीय पहचान बचाई, बल्कि
  • तमिल संघर्षो की समानांतिक यादों ने इसे राष्ट्रीय प्रदर्शन बना दिया।
  • लोकतांत्रिक भारत के संविधान में संघीय स्वरूप और भाषाई विविधता का संतुलन आवश्यक है, और अब सरकारी निर्णय उसी दिशा में मोड़ सकते हैं।

यह प्रसंग न केवल भाषा-राजनीति का एक नया अध्याय लिख रहा है, बल्कि यह देशभर के राज्यों के बीच संवाद / सहयोग की संभावनाओं की आधारशिला भी रख रहा है।

आगे की रणनीति, चुनावी परिणाम, कमेटी रिपोर्ट और रणनीतिक संवाद – सब देखें तब कि कहीं यह घटना केवल एक घटनाक्रम नहीं, बल्कि भारत की फेडरल भावना को जागृत करने वाला ऐतिहासिक पल बन जाए।

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