औरंगाबाद जिले के कुटुंबा प्रखंड में स्थित कुटुंबा गढ़ सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि बिहार की पुरानी सभ्यता और संस्कृति की पहचान है। करीब 53 एकड़ ज़मीन में फैला ये ऐतिहासिक गढ़ सैकड़ों साल पुराना है और कई राजघरानों व ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह भी रह चुका है। स्थानीय लोगों के लिए यह एक आस्था और गर्व का स्थान है। साथ ही यह गढ़ इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों के लिए भी बेहद खास जगह बन सकता है।

कुटुंबा गढ़ की खुदाई में निकले इतिहास के अनमोल निशान
कुटुंबा गढ़ की खुदाई के दौरान पुराने समय की कई खास चीजें मिली हैं। इनमें मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, पुराने सिक्के, और धातु की बनी चीजें शामिल हैं। इन चीजों से यह पता चलता है कि यह जगह शुंग वंश, हर्षवर्धन और वैष्णव काल से जुड़ी रही है। यह खुदाई साबित करती है कि कुटुंबा गढ़ एक बहुत ही समृद्ध और ऐतिहासिक जगह रही है, जहां कभी बड़ी सभ्यताएं बसी थीं।

कुटुंबा गढ़: पलवंश और क्षत्रिय शौर्य की गाथा
इतिहासकारों की मानें तो कुटुंबा गढ़ कभी पाल वंश और क्षत्रिय राजाओं का दुर्ग हुआ करता था। यहां कभी राजपूत राजा-रानियों ने युद्ध में हार के बाद एक साथ जौहर किया था, यानी अपनी इज्जत और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए आग में कूद गए थे। आज भी उस जगह को लोग बड़े आदर और श्रद्धा से याद करते हैं। खासतौर पर एक पुराने स्कूल गेट के पास, जहां लोग पूजा-पाठ भी करते हैं। यह गढ़ न सिर्फ ईंट-पत्थरों से बना किला है, बल्कि शौर्य, बलिदान और इतिहास की जिंदा मिसाल है।

गढ़ से मिली देवी-देवताओं की मूर्तियां, दिखती है अद्भुत शिल्पकला
कुटुंबा गढ़ की खुदाई में माता पार्वती की खंडित मूर्तियां, प्राचीन शिवलिंग और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली हैं।इन मूर्तियों की बारीकी और सुंदरता देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस दौर की कला और कारीगरी कितनी उन्नत और परिष्कृत थी। हर मूर्ति में इतनी खूबसूरत नक्काशी है कि वह समय की कलात्मक परंपरा और आस्था, दोनों को बखूबी दर्शाती है।

सीएम नीतीश कुमार की पहल पर हुई थी कुटुंबा गढ़ की खुदाई
साल 2010 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुटुंबा गढ़ का दौरा किया था। इसके बाद 2011 में उन्होंने दोबारा इस ऐतिहासिक स्थल का भ्रमण किया और इसकी ऐतिहासिकता को देखते हुए पुरातत्व विभाग को खुदाई और गहराई से अध्ययन का आदेश दिया। मुख्यमंत्री के निर्देश पर खुदाई शुरू की गई, जिसमें अनेक कालों से जुड़े प्राचीन अवशेष बरामद हुए। यह खुदाई न सिर्फ इतिहास को उजागर करने का जरिया बनी, बल्कि इलाके की पहचान भी राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा गई।

पर्यटन स्थल बनने की राह पर कुटुंबा गढ़, ग्रामीणों को है उम्मीद
सरकार की “विरासत बचाओ” योजना के तहत कुटुंबा गढ़ को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई है। खुदाई में मिली ऐतिहासिक वस्तुओं को फिलहाल संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है, लेकिन अभी तक गढ़ की पूरी खुदाई नहीं हो सकी है। स्थानीय लोगों की मांग है कि इस ऐतिहासिक जगह को पूरी तरह विकसित किया जाए, ताकि यह सिर्फ इतिहास पढ़ने की जगह न रहे, बल्कि यहां आने वाले पर्यटकों से गांव वालों को रोजगार के मौके भी मिलें।
अगर यह गढ़ पूरी तरह से संवारा जाए, तो यह न सिर्फ बिहार की शान बन सकता है, बल्कि देशभर के लोगों को भी यहां की विरासत से जोड़ सकता है।
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