कोलकाता में साउथ कोलकाता लॉ कॉलेज की छात्रा से गैंगरेप के मामले में एक के बाद एक चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। इस जघन्य वारदात की जांच कर रही कोलकाता पुलिस की नौ सदस्यीय विशेष जांच टीम (SIT) ने जो बातें सामने रखी हैं, वो न केवल दिल दहला देने वाली हैं, बल्कि इस बात की ओर भी इशारा करती हैं कि कैसे कुछ दरिंदे कॉलेज जैसे सुरक्षित माने जाने वाले स्थानों में भी अपने इरादों को अंजाम दे सकते हैं।
पहले से तय था शिकार और साजिश
SIT की जांच में सामने आया है कि इस गैंगरेप को अंजाम देने की साजिश पहले से रची गई थी। मुख्य आरोपी मनोजित मिश्रा, प्रतीम मुखर्जी और ज़ैद अहमद ने कई दिनों पहले इस वारदात की योजना बना ली थी। पुलिस सूत्रों के अनुसार, पीड़िता को कॉलेज में दाखिले के पहले दिन से ही टारगेट किया गया था। आरोपी उस पर नजर बनाए हुए थे और मौके की तलाश में थे।
यह घटना 25 जून को साउथ कोलकाता लॉ कॉलेज के भीतर शाम के समय घटी। पीड़िता को एक सुनसान कमरे में ले जाकर तीनों आरोपियों ने न केवल उसके साथ बलात्कार किया, बल्कि उस पर शारीरिक और मानसिक अत्याचार भी किए।
पहले भी कर चुके हैं यौन उत्पीड़न
SIT को जांच में यह भी पता चला है कि तीनों आरोपी पहले भी कॉलेज की कई अन्य छात्राओं के साथ यौन उत्पीड़न कर चुके हैं। वे लड़कियों को परेशान करते थे, उनके साथ जबरन नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करते थे और अक्सर उन्हें डराते-धमकाते थे।
सबसे गंभीर बात यह है कि ये आरोपी अपनी हरकतों के वीडियो मोबाइल पर रिकॉर्ड करते थे और फिर उन्हीं क्लिप्स को दिखाकर लड़कियों को ब्लैकमेल करते थे। पुलिस का मानना है कि यह कोई पहली घटना नहीं है, बल्कि एक लंबे समय से चल रही शृंखला का हिस्सा है।
मोबाइल क्लिप्स की तलाश
कोलकाता पुलिस अब उन मोबाइल वीडियो क्लिप्स की तलाश कर रही है, जो इन तीनों आरोपियों ने घटनास्थल या अन्य मौकों पर बनाई थीं। पुलिस ने प्रतीम मुखर्जी और ज़ैद अहमद के घर पर रविवार को छापेमारी की थी। माना जा रहा है कि कुछ आपत्तिजनक वीडियो वहां से जब्त किए गए हैं।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि 25 जून को हुए गैंगरेप की घटना का वीडियो भी आरोपियों ने फिल्माया था और संभवतः उसे अन्य लोगों के साथ साझा भी किया गया है। पुलिस अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि क्या यह क्लिप्स किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म या अन्य माध्यम से फैलाई गई हैं।
यदि ऐसा पाया जाता है तो उन सभी लोगों से भी पूछताछ की जाएगी जिन्होंने ये वीडियो देखा या साझा किया हो। यह डिजिटल साक्ष्य न केवल अपराध की पुष्टि में मदद करेंगे, बल्कि पीड़िता के साथ न्याय दिलाने की दिशा में भी निर्णायक होंगे।
कॉलेज परिसर में 25 जून की शाम कौन-कौन था?
SIT ने 25 जून की शाम कॉलेज परिसर में मौजूद लगभग 25 छात्रों की सूची तैयार की है। इनमें से कई छात्रों से पूछताछ की जा रही है ताकि यह पता चल सके कि घटना के दिन उन्होंने क्या देखा, सुना या महसूस किया। पुलिस इस बात को भी जानने की कोशिश कर रही है कि क्या किसी ने पीड़िता की मदद करने की कोशिश की या फिर सब कुछ चुपचाप देखते रहे।
इस जांच का मकसद केवल आरोपियों को सजा दिलाना ही नहीं, बल्कि यह भी स्पष्ट करना है कि कॉलेज प्रशासन और स्टूडेंट्स ने इस मामले में कैसे प्रतिक्रिया दी।
राजनीति और न्याय के बीच की लड़ाई
इस मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। बीजेपी की फैक्ट-फाइंडिंग टीम और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब खुद पीड़िता से मिलने कोलकाता पहुंचे हैं। उनका आरोप है कि मुख्य आरोपी मनोजित मिश्रा का संबंध सत्ताधारी पार्टी TMC से है और सरकार उसे बचाने की कोशिश कर रही है।
वहीं TMC नेताओं ने पलटवार करते हुए कहा कि पुलिस ने 12 घंटे के भीतर तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और तेज़ी से कार्रवाई हो रही है। वे इस मामले को राजनीतिक चश्मे से देखने के बजाय कानून के मुताबिक निपटाने की बात कह रहे हैं।
सवाल कॉलेज प्रशासन पर भी
इस वारदात के बाद कॉलेज प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं। अगर आरोपी पहले से यौन उत्पीड़न की घटनाओं में शामिल थे तो क्या कॉलेज को इसकी भनक नहीं थी? क्या ऐसे छात्रों पर पहले कोई कार्रवाई नहीं की गई? कॉलेज में सुरक्षा इंतज़ाम कैसे थे? क्या CCTV कैमरे काम कर रहे थे?
यह भी चिंता का विषय है कि एक लॉ कॉलेज — जहाँ छात्रों को कानून की पढ़ाई दी जाती है — वही जगह अगर कानून की धज्जियां उड़ाने का अड्डा बन जाए, तो फिर समाज को किस पर भरोसा रहेगा?
निष्कर्ष
कोलकाता लॉ कॉलेज गैंगरेप केस एक चेतावनी है — उन संस्थानों के लिए, जहाँ युवाओं को सुरक्षित माहौल देने का दावा किया जाता है। यह मामला केवल एक छात्रा के साथ हुई दरिंदगी का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल उठाने का है।
अब जरूरी है कि पुलिस तेज़ी से जांच पूरी करे, आरोपियों को सख्त सजा दिलाए और कॉलेज परिसर में सुरक्षा उपायों को दुरुस्त किया जाए। साथ ही, ऐसे मामलों में राजनीतिक बयानबाजी की जगह संवेदनशीलता और निष्पक्ष न्याय को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
क्योंकि अगर कॉलेज के भीतर बेटियां सुरक्षित नहीं हैं, तो फिर हम किस तरह के समाज की कल्पना कर रहे हैं?
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