उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले में स्थित कैंची धाम आज देश और दुनिया में अपनी आध्यात्मिक महिमा और चमत्कारों के लिए जाना जाता है। इस पावन स्थल की स्थापना बाबा नीम करौली (नीब करौरी) बाबा ने की थी, जिन्हें हनुमान जी का अवतार भी माना जाता है। बताया जाता है कि 1960 के दशक में बाबा जब रानीखेत से नैनीताल की ओर जा रहे थे, तो रास्ते में उन्होंने एक जगह रुककर सड़क किनारे पैराफिट (चबूतरे) पर बैठते हुए सामने जंगल की ओर इशारा किया और कहा – “यह जगह खास है, यहीं मंदिर बनेगा।” बाबा ने खुद इस ज़मीन को चुना और बाद में यहीं पर कैंची धाम मंदिर की नींव रखी गई। आज यह स्थान लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन चुका है, जहाँ लोग देश-विदेश से बाबा के दर्शन और आशीर्वाद के लिए पहुंचते हैं।

कैंची धाम में स्थित हनुमान जी का मंदिर बहुत ही भव्य और दिव्य है। कैंची धाम ट्रस्ट के प्रबंधक प्रदीप शाह (भैय्यू दा) बताते हैं कि बाबा नीम करौली की दृष्टि में यह स्थान विशेष ऊर्जा और आध्यात्मिक शांति से भरपूर था। ऐसा माना जाता है कि यह स्थान पहले सोमवारी महाराज की तपोभूमि रहा था, और वहां उनकी धुनी (ध्यान और साधना का स्थान) भी मौजूद थी। यही वह जगह थी जहां बाद में हनुमान जी का मंदिर बनाया गया, जिसे बाबा नीम करौली जी ने स्वयं स्थापित करवाया। बाबा ने सिर्फ हनुमान मंदिर ही नहीं, बल्कि इस पूरे क्षेत्र में कई अन्य धार्मिक स्थलों का भी निर्माण करवाया। हर साल 15 जून को कैंची धाम का स्थापना दिवस बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु यहां बाबा के दर्शन और आशीर्वाद के लिए पहुंचते हैं।

लोगों की आस्था है कि बाबा नीम करौली वास्तव में हनुमान जी के ही स्वरूप थे। कैंची धाम ट्रस्ट के प्रबंधक प्रदीप शाह (भैय्यू दा) बताते हैं कि पहाड़ के लोग महाराज जी को हनुमंत स्वरूप मानते हैं और उनकी हर लीला में हनुमान जी की झलक दिखाई देती थी। कहा जाता है कि बाबा नीम करौली बचपन में ही गुजरात चले गए थे और बाद में उन्होंने फर्रुखाबाद, लखनऊ, कानपुर, ऋषिकेश, वृंदावन, शिमला जैसे कई स्थानों पर हनुमान मंदिरों की स्थापना की। बाबा जहाँ भी गए, वहाँ की भूमि हनुमंतमय हो गई — यानी वहाँ एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा और भक्ति का माहौल बन गया। भक्तों का मानना है कि बाबा की उपस्थिति ही अपने आप में हनुमान जी का आशीर्वाद होती थी।

कैंची धाम की नींव खुद बाबा नीम करौली जी ने रखी थी। बताया जाता है कि साल 1962 में बाबा पहली बार इस स्थान पर आए थे और यहीं पर हनुमान मंदिर की नींव रखी। कैंची धाम ट्रस्ट के प्रबंधक प्रदीप शाह (भैय्यू दा) बताते हैं कि उस समय बाबा तुलाराम साह और श्री सिद्धि मां के साथ रानीखेत से नैनीताल की ओर जा रहे थे। तभी रास्ते में बाबा अचानक गाड़ी से उतर गए और जहां आज कैंची मंदिर है, वहां सड़क किनारे पैराफिट में बैठ गए। वो एकटक सामने की ओर देखने लगे, जहाँ आज मंदिर है। बाबा ने वहीं मौजूद सोमबारी महाराज की गुफा और धूनी को देखने की इच्छा जताई और उस स्थान को आध्यात्मिक केंद्र बनाने की बात कही। उन्होंने उस जगह की सफाई करवाने का आदेश दिया और कहा कि हवन कुंड और गुफा को ढक दिया जाए। हालांकि उस समय जंगलात विभाग ने कई बार मंदिर निर्माण की अनुमति देने से मना किया, लेकिन बाबा का संकल्प अडिग रहा — और बाद में वहीं पर बना आज का कैंची धाम, जो आज लाखों भक्तों की आस्था का स्थान बन चुका है।

हालांकि शुरुआत में मंदिर निर्माण की अनुमति नहीं मिल रही थी, लेकिन बाबा नीम करौली जी की आध्यात्मिक शक्ति और संकल्प के कारण अंततः वहां मंदिर बनाने की अनुमति मिल गई। बाबा ने सबसे पहले हनुमान जी का मंदिर स्थापित किया, और फिर धीरे-धीरे अन्य मंदिरों और धार्मिक स्थलों का निर्माण भी हुआ। तभी से कैंची धाम लोगों की गहरी आस्था का केंद्र बन गया। आज यह धाम देश के प्रमुख आध्यात्मिक स्थलों में गिना जाता है। हर साल 15 जून को स्थापना दिवस के मौके पर और बाकी समय भी, देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां बाबा के दर्शन के लिए आते हैं। यहां तक कि कई जानी-मानी हस्तियां भी कैंची धाम आकर बाबा नीम करौली जी का आशीर्वाद प्राप्त कर चुकी हैं।
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