भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से चल रही द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं के बीच एक बड़ी खबर सामने आ रही है। सूत्रों के मुताबिक, अगले 48 घंटों में दोनों देशों के बीच एक अंतरिम व्यापार समझौते (Interim Trade Deal) को अंतिम रूप दिया जा सकता है। यह वार्ता वाशिंगटन डीसी में चल रही है, जहां भारतीय व्यापार प्रतिनिधिमंडल ने बीते सप्ताह अपने प्रवास को बढ़ा दिया ताकि अंतिम मुद्दों पर सहमति बनाई जा सके।
यह समझौता, जिसे ‘मिनी ट्रेड डील’ भी कहा जा रहा है, अमेरिका द्वारा लगाए गए 26 प्रतिशत शुल्क के अस्थायी निलंबन की समयसीमा समाप्त होने (9 जुलाई, 2025) से पहले किया जाना है। यदि यह डील तय नहीं होती, तो अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए पुनः शुल्क लागू हो सकते हैं, जिससे दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को गहरी चोट पहुंच सकती है।
भारत की प्राथमिकता: श्रम-प्रधान उत्पादों पर शुल्क छूट
भारत की तरफ से इस डील में सबसे ज़्यादा ज़ोर श्रम-प्रधान निर्यात उत्पादों पर शुल्क कटौती पर दिया जा रहा है। इसमें विशेष रूप से जूते-चप्पल, परिधान (गर्मेंट्स), चमड़ा उत्पाद (लेदर गुड्स) जैसे उद्योग शामिल हैं, जो भारत में लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं।
भारतीय वार्ताकारों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर अमेरिकी पक्ष केवल अपने हितों की बात करेगा और भारत को कोई प्रतिकारात्मक टैरिफ लाभ नहीं देगा, तो भारत इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करेगा। भारत का यह भी तर्क है कि अगर अमेरिका इन श्रेणियों में शुल्क नहीं घटाता, तो 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को $500 बिलियन तक पहुंचाने का लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (FIEO) के सीईओ अजय सहाय ने NDTV को बताया:
“हमारा अनुमान है कि अगर यह डील हो जाती है, तो अगले तीन वर्षों में अमेरिका को भारत का निर्यात दोगुना हो सकता है।”
अमेरिका की मांगें: कृषि और डेयरी बाजार तक पहुंच
अमेरिकी पक्ष की प्रमुख मांगों में से एक है कि भारत अपने कृषि और डेयरी क्षेत्र को अमेरिका के लिए खोलें, जिससे अमेरिकी कंपनियों को यहां बाजार मिले। इसके अलावा अमेरिका ने जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों को भी भारतीय बाजार में मंजूरी देने की मांग की है।
हालांकि, भारत इस पर सख्त रुख अपनाए हुए है। भारतीय किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह छोटे और सीमांत किसानों पर आधारित है, जिनकी औसत भूमि जोत 1-2 हेक्टेयर से भी कम होती है। ऐसे में जीएम फसलों या अमेरिकी डेयरी उत्पादों को अनुमति देना, देश की खाद्य सुरक्षा, किसान आजीविका और राजनीतिक स्थिरता के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने NDTV को बताया:
“कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को इस डील से बाहर रखा जाएगा। ये क्षेत्र हमारे ग्रामीण जीवन और सुरक्षा से जुड़े हुए हैं।”
डील का फोकस: आपसी शुल्क कटौती और पारस्परिक लाभ
NDTV Profit की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक की बातचीत में फोकस व्यापक व्यापार समझौते के बजाय केवल शुल्क कटौती पर आ गया है। भारत और अमेरिका दोनों पक्ष अब उस पर सहमत होने की कोशिश कर रहे हैं जहां वे एक-दूसरे के लिए शुल्क घटाएं या हटाएं और द्विपक्षीय व्यापार को सरल बनाएं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को फिर एक बार इस बात को दोहराया कि:
“मुझे लगता है कि हम भारत के साथ डील करेंगे। यह एक अलग तरह की डील होगी, जहां दोनों देश एक-दूसरे के बाजार में कम शुल्क पर प्रतिस्पर्धा कर सकेंगे। फिलहाल भारत किसी को भी अंदर नहीं आने देता, लेकिन मुझे लगता है कि वह अब ऐसा करेगा।”
ट्रंप के इस बयान को भारतीय पक्ष ने सकारात्मक संकेत के रूप में देखा है, लेकिन साथ ही उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत की शर्तें भी उतनी ही अहम हैं।
26% टैरिफ की उलटी गिनती: 9 जुलाई है अंतिम तारीख
यह डील इसलिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि 9 जुलाई को 26% शुल्क के निलंबन की अवधि समाप्त हो रही है। यह शुल्क उस समय लगाया गया था जब ट्रंप प्रशासन ने व्यापार में असंतुलन और टैरिफ की असमानता को मुद्दा बनाते हुए भारत सहित कई देशों पर पुनर्वाह टैरिफ (Retaliatory Tariffs) लगाए थे।
हालांकि बाद में इन शुल्कों को 90 दिनों के लिए निलंबित कर दिया गया था ताकि बातचीत का समय मिल सके। यदि डील नहीं होती है, तो भारतीय निर्यातों पर एक बार फिर यह भारी शुल्क लगना शुरू हो जाएगा।
एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी ने ANI को बताया:
“यदि बातचीत विफल होती है तो अमेरिका की ओर से 26% शुल्क तुरंत दोबारा लागू हो जाएगा।”
लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि भले ही डील न हो, भारत को ज्यादा नुकसान नहीं होगा क्योंकि अन्य प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में यह शुल्क अभी भी कम है।
क्या भारत की कृषि नीति टूटेगी?
भारत ने अब तक किसी भी मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में अपने डेयरी और कृषि क्षेत्र को नहीं खोला है। अमेरिका का इस मुद्दे पर ज़ोर देना, भारत की अब तक की नीति को बदलने का दबाव बनाता है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत इस पर झुकने के लिए तैयार नहीं है।
भारत के लिए यह न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक रूप से भी अत्यधिक संवेदनशील मुद्दा है। चुनावों के समय किसानों का असंतोष सरकारों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। लिहाज़ा, भारत का रुख इस मुद्दे पर पूरी तरह स्पष्ट और दृढ़ है।
निष्कर्ष: समझौते की संभावनाएं मजबूत, लेकिन सीमित दायरे में
भारत और अमेरिका के बीच यह ‘मिनी ट्रेड डील’ एक राजनीतिक संतुलन और व्यावसायिक बुद्धिमत्ता का परिणाम होगी। अमेरिका जहां अपने कृषि और जेनेटिक फूड को भारतीय बाजार में लाना चाहता है, वहीं भारत अपने श्रम-प्रधान उत्पादों के लिए बाजार और टैरिफ राहत चाहता है।
दोनों पक्ष अब अंतिम दौर की वार्ता में हैं और यदि 48 घंटों में समझौता हो जाता है, तो यह भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में एक नई दिशा देगा। लेकिन अगर डील नहीं होती, तो शुल्कों की बहाली और संबंधों में खटास की संभावना बनी हुई है।
सवाल यह भी है कि क्या यह डील आने वाले समय में व्यापक मुक्त व्यापार समझौते (Bilateral Trade Agreement) की नींव रखेगी? क्या इससे भारत को GSP (Generalized System of Preferences) जैसी पहले की सुविधाएं फिर से मिल सकती हैं?
यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन फिलहाल पूरी दुनिया की नजरें भारत और अमेरिका के बीच अगले 48 घंटों में होने वाले इस निर्णायक फैसले पर टिकी हुई हैं।
मुख्य बिंदु (सारांश):
- भारत-अमेरिका के बीच 48 घंटे में संभावित व्यापार समझौता
- भारत मांग रहा है: जूते, परिधान, लेदर उत्पादों पर टैरिफ राहत
- अमेरिका चाहता है: कृषि और डेयरी में बाजार पहुंच
- GM फसलें और डेयरी, भारत के लिए “लाल रेखा”
- 9 जुलाई को खत्म हो रही है टैरिफ निलंबन की समयसीमा
- डील न होने पर फिर से लागू हो सकता है 26% शुल्क
- डील से भारत का निर्यात अगले 3 वर्षों में दोगुना हो सकता है
यह व्यापारिक सौदा सिर्फ एक आर्थिक करार नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति, रणनीतिक दृष्टिकोण और किसान हितों के प्रति प्रतिबद्धता की परीक्षा भी है।
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