चंडीगढ़, 5 जुलाई 2025 –
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने शुक्रवार को पंजाब सरकार के महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) को शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता बिक्रम सिंह मजीठिया द्वारा दायर उस याचिका पर जवाब देने का निर्देश दिया जिसमें उन्होंने अवैध गिरफ्तारी और रिमांड आदेश को चुनौती दी है।
यह मामला मजीठिया के खिलाफ दर्ज एक अवैध संपत्ति (Disproportionate Assets – DA) केस से जुड़ा है, जिसमें उन पर 540 करोड़ रुपये की “ड्रग मनी” को मनी लॉन्डरिंग के ज़रिये वैध बनाने का गंभीर आरोप है।
हाईकोर्ट की सुनवाई में क्या हुआ?
मजीठिया के वकील अर्शदीप सिंह क्लेर ने मीडिया को बताया कि पंजाब के एडवोकेट जनरल मनिंदरजीत सिंह बेदी ने स्वयं अदालत में पेश होकर राज्य सरकार की ओर से निर्देश लेने की बात कही।
हाईकोर्ट ने मजीठिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि:
“राज्य सरकार यह स्पष्ट करे कि याचिका क्या है और याचिकाकर्ता की मुख्य आपत्ति क्या है।”
इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि मजीठिया की रिमांड की संशोधित प्रति (Amended Remand Order) भी रिकॉर्ड पर लाई जाए। वकील के मुताबिक, 3 जुलाई को मजीठिया की रिमांड को लेकर जो नया आदेश पेश किया गया था, उसमें तारीख को 5 जुलाई से बदलकर 6 जुलाई कर दिया गया, और अदालत ने इसे भी रिकॉर्ड में शामिल करने को कहा।
मजीठिया की गिरफ्तारी और रिमांड का पूरा घटनाक्रम
- 25 जून 2025:
पंजाब विजिलेंस ब्यूरो ने DA केस में मजीठिया को गिरफ्तार किया। आरोप – ₹540 करोड़ की “ड्रग मनी” को वैध रूप देने की साजिश। - 26 जून:
मोहाली कोर्ट ने मजीठिया को 7 दिन की विजिलेंस रिमांड में भेजा। - 2 जुलाई:
सात दिन की रिमांड पूरी होने के बाद कोर्ट ने उनकी हिरासत 4 दिन और बढ़ा दी। - 3 जुलाई:
नया रिमांड आदेश पेश किया गया, जिसमें तारीख 5 जुलाई दी गई थी, बाद में संशोधित कर 6 जुलाई कर दी गई।
मजीठिया की याचिका में क्या-क्या कहा गया?
1 जुलाई को दायर याचिका में मजीठिया ने अपनी गिरफ्तारी और रिमांड को “राजनीतिक प्रतिशोध और वैचारिक विद्वेष” करार देते हुए इसे अवैध और असंवैधानिक बताया।
याचिका में प्रमुख बिंदु:
गिरफ्तारी को बताया “गैरकानूनी”
- FIR “स्पष्ट रूप से अवैध” है।
- गिरफ़्तारी स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं का घोर उल्लंघन है।
- विजिलेंस की रिमांड अर्जी में कोई ठोस जांच का आधार नहीं है – सिर्फ अनुमान, विदेशी संपर्कों और सामान्य कथनों का हवाला है।
सुप्रीम कोर्ट का हवाला
- सुप्रीम कोर्ट ने 4 मार्च 2024 के विस्तृत आदेश में, इन्हीं आरोपों के बावजूद मजीठिया की कस्टोडियल इंटेरोगेशन (हिरासत में पूछताछ) की मांग को खारिज कर दिया था।
- राज्य सरकार ने उस समय भी कई हलफनामे दाखिल किए थे।
गंभीर कानूनी मुद्दे उठाए गए
- आपराधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग
- रिमांड शक्तियों का अनुचित प्रयोग
- निष्पक्ष जांच और नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन
मांग
- रिमांड आदेश को रद्द किया जाए
- गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया जाए
- आगे की कार्यवाही पर रोक लगाई जाए
540 करोड़ की “ड्रग मनी” और मनी लॉन्डरिंग का आरोप
विजिलेंस ब्यूरो के अनुसार, मजीठिया द्वारा:
- “ड्रग व्यापार” से प्राप्त धन को बेनामी संपत्तियों, फर्जी कंपनियों, और सहयोगियों के नाम पर छिपाया गया।
- यह पैसा 2010-2017 के बीच अलग-अलग माध्यमों से सफेद किया गया।
- कुछ ट्रांजैक्शन विदेशों में स्थित कंपनियों और खातों से भी जुड़े हैं।
VB का दावा है कि यह मामला सिर्फ DA का नहीं, बल्कि “संगठित आपराधिक नेटवर्क के जरिए नशीले पदार्थों की कमाई को वैध बनाने का संगीन मामला” है।
पुराना मामला: NDPS एक्ट और जेल यात्रा
बता दें कि मजीठिया पहले भी 2021 में NDPS (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances) एक्ट के तहत केस में फंसे थे।
- यह कार्रवाई 2018 की एंटी-ड्रग STF रिपोर्ट के आधार पर हुई थी।
- उन्होंने पांच महीने पटियाला जेल में बिताए थे।
- अगस्त 2022 में हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी थी।
अब विजिलेंस ब्यूरो ने उसी जांच की कड़ी के तौर पर यह नया DA केस दर्ज किया है।
राजनीतिक मायने और विवाद
मजीठिया का आरोप:
“यह केस पूरी तरह से राजनीतिक प्रतिशोध है। मैं मौजूदा सरकार का मुखर आलोचक हूं, इसलिए मुझे निशाना बनाया जा रहा है।”
विपक्ष का रुख:
- अकाली दल इसे “जनता का ध्यान भटकाने की साजिश” बता रहा है।
- पार्टी का कहना है कि कांग्रेस और अब आम आदमी पार्टी, दोनों ने राजनीतिक बदले की भावना से मजीठिया को निशाना बनाया।
राज्य सरकार का पक्ष:
- सरकार का दावा है कि जांच प्रारंभिक सबूतों और फोरेंसिक डेटा पर आधारित है।
- मजीठिया के पुराने संपर्क, कंपनियों और संपत्तियों की जांच चल रही है।
- उनका राजनीतिक कद जांच से ऊपर नहीं हो सकता।
विश्लेषण: क्या यह मामला कानून बनाम राजनीति का है?
यह मामला सिर्फ DA का नहीं, बल्कि इससे जुड़ी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता, कानून के दुरुपयोग के आरोप, और संविधानिक अधिकारों की भी परीक्षा है।
- क्या मजीठिया की गिरफ्तारी निष्पक्ष जांच का हिस्सा है?
- या फिर यह वास्तव में राजनीतिक प्रतिशोध है जैसा कि विपक्ष का आरोप है?
- हाईकोर्ट को अब यह तय करना है कि क्या विधि और प्रक्रिया का पालन किया गया, या इसमें गड़बड़ियां थीं।
निष्कर्ष
बिक्रम मजीठिया बनाम राज्य सरकार का यह मुकदमा आने वाले दिनों में पंजाब की राजनीति, कानून व्यवस्था और राज्य-न्यायपालिका के संबंधों की दिशा तय कर सकता है। हाईकोर्ट की अगली सुनवाई में शायद स्थिति और स्पष्ट होगी।
जहां एक ओर राज्य यह दावा करता है कि कोई भी आरोपी कानून से ऊपर नहीं है, वहीं विपक्ष का आरोप है कि कानून का इस्तेमाल बदले की भावना से किया जा रहा है।
अब न्यायालय पर निर्भर है कि वह इस मामले में न्याय, प्रक्रिया और नागरिक अधिकारों की रक्षा करते हुए एक संतुलित फैसला सुनाए।
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