नई दिल्ली/मुंबई, 5 जुलाई 2025 –
भारत के एक प्रमुख निजी बैंक HDFC के प्रबंध निदेशक और सीईओ सशिधर जगदीशन को सुप्रीम कोर्ट से उस समय झटका लगा जब शीर्ष अदालत ने उन्हें कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। यह मामला मुंबई के लीलावती अस्पताल ट्रस्ट से जुड़ी कथित रिश्वत का है, जिसमें उनके खिलाफ ₹2.05 करोड़ की रिश्वत लेने और धोखाधड़ी के गंभीर आरोप हैं।
मामला क्या है?
मुंबई पुलिस ने 29 मई 2025 को जगदीशन के खिलाफ एक FIR दर्ज की, जिसमें आरोप है कि उन्होंने मार्च 2022 से जून 2023 के बीच लीलावती अस्पताल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने और एक विशेष गुट को बढ़ावा देने के लिए ₹2.05 करोड़ की रिश्वत ली। यह गुट अस्पताल के पूर्व ट्रस्टी चेतन मेहता के नेतृत्व में बताया गया है।
FIR में IPC की निम्नलिखित धाराएं लगाई गई हैं:
- धारा 406 – आपराधिक विश्वासघात
- धारा 409 – लोकसेवक या बैंककर्मी द्वारा आपराधिक विश्वासघात
- धारा 420 – धोखाधड़ी
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या हुआ?
जस्टिस पी.एस. नरसिंहा और आर. महादेवन की पीठ ने जगदीशन की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि उन्हें सभी दलीलें बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष पेश करनी होंगी, जहां इस मामले की सुनवाई 14 जुलाई 2025 को निर्धारित है।
पीठ की टिप्पणी:
“हम सूचित किए गए हैं कि मामला 14 जुलाई को बॉम्बे हाईकोर्ट में सूचीबद्ध है। इसलिए हम इस याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि पहले यह मामला 18, 25 और 26 जून को हाईकोर्ट में सूचीबद्ध था लेकिन लगातार न्यायाधीशों के खुद को अलग करने (recusal) के कारण सुनवाई नहीं हो सकी।
जगदीशन की दलीलें: “FIR निराधार और प्रतिशोधात्मक है”
जगदीशन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से तात्कालिक राहत की मांग करते हुए कहा:
“मैं बैंक का एमडी हूं और लीलावती ट्रस्ट के आंतरिक विवादों से मेरा कोई लेना-देना नहीं है। मेरे खिलाफ एक फर्जी FIR दर्ज की गई है। इससे मुझे और बैंक दोनों को मानसिक पीड़ा हो रही है।”
उन्होंने आशंका जताई कि पुलिस उन्हें जबरन थाने बुलाकर बैंक और उनकी छवि को नुकसान पहुंचा सकती है।
लेकिन कोर्ट का जवाब:
“आप अपनी सारी दलीलें हाईकोर्ट में रखें। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई जजों ने खुद को अलग कर लिया, लेकिन अब मामला सूचीबद्ध है।”
लीलावती अस्पताल ट्रस्ट विवाद की पृष्ठभूमि
यह विवाद मुंबई के प्रतिष्ठित लीलावती किरतिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट से जुड़ा है, जो बंधरा स्थित लीलावती अस्पताल का संचालन करता है। ट्रस्ट के भीतर पुराने और नए ट्रस्टियों के बीच लंबे समय से सत्ता संघर्ष चल रहा है।
किशोर मेहता की मृत्यु और विवाद की तीव्रता
- ट्रस्ट के संस्थापक सदस्य किशोर मेहता की अप्रैल 2025 में मृत्यु के बाद यह विवाद और तेज़ हो गया।
- उनके बेटे प्रशांत मेहता ने आरोप लगाया कि HDFC बैंक द्वारा Splendour Gems Ltd के खिलाफ ऋण वसूली की प्रक्रिया फिर से शुरू करने के कारण उनके पिता को मानसिक तनाव हुआ, जिससे उनकी मृत्यु हुई।
Splendour Gems Ltd और ऋण वसूली विवाद
- Splendour Gems Ltd, जिसे पहले Beautiful Diamonds Ltd कहा जाता था, ने HDFC बैंक से ₹14.74 करोड़ का लोन लिया था।
- ब्याज समेत यह बकाया मई 2025 तक ₹65 करोड़ से अधिक हो चुका था।
- बैंक ने जब वसूली प्रक्रिया दोबारा शुरू की, तभी यह कथित रिश्वत का मामला उभरा।
FIR में क्या आरोप लगाए गए हैं?
ट्रस्ट की ओर से दर्ज शिकायत में कहा गया कि:
- Jagdishan ने अपने बैंक प्रमुख के पद का दुरुपयोग करते हुए ट्रस्ट के आंतरिक प्रशासन में हस्तक्षेप किया।
- उन्होंने चेतन मेहता के नेतृत्व वाले गुट को फायदा पहुंचाने के लिए ₹2.05 करोड़ की कथित रिश्वत ली।
- ट्रस्ट ने आरोप लगाया कि यह एक साजिश का हिस्सा था ताकि दूसरे ट्रस्टियों को दरकिनार कर ट्रस्ट पर नियंत्रण स्थापित किया जा सके।
ट्रस्ट ने CBI जांच की मांग भी की है, जिससे संकेत मिलता है कि मामला काफी गहरा और राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो चुका है।
जगदीशन की याचिका: “FIR में सबूत नहीं, सिर्फ फोटोस्टेट कॉपियां”
बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में जगदीशन ने कहा कि:
- FIR में लगाए गए सभी आरोप बिना किसी गवाह और पुष्टि किए गए दस्तावेजों पर आधारित हैं।
- केवल Xerox कॉपियों और कथित नकद लेन-देन की डायरी को सबूत के रूप में पेश किया गया है।
- जिस डायरी में रिश्वत की प्रविष्टियां दर्ज हैं, उसकी प्रामाणिकता ही संदिग्ध है।
- FIR दर्ज करने का आदेश देने वाले 29 मई के मजिस्ट्रेट आदेश को भी “स्वविरोधी” और “त्रुटिपूर्ण” बताया गया।
जजों के Recusal और हाईकोर्ट में देरी
अब तक कम से कम पांच हाईकोर्ट जज इस मामले की सुनवाई से अलग हो चुके हैं। इस कारण सुनवाई में बार-बार देरी हुई।
- 30 जून को बॉम्बे हाईकोर्ट ने जल्दी सुनवाई की अर्जी भी खारिज कर दी थी।
- अब मामला 14 जुलाई 2025 को नियमित सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
एक और FIR: चेतन मेहता के खिलाफ भी केस दर्ज
लीलावती ट्रस्ट द्वारा दर्ज की गई एक दूसरी शिकायत में चेतन मेहता और अन्य के खिलाफ ₹2.25 करोड़ की गबन का आरोप लगाया गया है। यह स्पष्ट करता है कि ट्रस्ट के भीतर सत्ता संघर्ष ने अब आपसी मुकदमेबाज़ी का रूप ले लिया है, जिसमें बाहरी लोग, बैंक अधिकारी और पुलिस भी शामिल हो चुके हैं।
विश्लेषण: यह सिर्फ एक वित्तीय विवाद है या बड़ा साजिशनुमा खेल?
इस मामले में कई परतें हैं:
विषय | विश्लेषण |
---|---|
बैंक की भूमिका | क्या HDFC बैंक ने वाकई ट्रस्ट के मामलों में दखल दिया? या यह वसूली प्रक्रिया का प्रतिशोध है? |
न्यायिक देरी | जजों के Recusal ने निष्पक्ष सुनवाई की प्रक्रिया को धीमा कर दिया है |
संस्थागत छवि | इस विवाद ने न केवल HDFC बैंक, बल्कि लीलावती अस्पताल जैसी प्रतिष्ठित संस्था की छवि को भी नुकसान पहुंचाया है |
राजनीतिक असर | अगर CBI जांच होती है, तो यह मामला केंद्र सरकार, कॉर्पोरेट लॉबी और अस्पताल प्रबंधन की त्रिकोणीय टकराहट में बदल सकता है |
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने सभी दलीलों को हाईकोर्ट के समक्ष रखने की सलाह देकर यह स्पष्ट किया है कि संवैधानिक मंच पहले इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
14 जुलाई की सुनवाई अब इस पूरे मामले की दिशा तय कर सकती है – क्या FIR निरस्त होगी? क्या जांच तेज होगी? क्या न्याय प्रक्रिया में नया मोड़ आएगा?
फिलहाल, सशिधर जगदीशन को राहत नहीं मिली है, और बैंकिंग जगत की निगाहें अब बॉम्बे हाईकोर्ट पर टिकी हैं।
Leave a Reply