ऋषिकेश, उत्तराखंड का एक मशहूर और पवित्र शहर है। इसे न सिर्फ भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में योग और ध्यान की राजधानी कहा जाता है। यह शहर हिमालय की गोद में और गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है, जहाँ शांति और आध्यात्मिक माहौल साफ महसूस होता है। आज का ऋषिकेश योग और वेलनेस टूरिज़्म का बड़ा केंद्र बन गया है, लेकिन इसकी पहचान बहुत पुरानी है। ऐसा माना जाता है कि इसी धरती पर भगवान विष्णु ने हृषिकेश रूप में दर्शन दिए थे, जब एक ऋषि तपस्या कर रहे थे। उसी घटना के नाम पर इस जगह को हृषिकेश कहा गया, जो समय के साथ ऋषिकेश बन गया।

पुजारी धर्मानंद शास्त्री बताते हैं कि हृषिकेश शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है हृषिक और ईश। हृषिक का मतलब होता है इंद्रियां, और ईश का मतलब है स्वामी यानी मालिक। इस तरह हृषिकेश का मतलब हुआ इंद्रियों के स्वामी, जो भगवान विष्णु हैं। धार्मिक कहानियों के मुताबिक, बहुत समय पहले रैभ्य ऋषि नाम के एक तपस्वी यहां तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या इतनी सच्ची और कठिन थी कि भगवान विष्णु खुद एक बूढ़े ब्राह्मण के रूप में उनके सामने प्रकट हुए। भगवान ने उनसे वरदान मांगने को कहा। ऋषि ने कोई भौतिक सुख नहीं मांगा, बल्कि बोले प्रभु, मैं चाहता हूं कि यह जगह हमेशा आपके नाम से जानी जाए। भगवान विष्णु ने उन्हें आशीर्वाद दिया और तभी से इस जगह का नाम हृषिकेश पड़ गया।

हृषिकेश शब्द समय के साथ बदलकर ऋषिकेश हो गया, लेकिन इसका आध्यात्मिक महत्व आज भी वैसा ही है। ऋषिकेश से जुड़ी कई धार्मिक कहानियां और मान्यताएं लोगों के बीच प्रचलित हैं। यहां के मशहूर भरत मंदिर की स्थापना त्रेता युग में भगवान राम के छोटे भाई भरत ने की थी। इस मंदिर में भगवान विष्णु की एक शालीग्राम से बनी मूर्ति स्थापित है, जिसे बाद में आदिगुरु शंकराचार्य ने दोबारा प्रतिष्ठित किया था। ऋषिकेश का लक्ष्मण झूला और राम झूला भी बहुत प्रसिद्ध हैं। माना जाता है कि रामायण काल में लक्ष्मण जी ने गंगा नदी को पार करने के लिए जिस जगह पर जूट का पुल बनाया था, वहीं आज लक्ष्मण झूला बना हुआ है।
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