मुंबई की सड़कों पर एक महिला अकेली नहीं थी — उसके साथ था साहस, आत्मविश्वास और न्याय के लिए लड़ने का अडिग संकल्प। जिस घटना ने यह सब उजागर किया, वह केवल एक कार दुर्घटना नहीं थी, बल्कि इसके पीछे की पृष्ठभूमि में राजनीति, भाषा की सियासत और सत्ता के अहंकार की अनसुनी पटकथा छिपी थी। हम बात कर रहे हैं मुंबई की रहने वाली मिस मोरे की, जिनकी कार को जानबूझकर एक SUV से टक्कर मारी गई और उसके बाद उन्हें जान से मारने की धमकियाँ मिलने लगीं। लेकिन इस सबके बावजूद, NDTV से बातचीत में उन्होंने जो बात कही, वह उनके हौसले का प्रमाण बन चुकी है— “मैं डरती नहीं हूं, क्योंकि मेरी लड़ाई गलत नहीं है।”
■ हादसे की शुरुआत: महज़ एक्सिडेंट नहीं, बल्कि सुनियोजित हमला?
यह घटना तब शुरू हुई जब मिस मोरे गोरेगांव से अंधेरी स्थित अपने घर लौट रही थीं। रास्ते में अचानक एक SUV उनकी कार से टकराई। शुरू में उन्होंने इसे सामान्य दुर्घटना माना, लेकिन जब दूसरी और फिर तीसरी बार वही SUV जानबूझकर उनकी कार को रगड़ती रही, तो यह साफ़ हो गया कि ये कोई संयोग नहीं था।
उन्होंने NDTV से बताया —
“पहली बार लगा कि शायद गलती से टक्कर लगी होगी। लेकिन जब बार-बार टक्कर होने लगी, तब लगा कि मुझे निशाना बनाया जा रहा है। मैंने अपने ड्राइवर से पूछा कि कार लॉक है या नहीं, और फिर एक संकरी गली में मुड़ गई, जहां दूसरी गाड़ी को पास आना आसान हो गया। वहीं मुझे दो कांस्टेबल दिखे, मैंने उनसे मदद मांगी। वे मेरी कार में बैठे ही थे कि SUV ने एक बार फिर हमारी कार को रैम किया।”
जांच के अनुसार, SUV चला रहा शख्स था रहिल शेख — महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जावेद शेख का बेटा।
■ पुलिस स्टेशन में भी नहीं थमा अहंकार: ‘मेरे पापा तुम सबको खरीद लेंगे’
घटना के बाद रहिल शेख को पुलिस स्टेशन ले जाया गया, लेकिन वहां का दृश्य भी चौंकाने वाला था। मिस मोरे ने बताया —
“रहिल पुलिस स्टेशन में बैठकर अधिकारियों को गालियाँ दे रहा था, मेज़ पर अपने पैर रखे हुए था। उसने यहां तक कह डाला कि ‘मेरे पापा तुम सबको खरीद लेंगे।’ क्या ये कानून का मखौल नहीं है?”
यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि कुछ राजनीतिक परिवारों में सत्ता का नशा और कानून को लेकर लापरवाही किस हद तक बढ़ चुकी है।
■ भाषा की राजनीति और मोरे का साहसी जवाब
पिछले कुछ हफ्तों में महाराष्ट्र में “मराठी बनाम गैर-मराठी” भाषा विवाद फिर उभर आया है। लेकिन मिस मोरे ने NDTV से बातचीत में साफ किया कि इस बहस को बढ़ाने की बजाय खत्म करने की ज़रूरत है।
“मैं खुद मराठी हूं। लेकिन यह मराठी बनाम गैर-मराठी की लड़ाई नहीं होनी चाहिए। हम यहां एक परिवार की तरह रहते हैं। मेरे संघर्ष को किसी भाषा से जोड़ना गलत है।”
उन्होंने यह भी कहा कि उनकी प्रेरणा खुद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मिली।
“आपके स्टैंड से मुझे हिम्मत मिली बाहर निकलकर बोलने की। आप आगे आइए और अदालत से अपील कीजिए कि ये भाषा विवाद यहीं खत्म किया जाए।”
■ राज ठाकरे से भी की अपील
एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे के समर्थकों द्वारा सोशल मीडिया पर भाषा को लेकर आग उगली जा रही है। इसी संदर्भ में मिस मोरे ने राज ठाकरे से भी सीधी अपील की:
“आप अपने कार्यकर्ताओं से कहें कि इस विवाद को खत्म करें। आप लोगों से निवेदन कर सकते हैं कि मराठी सीखें, लेकिन आप किसी पर इसे थोप नहीं सकते।”
यह बयान महाराष्ट्र की राजनीति में एक अहम संदेश बनकर उभरा है — कि सांस्कृतिक पहचान की रक्षा का मतलब यह नहीं कि दूसरों की पहचान का अपमान किया जाए।
■ धमकियाँ और डर का माहौल
इस घटना के बाद से मिस मोरे को लगातार धमकी भरे कॉल आ रहे हैं। उन्होंने NDTV को बताया:
“शुरुआत में मैंने कॉल उठाया नहीं, लेकिन रात 11 बजे जब उठाया, तो सामने से धमकी दी गई — ‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते।’“
यह कहना अपने आप में यह दर्शाता है कि मामला अब एक साधारण एक्सिडेंट या बहस से कहीं आगे बढ़ चुका है — यह अब एक महिला के साहस के खिलाफ सुनियोजित डर फैलाने की कोशिश है।
■ राजनीति से दूरी, लेकिन लड़ाई अकेले की
कुछ लोगों ने उन पर पब्लिसिटी स्टंट करने का आरोप लगाया, लेकिन NDTV पर उन्होंने इन आरोपों का भी करारा जवाब दिया:
“मैं किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ी नहीं हूं। मैं अकेले लड़ रही हूं। कृपया इसे मराठी बनाम गैर-मराठी का मुद्दा मत बनाइए। यह मेरी व्यक्तिगत सुरक्षा, सम्मान और इंसाफ की लड़ाई है।”
■ सोशल मीडिया पर समर्थन और विरोध की लहर
मिस मोरे की हिम्मत को जहां कई सामाजिक संगठनों, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और आम लोगों का समर्थन मिल रहा है, वहीं सोशल मीडिया पर कुछ कट्टरपंथी समूह इसे ‘महाराष्ट्र की अस्मिता’ से जोड़कर उनके खिलाफ माहौल बना रहे हैं।
लेकिन अधिकांश लोग मानते हैं कि मोरे का साहस इस समय पूरे महाराष्ट्र में एक प्रतीक बन चुका है — यह बताने का कि डर के आगे भी हिम्मत से खड़ा हुआ जा सकता है।
■ क्या कहती है पुलिस?
मुंबई पुलिस ने रहिल शेख के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत उसे हिरासत में लिया गया है, और घटना की जांच जारी है। पुलिस ने पुष्टि की है कि सीसीटीवी फुटेज और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान काफी मजबूत हैं। हालांकि सवाल यह भी है कि क्या राजनीतिक दबाव के कारण मामले को कमजोर किया जा सकता है?
■ महाराष्ट्र की सत्ता पर सवाल
यह घटना महाराष्ट्र सरकार के लिए भी एक चुनौती बन गई है। MNS नेताओं से जुड़े मामलों को लेकर पहले भी आरोप लगते रहे हैं कि उनके कार्यकर्ता कानून अपने हाथ में लेते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि फडणवीस और एकनाथ शिंदे इस मामले में सख्त संदेश नहीं देते, तो यह घटना आगे चलकर राज्य में असहमति की आवाज़ों को कुचलने की मिसाल बन सकती है।
■ निष्कर्ष: अकेली महिला, बड़ा संदेश
मिस मोरे की कहानी केवल एक महिला की कहानी नहीं है। यह उस पूरे समाज की कहानी है जहां अब भी आम नागरिकों को सत्ता, जाति, भाषा या राजनीतिक संबद्धता के नाम पर डराया जाता है। लेकिन जब एक महिला अपने डर को ताक पर रखकर, अकेले खड़ी होकर, खुलेआम NDTV जैसे राष्ट्रीय चैनल पर कहती है:
“मैं डरती नहीं हूं, क्योंकि मेरी लड़ाई गलत नहीं है।”
तो यह आवाज़ सिर्फ उसका नहीं, बल्कि हर उस इंसान की बन जाती है जो सिस्टम से, पॉलिटिक्स से, गुंडागर्दी से थक चुका है और बदलाव चाहता है।
यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती। यह एक शुरुआत है — उस संवाद की, जिसमें हम भाषा, क्षेत्र, जाति और धर्म के भेद से ऊपर उठकर इंसानियत और नागरिक अधिकारों की बात करें।
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