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CJI भूषण गवैया की भावुक कहानी: पिता का सपना, बेटा बना भारत का मुख्य न्यायाधीश

Emotional story of CJI Bhushan Gawaiya: Father's dream, son became the Chief Justice of India

आत्मपर्व: पिता के सपने और बेटे का न्यायपालिका तक का सफर

भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवैया ने हाल ही में अपनी निजी एवं भावनात्मक यात्रा साझा की, जिसने न्यायपालिका को भी मानव स्पर्श के साथ जोड़ा। दो गिने-चुने समारोहों—एक मुंबई में AAWI के सम्मान समारोह और दूसरा नागपुर में जिला कोर्ट बार एसोसिएशन की मेजबानी—में उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी पिता की आकांक्षाओं और निजी संघर्षों की कहानी कही, जो दिल को छू जाने वाला अनुभव बन गई।


पिता का सपना: खुद बनना वकील, फिर बेटे को न्यायिक मार्ग

गवैया ने भावुक स्वर में बताया कि:

“मेरे पिता एक वकील बनना चाहते थे, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में उनकी गिरफ्तारी के कारण उनका सपना अधूरा रह गया।

दिल को छू लेने वाली बात यह है कि उन्होंने खुद की इच्छित पहचान— आर्किटेक्ट बनने का सपना— त्यागकर अपने पिता के अधूरे सपने को पूरा करने का निर्णय लिया।


परिवार की भूमिका: संयुक्त परिवार की चुनौतियाँ

गवैया ने अपने जीवन में परिवार की भूमिका का वर्णन करते हुए कहा:

“हम एक संयुक्त परिवार थे, जिसमें कई बच्चे थे; सारी जिम्मेदारी मेरी माँ और चाची पर थी।”

उन्होंने यह भी बताया कि पिता ने ‘उच्च पद’ की सलाह दी:

“अगर तुम वकील रहोगे, तो पैसों के पीछे भागोगे; अगर न्यायाधीश बनोगे, तो आंबेडकर के मार्ग पर चलकर समाज के लिए कुछ कर सकोगे।”


व्यक्तिगत क्षण: जब आँखें भर आईं

नागपुर में आयोजित समारोह में गवैया का भाषण इस कदर शेयरी और भावुक था कि उनकी आँखों में आंसू झलक आए। उन्होंने कहा:

“मैं आर्किटेक्ट बनना चाहता था, पर पिता के सपने ने मुझे वकील-न्यायाधीश बनने की राह दी।”

यह उनके पिता के प्रति स्नेह, आदर और समर्पण की जीवंत कहानी रही।


स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक आदर्श: पिता की धर्मपरायणता

गवैया ने पिता की सामाजिक प्रतिबद्धता का प्रभाव साझा करते हुए कहा:

“पिता ने खुद को आंबेडकर की सेवा में समर्पित कर दिया, लेकिन जेल जाने की वजह से वकालत न कर सके।”

अपने पिता के आदर्शों ने गवैया को न्यायपालिका में एक ऐसा व्यक्तित्व तैयार किया जो समाज-हित, संवेदनशीलता और न्याय के लिए दृढ़ है।


AAWI सम्मान समारोह: लॉ रूम की यादें

मुंबई में AAWI द्वारा आयोजित समारोह में CJI गवैया ने मज़े-मज़ाक के साथ कहा:

“रूम नंबर 18 और 36 में हमने लॉ स्टूडेंट्स की तरह बैच में लंच किया करता था; नागपुर चले गए लेकिन मुंबई आते तो वही पुराना एहसास होता।”

यह हिस्सा उनके व्यक्तित्व के आत्मीय पहलू को उजागर करता है, जो नियमों से कहीं अधिक, साझा अनुभव और साथियों की महत्ता को दर्शाता है।


न्यायपालिका पर विचार: संविधान और सामाजिक न्याय

मुख्य न्यायाधीश के रूप में गवैया ने पूर्व न्यायाधीशों के योगदान को भी सम्मानित किया:

“आज सामाजिक-आर्थिक न्याय पर निर्णय बनाते हुए हम PB Sawant, PN Bhagwati, YD Chandrachud जैसे न्यायाधीशों को याद करते हैं। ये न्यायाधीश संविधान की व्यावहारिक व्याख्या के ध्वजवाहक थे।”

उन्होंने खासकर Indra Sawhney मामले में J. Sawant के योगदान की भी सराहना की।


पिता के सपने की पूर्णता, लेकिन उनके दर्शन की कमी

गवैया ने कहा कि:

“पिता ने स्वप्न देखा था कि बेटा एक दिन CJI बनेगा—पर वे उस दिन को देखने के लिए 2015 में नहीं रहे।”

यह उनके लिए व्यक्तिगत विजय तो थी, लेकिन एक संतप्त अंत भी दर्शाती थी—आत्मिक विरासत का संचार बिना देखे…


पारिवारिक स्नेह: माँ की मौजूदगी में संतोष

उन्होंने यह भी कहा कि पिता की मृत्यु के बावजूद:

“मैं आभारी हूँ कि मेरी माँ आज मेरे साथ हैं।”

यह परिवार के स्नेह और जीवन-यात्रा में स्त्री-शक्ति की भूमिका को दर्शाता है।


हास्य और मानवता: हेमा मालिनी केस की कहानी

अंत में उन्होंने एक हल्का फुल्का प्रसंग सुनाया:

“हेमा मालिनी के चेक-बाउंस मामले में इतनी भीड़ कि कोर्ट में हंगामा मच गया—हम भी उस पल की इंज्वॉयमेंट नहीं भूल सकते।”

यह क्षण उनके व्यक्तित्व की गर्मजोशी और आम इंसानियत को दर्शाता है।


आगामी गैवावी संस्मरण?

उन्होंने संकेत दिया कि सेवानिवृत्ति (नवंबर 2025) के बाद:

“मेमॉयर लिखने का विचार है—क्योंकि ये यात्रा व्यक्तिगत और पेशेवर कहानियों से भरपूर रही है।”

यह ऐतिहासिक दृष्टि उन्हें न्यायिक परंपरा और मानव अनुभवों को भविष्य के लिए संजोने का अवसर देगा।


निष्कर्ष

CJI बी.आर. गवैया की यह यात्रा—आर्किटेक्ट की इच्छा से चीफ जस्टिस का पद संभालना—देश के न्यायिक मानवीय पहलुओं को उजागर करती है:

  • पिता की विरासत, स्वतंत्रता संघर्ष में बाधित जीवन लेकिन आदर्श से प्रेरित
  • संवेदनशील निर्णय, मानवता और संवेदनाशीलता को न्याय के केंद्र में रखना
  • न्यायपालिका का मानवीय पहलू, जुनून, संघर्ष, प्रतिष्ठा, स्नेह और न्याय—इन सबका मिश्रित बोध

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