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मंडी में आपदा और कंगना विवाद: हिमाचल की राजनीति में राहत, रोष और रणनीति का नया अध्याय

Disaster in Mandi and Kangana controversy: A new chapter of relief, anger and strategy in Himachal politics

हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट इन दिनों दोहरी मार झेल रही है—एक ओर कुदरत का कहर और दूसरी ओर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप। भारी बारिश, बादल फटने, भूस्खलन और बाढ़ ने राज्य को हिला कर रख दिया है। अकेले मंडी ज़िले में 17 लोगों की मौत हो चुकी है, और हजारों लोग प्रभावित हैं।

लेकिन इस मानवीय संकट के बीच एक और विवाद ने तूल पकड़ लिया—मंडी से बीजेपी सांसद और बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत की कथित गैरहाजिरी और उनके ‘नो कैबिनेट, नो फंड्स’ बयान ने राजनीतिक बवंडर खड़ा कर दिया।

अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को खुद मोर्चा संभालना पड़ा है। उन्होंने बुधवार को मंडी पहुंचकर पीड़ितों से मुलाकात की, राहत कार्यों का जायज़ा लिया और जनता के ज़ख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश की। दिलचस्प बात यह रही कि कंगना नड्डा के साथ नहीं थीं, जिससे सवाल और गहरे हो गए हैं।


आपदा की तस्वीर: हिमाचल बेहाल

हिमाचल प्रदेश इस बार मानसून में भयंकर आपदा की चपेट में है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) के अनुसार:

  • अब तक 85 लोगों की मौत हो चुकी है।
  • इनमें 54 मौतें सीधे बारिश से जुड़ी घटनाओं (भूस्खलन, बादल फटना, बाढ़) से हुई हैं।
  • शेष 31 मौतें सड़क दुर्घटनाओं में हुईं।
  • अकेले मंडी ज़िले में 17 मौतें, सैकड़ों मकान ढह गए, पुल बह गए, मवेशी मरे और फसलें नष्ट हो गईं।

प्रदेश की जनता राहत कार्यों और सरकार की सक्रियता की उम्मीद कर रही थी, लेकिन इस संकट के बीच एक ऐसा बयान आया जिसने हालात को और उलझा दिया।


‘नो कैबिनेट, नो फंड्स’: कंगना के बयान से मचा बवाल

6 जुलाई को कंगना रनौत जब आपदा प्रभावित मंडी पहुंचीं, तो जनता की नाराज़गी का सामना करना पड़ा। लोगों ने पूछा कि वह पहले कहां थीं? इस पर उन्होंने जवाब दिया:

“जब केंद्र में हमारी सरकार बनी, तो मैंने समझा कि मुझे कैबिनेट में जगह मिलेगी। लेकिन मुझे तो फंड्स भी नहीं दिए गए हैं। मेरे पास कोई अधिकार नहीं है।”

कंगना के इस ‘नो कैबिनेट, नो फंड्स’ वाले बयान ने सियासत में आग लगा दी। कांग्रेस ने इसे “जनता के दर्द के प्रति असंवेदनशीलता” बताया, जबकि बीजेपी के भीतर भी असहजता दिखी।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने कहा:

“यह बयान हिमाचल की जनता का अपमान है। जब लोग बर्बादी झेल रहे हैं, तो एक सांसद सत्ता की शिकायत कर रही हैं!”

विपक्षी नेताओं का आरोप है कि कंगना ने आपदा के समय जनता का साथ छोड़ दिया और खुद को केंद्र में मंत्री न बनाए जाने का गुस्सा ज़ाहिर किया।


जेपी नड्डा का डैमेज कंट्रोल: पार्टी खुद मैदान में

कंगना के बयान और उनकी अनुपस्थिति को देखते हुए बीजेपी ने त्वरित राजनीतिक रणनीति अपनाई। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने खुद मंडी पहुंचकर राहत और पुनर्वास कार्यों की समीक्षा की। उनके साथ थे:

  • पूर्व मुख्यमंत्री और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर
  • हिमाचल प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल

तीनों नेताओं ने ज़मीनी स्तर पर लोगों से बातचीत की, नुकसान का जायज़ा लिया और भरोसा दिलाया कि बीजेपी हर प्रभावित नागरिक के साथ है।

नड्डा पहले भी एक सप्ताह पहले हिमाचल आए थे, अपने पिता के 100वें जन्मदिवस पर, लेकिन मंडी की स्थिति को देखते हुए उन्होंने एक हफ्ते के भीतर ही दोबारा दौरा किया।


बीजेपी की ज़मीन पर सक्रियता: कंगना की अनुपस्थिति में भरोसा दिलाने की कवायद

कंगना रनौत की अनुपस्थिति से उपजे असंतोष को देखते हुए पार्टी ने राज्य इकाई को सक्रिय किया है:

  • नाचन विधायक विनोद कुमार और
  • करसोग विधायक दीप राज को मंडी राहत कार्यों की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
  • राजीव बिंदल खुद कई प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं।
  • जयराम ठाकुर लगातार स्थानीय प्रशासन से तालमेल बनाकर राहत सामग्री और पुनर्वास पर नज़र बनाए हुए हैं।

बीजेपी जानती है कि कंगना का लोकसभा टिकट 2024 में उन्हें स्टार पावर के बल पर मिला था, लेकिन अब संकट की घड़ी में उनकी निष्क्रियता पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा सकती है।


कंगना का संकट: लोकप्रियता बनाम ज़िम्मेदारी

कंगना रनौत ने लोकसभा चुनावों में मंडी से कांग्रेस प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह को हराकर इतिहास रचा था। लेकिन एक सांसद के रूप में उनकी भूमिका पर शुरू से सवाल उठते रहे हैं:

  • वे अधिकतर समय मुंबई या दिल्ली में रहती हैं।
  • संसद में उपस्थिति और प्रश्न पूछने के मामले में औसत प्रदर्शन रहा है।
  • अब आपदा के समय देर से आना और बयानबाज़ी ने आलोचना और बढ़ा दी है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि:

“कंगना लोकप्रिय जरूर हैं, लेकिन राजनीति में केवल लोकप्रियता काफी नहीं होती। जनता संकट में नेतृत्व और ज़िम्मेदारी देखती है।”


कांग्रेस का पलटवार: ‘गुजरात मॉडल’ से ‘हिमाचल मॉडल’ तक

कांग्रेस ने इस मौके को भुनाते हुए बीजेपी और केंद्र सरकार पर सवाल उठाए हैं:

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपदा पर बयान तो दिया, लेकिन कोई विशेष राहत पैकेज नहीं आया।
  • कंगना जैसे सांसदों की भूमिका पर चुप्पी।
  • जयराम सरकार के कार्यकाल में आपदा प्रबंधन ढांचे की अनदेखी।

प्रदेश सरकार (कांग्रेस शासित) ने केंद्र से 1000 करोड़ रुपये की राहत राशि की मांग की है, लेकिन अभी तक जवाब नहीं मिला है।


आपदा राजनीति में बदल रही है?

मंडी की यह त्रासदी अब केवल मानवीय संकट नहीं, बल्कि सियासी रणनीति का केंद्र बन चुकी है। बीजेपी जहां कंगना के प्रभाव को बनाए रखने की कोशिश कर रही है, वहीं कांग्रेस उनके बयानों को मुद्दा बनाकर हमलावर है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर बीजेपी अगले विधानसभा चुनाव में हिमाचल जीतना चाहती है, तो उसे लोकल स्तर पर ज्यादा सक्रिय और ज़िम्मेदार चेहरे सामने लाने होंगे। वरना स्टार पावर के सहारे चुनाव जीतना, और फिर जन अपेक्षाओं पर खरा न उतरना, भारी पड़ सकता है।


निष्कर्ष: मंडी को राहत चाहिए, राजनीति नहीं

हिमाचल प्रदेश की जनता इस समय राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण की मांग कर रही है—not rhetoric.
जेपी नड्डा की सक्रियता और पार्टी की संगठनात्मक मुस्तैदी यह दिखाती है कि बीजेपी ने संकट को समझा है। लेकिन कंगना रनौत जैसी प्रमुख चेहरों की जनता से दूरी और सत्ता की शिकायतें इस मुहिम को कमजोर करती हैं।

समय की मांग है कि:

  • राहत कार्यों में सभी दल मिलकर सहयोग करें,
  • आपदा प्रबंधन के ढांचे को सुदृढ़ किया जाए,
  • और जनप्रतिनिधि ज़मीनी हकीकत से जुड़कर जनता का विश्वास अर्जित करें।

क्योंकि जनता याद रखती है—कौन उसके साथ खड़ा था जब उसके घर बह गए, खेत उजड़ गए और प्रियजन बिछुड़ गए।

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