हाईकोर्ट ने आदेश में बदलाव से किया इनकार
दिल्ली हाईकोर्ट ने शाही ईदगाह पार्क में महारानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने के मामले में अपने आदेश में बदलाव करने से इंकार कर दिया। साथ ही, ईदगाह प्रबंध समिति की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि 7 अक्टूबर 2024 के आदेश में किसी भी स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं है।
कोर्ट ने दी कानूनी उपाय अपनाने की सलाह
मुख्य न्यायाधीश डी. के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के नोटिस को चुनौती देने के लिए उचित कानूनी उपाय अपनाएं। इससे पहले भी हाईकोर्ट ने प्रतिमा स्थापना के खिलाफ शाही ईदगाह कमेटी की याचिका खारिज कर दी थी।
शाही ईदगाह समिति ने मांगा था आदेश पर स्पष्टीकरण
कोर्ट ने कहा- आदेश को सही संदर्भ में समझें
शाही ईदगाह प्रबंध समिति ने हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के आदेश पर स्पष्टीकरण मांगा था, जिसमें समिति ने दावा किया था कि ये टिप्पणियां अस्थायी हैं और वक्फ अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करती हैं। हालांकि, हाईकोर्ट की पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि आदेश को उसी संदर्भ में समझा जाना चाहिए जिसमें वह पारित किया गया था और इसमें किसी भी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है।
प्रतिमा से नमाज अदा करने के अधिकारों का उल्लंघन नहीं

समिति की आपत्ति पर कोर्ट ने कहा कि महारानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा पहले ही एमसीडी द्वारा स्थापित की जा चुकी है और इससे नमाज अदा करने वालों के अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।
मूर्ति लगाने का विरोध करने का अधिकार नहीं
डीडीए के नोटिस को चुनौती देने के विकल्प खुले
पीठ ने कहा कि यदि आवेदक डीडीए के नोटिस को चुनौती देना चाहता है, तो उसके पास कानून के तहत सभी उपलब्ध विकल्प खुले हैं।
वक्फ संपत्ति होने का दावा खारिज
पहले एकल न्यायाधीश ने भी समिति की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें नगर निगम अधिकारियों को शाही ईदगाह पर अतिक्रमण न करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। समिति ने दावा किया था कि यह वक्फ की संपत्ति है और 1970 में प्रकाशित एक गजट अधिसूचना के अनुसार यह प्राचीन संपत्ति है, जिसका उपयोग नमाज अदा करने के लिए किया जाता है।
एमसीडी द्वारा प्रतिमा स्थापना का विरोध गैरकानूनी
एकल न्यायाधीश ने कहा कि समिति को डीडीए द्वारा शाही ईदगाह के आसपास के पार्कों या खुले मैदानों के रखरखाव और एमसीडी द्वारा प्रतिमा की स्थापना का विरोध करने का कोई कानूनी या मौलिक अधिकार नहीं है।
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