कोविड-19 वैक्सीन को लेकर एक बार फिर देश में बहस छिड़ गई है। इस बार इसकी शुरुआत कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के एक बयान से हुई, जिसमें उन्होंने हासन ज़िले में हाल ही में दर्ज हुई अचानक हुई हृदयगति रुकने (सडन कार्डिएक अरेस्ट) से मौतों के पीछे कोविड वैक्सीन को संभावित कारण बताया। इस दावे पर बायोकॉन की प्रमुख और उद्योग जगत की जानी-मानी हस्ती किरण मजूमदार-शॉ ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे “तथ्यों से परे” और “ग़लत सूचना फैलाने वाला” करार दिया है।
साथ ही इस मुद्दे पर भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय और शीर्ष अनुसंधान संस्थानों जैसे भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR), एम्स (AIIMS), और राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) ने संयुक्त बयान जारी करते हुए यह स्पष्ट किया है कि कोविड वैक्सीन और हृदय से जुड़ी अचानक मौतों के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं पाया गया है।
क्या बोले मुख्यमंत्री सिद्धारमैया?
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि हासन ज़िले में पिछले एक महीने में 20 से अधिक लोगों की मौतें हृदयगति रुकने की वजह से हुई हैं। उन्होंने आशंका जताई कि इनमें से कुछ मामलों का संबंध कोविड वैक्सीनेशन से हो सकता है।
“हम भी युवाओं, बच्चों और आम नागरिकों की जिंदगी की कद्र करते हैं, जिनका पूरा भविष्य सामने होता है। उनके परिवारों की चिंता हमारी भी है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोविड वैक्सीन के त्वरित अनुमोदन और वितरण का भी इन मौतों से कोई संबंध हो सकता है। कई अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों में ऐसा संकेत मिला है,” – सिद्धारमैया
मुख्यमंत्री ने इस संबंध में राज्य स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने की घोषणा की, जो इन मौतों के कारणों की जांच करेगी और 10 दिन में रिपोर्ट सौंपेगी। उन्होंने यह भी बताया कि इससे पहले फरवरी 2025 में भी एक समिति गठित की गई थी, जो पूरे कर्नाटक में युवाओं में अचानक हुई मौतों का विश्लेषण कर रही थी।
बायोकॉन प्रमुख किरण मजूमदार-शॉ की आपत्ति
सीएम सिद्धारमैया के बयान पर बायोटेक उद्योग की दिग्गज और बायोकॉन की चेयरपर्सन किरण मजूमदार-शॉ ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि इस तरह के बयान “विज्ञान पर आधारित नहीं” हैं और यह लोगों में वैक्सीन को लेकर डर और भ्रम पैदा कर सकते हैं।
“भारत में कोविड-19 के टीकों को आपातकालीन उपयोग की स्वीकृति वैश्विक मानकों के अनुरूप सुरक्षा और प्रभावकारिता के कठोर प्रोटोकॉल के आधार पर दी गई थी। यह कहना कि इन्हें ‘जल्दबाजी में’ मंजूरी दी गई, तथ्यात्मक रूप से गलत है और यह ग़लत सूचना फैलाने का कारण बन सकता है। इन वैक्सीनों ने लाखों जानें बचाईं हैं।” – किरण मजूमदार-शॉ
उन्होंने यह भी जोड़ा कि हर वैक्सीन की तरह कोविड टीकों से भी कुछ दुर्लभ साइड इफेक्ट हो सकते हैं, लेकिन उनका अनुमोदन वैज्ञानिक डेटा और सार्वजनिक हित को ध्यान में रखते हुए किया गया था।
ICMR, AIIMS और NCDC का संयुक्त बयान
इस विवाद पर केंद्र सरकार ने भी चुप्पी नहीं साधी। ICMR, AIIMS और NCDC ने एक संयुक्त वक्तव्य में कहा कि देश भर में वैक्सीन के बाद होने वाले प्रतिकूल प्रभावों पर लगातार निगरानी रखी जा रही है। अब तक के डेटा में हृदय संबंधी मौतों में कोई असामान्य वृद्धि नहीं देखी गई है।
“हमारे पास उपलब्ध डेटा और निगरानी रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि कोविड-19 वैक्सीन और हृदय गति रुकने से होने वाली अचानक मौतों के बीच कोई प्रत्यक्ष या वैज्ञानिक रूप से सिद्ध संबंध नहीं है।”
संस्थाओं ने यह भी स्पष्ट किया कि कोविड महामारी से पहले और बाद के वर्षों में कार्डिएक अरेस्ट के मामलों के आँकड़े तुलनात्मक रूप से एक जैसे हैं।
राजनीतिक तकरार भी शुरू
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस मसले पर भाजपा पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि भाजपा इस विषय पर “राजनीतिक अवसरवाद” दिखा रही है। उन्होंने चुनौती देते हुए कहा:
“बीजेपी इससे पहले कि हमें इस मुद्दे पर दोष दे, उन्हें अपने अंतर्मन से पूछना चाहिए कि उन्होंने वैक्सीन नीति के समय किन कंपनियों को प्राथमिकता दी, और कैसे जल्दीबाज़ी में निर्णय लिए।”
गौरतलब है कि कोविड वैक्सीनेशन के दौर में भारत में कोविशील्ड और कोवैक्सिन को आपातकालीन स्वीकृति दी गई थी, जिनके निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक थे। दोनों को सरकार द्वारा व्यापक स्तर पर लोगों को दिया गया और भारत ने पूरी दुनिया में वैक्सीन मैत्री (Vaccine Maitri) के तहत करोड़ों डोज़ भेजे भी थे।
वैश्विक संदर्भ में क्या कहती हैं स्टडीज़?
कुछ अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों में यह देखा गया है कि mRNA आधारित वैक्सीन जैसे कि Pfizer और Moderna के टीकों के बाद कुछ युवाओं, विशेष रूप से पुरुषों में मायोकार्डिटिस (हृदय की सूजन) के दुर्लभ मामले सामने आए। लेकिन इन मामलों की संख्या बहुत कम है और उनमें भी अधिकांश में हल्के लक्षण थे और पूरा इलाज संभव रहा।
भारत में उपयोग की गई वैक्सीन mRNA नहीं बल्कि इनएक्टिवेटेड वायरस और वेक्टर-बेस्ड थीं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय निष्कर्षों को भारतीय संदर्भ में सीधे लागू करना वैज्ञानिक रूप से उचित नहीं है।
वैक्सीन के फायदे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता
भारत ने कोविड की दूसरी लहर के दौरान दर्जनों लाखों लोगों की जानें गवांईं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर वैक्सीन समय पर उपलब्ध नहीं होती, तो यह आंकड़ा कई गुना अधिक हो सकता था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, कोविड टीकों ने 2021 और 2022 के बीच दुनियाभर में लगभग 20 लाख लोगों की जान बचाई। भारत सरकार के मुताबिक, देश में लगभग 220 करोड़ डोज़ लगाए गए।
निष्कर्ष: विज्ञान बनाम राजनीति?
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का बयान भले ही चिंताओं पर आधारित हो, लेकिन उनके शब्दों की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हो पाई है। वहीं, किरण मजूमदार-शॉ और केंद्रीय संस्थानों ने वैक्सीन के सुरक्षित और वैज्ञानिक आधार पर अनुमोदन की पुष्टि की है।
स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के संवेदनशील मुद्दों पर बोलने से पहले जिम्मेदारी से सोच-विचार जरूरी है। किसी भी जांच समिति की रिपोर्ट आने से पहले टीकों को दोष देना सार्वजनिक विश्वास और टीकाकरण अभियान को नुकसान पहुंचा सकता है।
भारत को अभी भी अपनी टीकाकरण नीति, सार्वजनिक स्वास्थ्य संचार और वैज्ञानिक शोध को मज़बूत करते हुए गलत सूचनाओं से लड़ने की जरूरत है — ताकि भविष्य में किसी भी स्वास्थ्य संकट का सामना सुगमता से किया जा सके।
मुख्य बिंदु (सारांश):
- सिद्धारमैया ने कोविड वैक्सीन को हृदय मृत्यु से जोड़ा, विशेषज्ञ समिति गठित
- किरण मजूमदार-शॉ ने इसे तथ्यहीन और डर फैलाने वाला बताया
- ICMR-AIIMS-NCDC ने भी कोई संबंध नहीं पाए जाने की पुष्टि की
- भाजपा पर भी सिद्धारमैया का निशाना, आरोप-प्रत्यारोप शुरू
- वैश्विक स्तर पर mRNA टीकों से जुड़े दुर्लभ प्रभाव दिखे, भारत में ऐसा नहीं
- विशेषज्ञों की राय: टीकों से जानें बचीं, भ्रामक बयान न दें नेता
यह मामला यह दिखाता है कि जन स्वास्थ्य और राजनीति के बीच एक नाज़ुक संतुलन है, जिसे विज्ञान आधारित संवाद से ही बनाए रखा जा सकता है।
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