बिहार विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे INDIA गठबंधन में सीटों को लेकर मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं। इस बार विवाद की चिंगारी झारखंड से उठी है, जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने स्पष्ट कर दिया है कि वह बिहार में केवल ‘मेहमान’ नहीं, बल्कि ‘भागीदार’ बनकर चुनाव मैदान में उतरना चाहता है। JMM की मांग है कि उसे बिहार में कम से कम 12-13 सीटें दी जाएं। लेकिन अब तक गठबंधन की तरफ से न तो कोई औपचारिक बातचीत हुई है, और न ही कोई सकारात्मक संकेत मिले हैं।
JMM की बढ़ती नाराज़गी: सम्मान या उपेक्षा?
JMM के नेता हेमंत सोरेन गठबंधन के संचालन से खासे नाराज़ हैं। पार्टी प्रवक्ता मनोज पांडे ने खुलकर कहा कि अगर INDIA गठबंधन ने उनकी राजनीतिक हैसियत को नज़रअंदाज़ किया, तो वे अकेले चुनाव लड़ेंगे। उनका कहना है कि JMM के पास संगठन, जनाधार और लोकप्रिय नेतृत्व है, और वह किसी के मोहताज नहीं हैं।
हेमंत सोरेन की यह नाराज़गी सिर्फ सीटों की नहीं है, बल्कि यह महागठबंधन के अंदर RJD और कांग्रेस की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े करती है। खासतौर पर बिहार में RJD की अगुवाई और ‘एकतरफा’ निर्णय प्रणाली को लेकर JMM खुद को अलग-थलग महसूस कर रहा है।
झारखंड में सहयोगी, बिहार में उपेक्षित?
JMM को यह बात चुभ रही है कि जब झारखंड में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब RJD और कांग्रेस ने सीटें मांगी थीं और उन्हें सम्मानजनक हिस्सेदारी दी गई थी। लेकिन अब बिहार में JMM के साथ कोई बातचीत तक नहीं हो रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में JMM ने बिहार में एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा, और पूरी तरह से INDIA गठबंधन का समर्थन किया। इसके बावजूद, न तो उन्हें गठबंधन की बैठकों में बुलाया गया और न ही किसी सम्मानजनक भूमिका का आश्वासन मिला।
JMM का जनाधार और बिहार में रणनीति
JMM का मानना है कि बिहार के सीमावर्ती जिलों में, विशेष रूप से संजय, कटिहार, पूर्णिया, जमुई और गया में उनका जनाधार है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने 12 सीटों पर बूथ लेवल तैयारी और उम्मीदवारों की छानबीन शुरू कर दी है। 2024 के आम चुनाव में भले ही JMM ने बिहार में प्रत्याशी नहीं उतारे, लेकिन 2004, 2014 और 2019 में वह कई सीटों पर चुनाव लड़ चुका है और लाखों वोट हासिल कर चुका है।
RJD का रुख: नेतृत्व की चुनौती या अहंकार?
RJD के नेता इस विवाद पर प्रतिक्रिया देने से बचते नजर आ रहे हैं, लेकिन झारखंड में पार्टी के महासचिव कैलाश यादव ने JMM की नाराज़गी पर तंज कसते हुए कहा, “अगर पेट में दर्द है तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए। मीडिया में बयानबाज़ी करना ठीक नहीं है।” उन्होंने दावा किया कि तेजस्वी यादव की लोकप्रियता किसी से कम नहीं है और गठबंधन में नेतृत्व RJD के पास ही रहेगा।
इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि RJD, JMM को ज़्यादा तवज्जो देने के मूड में नहीं है और उसे ‘सही मंच’ पर अपनी बात रखने की सलाह दे रही है।
कांग्रेस की रणनीति: मध्यस्थता की कोशिश
कांग्रेस इस पूरे विवाद में एक संतुलित और संयमी भूमिका निभा रही है। झारखंड कांग्रेस के नेता केशव महतो कमलेश ने कहा, “झारखंड में भी हमने बैठकर सहमति बनाई थी, बिहार में भी सहयोगी दल ऐसा ही करेंगे।” हालांकि, कांग्रेस भी झारखंड में JMM की गतिविधियों को लेकर असहज है। संथाल परगना और कोल्हान जैसे JMM के गढ़ में कांग्रेस की पदयात्राएं और पंचायत सम्मेलन JMM को राजनीतिक चुनौती की तरह महसूस हो रहे हैं।
सीट बंटवारे का प्रस्तावित फॉर्मूला
सूत्रों के मुताबिक, RJD लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को आधार बनाकर सीट बंटवारे की रणनीति बना रही है। संभावित फॉर्मूला कुछ इस प्रकार है:
- RJD – 138 सीटें
- कांग्रेस – 54 सीटें
- वाम दल – 30 सीटें
- VIP पार्टी – 18 सीटें
- RLJP (पशुपति पारस) – 3 सीटें (यदि गठबंधन में शामिल होती है)
इस फॉर्मूले में JMM के लिए कोई स्थान नहीं बचता, जिससे उनकी नाराज़गी और बढ़ गई है।
JMM की नाराज़गी का असर झारखंड की सरकार पर?
यह विवाद सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं है। झारखंड में JMM के नेतृत्व वाली सरकार में कांग्रेस और RJD दोनों साझेदार हैं। विधानसभा में बहुमत के लिए 41 विधायकों की जरूरत होती है:
- JMM – 34 विधायक
- कांग्रेस – 16 विधायक
- RJD – 4 विधायक
अगर JMM की नाराज़गी राजनीतिक टकराव में बदलती है तो झारखंड सरकार का सत्ता संतुलन भी डगमगा सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर यह दरार गहराई, तो झारखंड की सरकार पर भी संकट के बादल मंडरा सकते हैं।
बीजेपी का रुख: सियासी मौका
बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद आदित्य साहू ने इस मौके पर कटाक्ष करते हुए कहा, “RJD और कांग्रेस JMM को कभी सम्मान नहीं देंगे। ये लोग झारखंड की कमाई लूटकर सत्ता चाहते हैं। JMM सीट मांगकर सिर्फ दिखावा कर रहा है।”
बीजेपी इस विवाद को INDIA गठबंधन की कमजोरी के तौर पर पेश कर रही है और इसे आगामी चुनाव में राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की रणनीति बना रही है।
2020 के विधानसभा चुनाव के आंकड़े
2020 के चुनाव में महागठबंधन और NDA के बीच टक्कर कुछ इस प्रकार थी:
- महागठबंधन
- RJD: 144 सीटों पर लड़ी, 75 जीती
- कांग्रेस: 70 सीटें, 19 जीती
- वामपंथी दल: 29 सीटें, 16 जीतीं
- NDA
- बीजेपी: 110 सीटें, 74 जीतीं
- जेडीयू: 115 सीटें, 43 जीतीं
- HAM और VIP: 20 सीटें, 8 जीत
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सीट बंटवारे में संतुलन और आपसी सहयोग ही महागठबंधन की जीत की कुंजी है।
आगे क्या?
JMM अगर अलग होकर चुनाव लड़ता है, तो कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बनेगी। इससे RJD और कांग्रेस का वोट बैंक कट सकता है, जिससे NDA को लाभ हो सकता है। RJD का 5 जुलाई का राष्ट्रीय अधिवेशन इस पूरे मामले में निर्णायक साबित हो सकता है। यदि वहां JMM को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं बनती, तो गठबंधन में दरार और गहराएगी।
निष्कर्ष
JMM की नाराज़गी केवल सीटों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह INDIA गठबंधन के संचालन की पारदर्शिता, आपसी सम्मान और राजनीतिक संतुलन पर भी सवाल खड़े करती है। यदि यह मुद्दा जल्द नहीं सुलझा, तो इसका असर केवल बिहार विधानसभा चुनाव पर नहीं, बल्कि झारखंड की सत्ता स्थिरता पर भी पड़ सकता है।
INDIA गठबंधन को चाहिए कि वह मंच, संगठन और सम्मान तीनों स्तरों पर JMM जैसी क्षेत्रीय ताकतों के साथ संवाद स्थापित करे, ताकि एकजुटता बनाए रखी जा सके और NDA को सशक्त चुनौती दी जा सके।
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