केरल नए पुलिस प्रमुख के चयन पर CPI(M) का रुख: राजनीति नहीं, स्पष्टता चाहिए
केरल सरकार द्वारा आर. ए. चंद्रशेखर को राज्य का नया पुलिस प्रमुख (DGP) नियुक्त करने के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है। इस नियुक्ति पर सत्तारूढ़ वामपंथी पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [CPI(M)]—के वरिष्ठ नेता पी. जयराजन ने सोमवार, 30 जून 2025 को स्पष्ट कहा कि यह कोई राजनीतिक फैसला नहीं है लेकिन सरकार को अपनी नियुक्ति का तर्क देना चाहिए।
📌 CPI(M) का औपचारिक रुख
- नियुक्ति पर टिप्पणी: जयराजन ने कहा, “इस नियुक्ति को राजनीतिक दृष्टिकोण से देखना उचित नहीं है; यह सरकार का प्रिवेशन (अधिकार) है।” उन्होंने माना कि यह फैसला नियुक्ति टीम के मूल्यांकन के आधार पर लिया गया।
- राजनीतिक टिप्पणी?: उन्होंने स्पष्ट किया कि यह निर्णय राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते नहीं बल्कि पत्र वेटिंग प्रक्रियाओं पालन करके लिया गया है।
⏳ 1994 का कोथुपरम्बा फायरिंग मामला
- अभियुक्त से आजाद: वर्तमान DGP बने चंद्रशेखर एक विवादित मामले—1994 में कोथुपरम्बा में हुई पुलिस फायरिंग—के प्रमुख आरोपितों में शामिल थे। उस समय उन्होंने डीएसपी की भूमिका निभाई थी, मगर 2012 में न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया।
- शरीक, किन्तु एकल नहीं: जयराजन ने स्थापित किया कि चंद्रशेखर घटना के दिन मौके पर थे, लेकिन एकल नहीं थे—यह समूह आधारित कार्रवाई थी।
⚖️ राजनीतिक संदर्भ और आपत्ति नहीं
- नागरिक अधिकारों की राजनीति: जयराजन ने कहा कि CPI(M) को कभी पुलिस कार्यवाही से शिकायत नहीं रही, चाहे वह राजनीतिक रूप से CPI(M) के खिलाफ हों। उन्होंने स्वीकार किया कि कई पुलिसकर्मी ऐसे कदम उठाते हैं जो पार्टी या वाम आंदोलनों के प्रतिकूल होते हैं।
- गवाह यूं ही नहीं: उन्होंने याद दिलाया कि उस दिन एम.वी. राघवन नामक मंत्री की सुरक्षा के लिए पुलिस वहां तैनात थी, जिसमें चंद्रशेखर भी शामिल था—और स्थिति तनावपूर्ण बनी।
🔥 न्यायिक प्रक्रिया का आधार
- साफ़ सज़ा नहीं, आरोप मात्र: CPI(M) राज्य सचिव एम.वी. गोविंदन ने चंद्रशेखर की नियुक्ति की वैधता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि केवल नाम जुड़ने पर किसी व्यक्ति को सज़ा नहीं दी जा सकती। आरोप सिद्ध होना आवश्यक है।
- अदालत ने किया बरी: उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत ने इनक्वायरी रिपोर्ट के आधार पर चंद्रशेखर को बरी किया था और वह आईपीएस प्रशिक्षण के तुरंत बाद ही तैनाती पर थे।
🚨 CPI(M) का असली उद्देश्य: स्पष्टता और पारदर्शिता
- “राजनीतिक टिप्पणी नहीं, संयमित सवाल” गोविंदन ने कहा कि जयराजन का वक्तव्य कोई नकारात्मक आलोचना नहीं, बल्कि कार्यालय चयन प्रक्रिया को लेकर जवाबदेही और जवाब गुरेज की माँग थी।
- राइट-विंग मीडिया पर हमला: उन्होंने बताया, “कुछ मीडिया चैनल इस नियुक्ति को राजनीतिक तरह से पेश कर रहे हैं, लेकिन हम इस तरह की राजनीति को समर्थन नहीं देते।”
👥 तीन नामों की शॉर्टलिस्ट, अंततः क्यों चंद्रशेखर?
सरकार ने इस पद के लिए तीन वरिष्ठ IPS अधिकारियों को चुना, जिनका मूल्यांकन किया गया। चुने गए अधिकारी में चंद्रशेखर की योग्यता, अनुभव और चरित्र को सर्वोपरि माना गया। CPI(M) के अनुसार, यही चयन प्रक्रिया निष्पक्ष और सुनियोजित थी।
🗣️ विपक्ष का रुख और उसमें CPI(M) की प्रतिक्रिया
- विपक्ष विशेषकर BJP ने इस नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं, उसे राजनीतिक प्रभाव-खरीद या राजनीतिक सहानुभूति से जोड़ा जा रहा है।
- CPI(M) का कहना है:
- कोई राजनीतिक स्वागत या विरोध नहीं – बल्कि शिकायत थी सुशासन और प्रक्रिया की स्पष्टता की।
- नियुक्ति फ्रेमवर्क कायम रहना चाहिए, ताकि भविष्य में भी प्रक्रिया का पारदर्शी पालन हो।
🔚 निष्कर्ष: राजनीति नहीं, व्यवस्था का सम्मान
केरल में चंद्रशेखर की नियुक्ति सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं है; यह कर्नाटक मॉडल से अलग सोच दिखाता है—जहाँ चुनावी राजनीति से ऊपर न्यायिक निष्पक्षता, प्रक्रिया की स्वच्छता और जवाबदेही मानकों को रखा गया है।
CPI(M) का रुख राजनीति विरोधी नहीं, बल्कि लोकतंत्र-संविधान-प्रक्रिया समर्थक है। जयराजन और गोविंदन का एक ही संदेश है—“हमें नियुक्तियों में निर्णायकता और साफ़ नीति देखनी है; राजनीतिक मजबूरियाँ खत्म हों।”
विभाजक राजनीति खत्म हो या भूमंडलीय विभाजन—केरल में यह नियुक्ति व्यवस्था की मजबूती, लोकतांत्रिक विश्वास और नैतिक जिम्मेदारी भरने की राह देखती नजर आ रही है।
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