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बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर घमासान: बिना दस्तावेज़ सत्यापन की अनुमति, चुनाव आयोग की नई पहल या विवाद?

Controversy over voter list revision in Bihar: Permission without document verification, new initiative of Election Commission or controversy?

बिहार में मतदाता सूची के विशेष तीव्र पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर लगातार उठ रहे सवालों और विपक्ष के विरोध के बीच राज्य निर्वाचन कार्यालय ने एक अहम घोषणा की है। रविवार को प्रदेश के सभी प्रमुख अखबारों में छपे एक सरकारी विज्ञापन के ज़रिए यह स्पष्ट किया गया कि अब बिना अनिवार्य दस्तावेज़ों के भी मतदाता सूची में सत्यापन संभव होगा।

यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब विपक्षी दलों, विशेषकर INDIA गठबंधन, ने SIR प्रक्रिया को “अव्यवहारिक और अलोकतांत्रिक” करार दिया है। इसके साथ ही चुनाव आयोग द्वारा दस्तावेज़ों की चयन प्रक्रिया पर भी गंभीर सवाल उठाए गए हैं।


क्या है SIR (Special Intensive Revision) प्रक्रिया?

SIR यानी विशेष तीव्र पुनरीक्षण एक व्यापक अभियान है जिसमें मतदाता सूची को अद्यतन करने, नए पात्र मतदाताओं को जोड़ने और मृत, स्थानांतरित अथवा अपात्र नामों को हटाने का कार्य किया जाता है। यह कार्य BLO (Booth Level Officer) के ज़रिए किया जाता है और इसमें प्रत्येक घर में जाकर गणना फॉर्म (Enumeration Form) भरवाया जाता है।

बिहार में यह प्रक्रिया जून के अंतिम सप्ताह से चल रही है और इसमें लाखों परिवारों तक BLO पहुंच चुके हैं।


बिना दस्तावेज़ के भी सत्यापन की इजाज़त

रविवार को जारी विज्ञापन में बिहार राज्य निर्वाचन कार्यालय ने कहा:

“यदि आप (मतदाता) आवश्यक दस्तावेज़ देते हैं, तो चुनाव पंजीकरण अधिकारी (ERO) के लिए आपका आवेदन प्रक्रिया करना आसान होगा। लेकिन यदि दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं, तो ERO स्थानीय जांच या अन्य दस्तावेज़ी साक्ष्यों के आधार पर निर्णय ले सकता है।”

इसका सीधा अर्थ है कि अब दस्तावेज़ों की अनुपस्थिति में भी मतदाता सूची में नाम शामिल करने या सत्यापित करने की गुंजाइश है। यह घोषणा निश्चित रूप से उन लाखों नागरिकों के लिए राहत लेकर आई है जिनके पास चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित 11 दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं।


किन दस्तावेज़ों को मान्यता दी गई है?

विशेष बात यह है कि आधार कार्ड, राशन कार्ड, पैन कार्ड, MGNREGA जॉब कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस जैसी आम पहचान पत्र SIR प्रक्रिया के लिए मान्य नहीं हैं।

इसके स्थान पर जो 11 दस्तावेज़ मान्य हैं, वे इस प्रकार हैं:

  1. जन्म प्रमाण पत्र
  2. पासपोर्ट
  3. शैक्षणिक प्रमाण पत्र
  4. स्थायी निवास प्रमाण पत्र
  5. वनाधिकार पत्र
  6. जाति प्रमाण पत्र
  7. राज्य अथवा स्थानीय प्राधिकरण द्वारा जारी परिवार रजिस्टर
  8. सरकार द्वारा जारी भूमि या मकान आवंटन प्रमाण पत्र
  9. सरकारी कर्मचारी या पेंशनभोगी को जारी पहचान पत्र
  10. 1967 से पहले जारी किसी सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा जारी कोई दस्तावेज़
  11. अन्य साक्ष्य जो निर्धारित अधिकारी स्वीकार्य माने

विपक्ष की आपत्तियाँ और मांगें

4 जुलाई 2025 को विपक्षी INDIA गठबंधन के एक प्रतिनिधिमंडल ने पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नेतृत्व में बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल से भेंट की और SIR प्रक्रिया पर गंभीर आपत्तियाँ दर्ज कराईं।

तेजस्वी यादव का कहना था:

“यह प्रक्रिया आम जनता को मतदाता सूची से बाहर करने का एक षड्यंत्र है। यह तकनीकी जाल है, जो ग़रीबों, मज़दूरों और ग्रामीण मतदाताओं के लिए असहज और अपारदर्शी है। आधार, राशन कार्ड जैसे पहचान पत्रों को अमान्य ठहराना सीधे-सीधे लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है।”

विपक्ष की प्रमुख मांग थी कि आधार कार्ड, MGNREGA कार्ड, और राशन कार्ड को दस्तावेज़ के रूप में मान्यता दी जाए, जिससे आम जनता को आसानी हो।


अब तक का आंकड़ा

बिहार निर्वाचन कार्यालय के अनुसार, 5 जुलाई 2025 शाम 7 बजे तक, राज्य में कुल:

  • 1,12,01,674 गणना फॉर्म एकत्र किए गए,
    जो कि संभावित कुल मतदाताओं का 14.18% है।
  • इनमें से 23,90,329 फॉर्म अपलोड किए गए,
    जिनमें:
    • 23,14,602 BLO के माध्यम से
    • और 75,789 सामान्य नागरिकों द्वारा ऑनलाइन अपलोड किए गए।

इससे स्पष्ट होता है कि अब तक मतदाताओं की सक्रिय भागीदारी सीमित रही है, और शायद यही कारण है कि आयोग को दस्तावेज़ों की अनिवार्यता में ढील देनी पड़ी।


आयोग की अपील: “हर मतदाता भाग ले”

मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने सभी नागरिकों से अपील की:

“बिहार के सभी मतदाता SIR में सक्रिय रूप से भाग लें, चाहे वह BLO के माध्यम से हो या ऑनलाइन। यह सुनिश्चित करें कि कोई भी पात्र मतदाता मतदाता सूची से वंचित न रहे।”

उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं, वे केवल गणना फॉर्म भरकर BLO को सौंप दें। ERO द्वारा आगे की प्रक्रिया स्थानीय जांच के आधार पर की जाएगी।


फॉर्म भरने में क्या करें?

यदि दस्तावेज़ और फ़ोटो उपलब्ध हैं:

  • गणना फॉर्म में जानकारी भरें
  • फ़ोटो और दस्तावेज़ संलग्न करें
  • BLO को सौंप दें

यदि दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं:

  • केवल फॉर्म भरें
  • BLO को दें
  • BLO और ERO स्थानीय जांच करेंगे

चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल

हालांकि आयोग ने यह कदम सुलभता के दृष्टिकोण से उठाया है, लेकिन विशेषज्ञों और नागरिक संगठनों का कहना है कि:

  • जिन दस्तावेज़ों को मान्यता दी गई है, वे आम नागरिकों के पास नहीं होते, जैसे पासपोर्ट, सरकारी पहचान पत्र, 1967 से पहले के प्रमाण पत्र इत्यादि।
  • दूसरी ओर, आधार, राशन कार्ड जैसी पहचान जिनसे आजकल अधिकांश सरकारी योजनाएं संचालित होती हैं, उन्हें अस्वीकार करना तर्कसंगत नहीं है।

यह नीति परिवर्तन कहीं न कहीं चुनावी निष्पक्षता और नागरिक अधिकारों की रक्षा के बीच संतुलन के अभाव को दर्शाता है।


निष्कर्ष: राहत या भ्रम?

चुनाव आयोग द्वारा बिना दस्तावेज़ के सत्यापन की अनुमति देना एक सकारात्मक और लचीला कदम प्रतीत होता है, लेकिन इससे जुड़े प्रशासनिक जोखिम और दस्तावेज़ी भ्रम अब भी बरकरार हैं।

इस स्थिति में मतदाताओं को चाहिए कि वे:

  • BLO से संपर्क कर अपडेट लें
  • गणना फॉर्म भरें, भले ही दस्तावेज़ न हों
  • अपने मतदाता अधिकार की रक्षा स्वयं करें

निष्कर्ष बिंदु:

✔ बिना दस्तावेज़ के सत्यापन संभव
✔ आधार, पैन, राशन कार्ड अमान्य
✔ विपक्ष ने की आलोचना
✔ 1.12 करोड़ फॉर्म अब तक जमा
✔ BLO के ज़रिए और ऑनलाइन प्रक्रिया
✔ दस्तावेज़ भ्रम बना हुआ है
✔ आयोग की अपील – सभी भाग लें


यदि यह प्रक्रिया सभी वर्गों के लिए समान रूप से सुलभ हो सके, तभी यह लोकतंत्र को सशक्त करेगी। अन्यथा यह संशोधन नहीं बल्कि संशय का दस्तावेज़ बनकर रह जाएगी।

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