भारतीय राजनीति में “आपातकाल” एक ऐसा अध्याय है, जिसे लेकर आज भी विचारधारात्मक संघर्ष जारी है। लेकिन जब कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सांसद डॉ. शशि थरूर अपने ही दल की ऐतिहासिक नीतियों पर सवाल उठाएं, तो यह न सिर्फ पार्टी के भीतर वैचारिक असहजता को उजागर करता है, बल्कि आगामी चुनावों से पहले संगठनात्मक एकता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
10 जुलाई, 2025 को केरल की राजनीति में तब उबाल आ गया जब एक सीरियन-कैथोलिक समुदाय के मुखपत्र दीपिका ने थरूर के एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया पोर्टल में छपे लेख का मलयालम अनुवाद प्रकाशित किया। लेख में थरूर ने आपातकाल के दौर की “अवर्णनीय क्रूरताओं” — जबरन नसबंदी, झुग्गी-झोपड़ियों का ध्वस्तीकरण, हिरासत में यातना और मानवाधिकार उल्लंघनों — के लिए दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी को ज़िम्मेदार ठहराया।
थरूर का लेख: ‘अंधकार का कालखंड’ और सीधी आलोचना
अपने लेख में शशि थरूर ने न केवल आपातकाल के दौरान के दमनात्मक कार्यों की चर्चा की, बल्कि उस “राजकीय तानाशाही” के पीछे कांग्रेस नेतृत्व की भूमिका को भी रेखांकित किया। उन्होंने लिखा:
“भारत में लोकतंत्र के नाम पर जो कुछ किया गया, वह किसी भी आधुनिक सभ्यता के मूल्यों के खिलाफ था। संजय गांधी की नीतियां, जिनमें जबरन नसबंदी और दिल्ली में झुग्गियों का बलपूर्वक उच्छेदन शामिल था, लोकतांत्रिक व्यवस्था के चेहरे पर एक काला धब्बा थीं।”
इस लेख ने कांग्रेस के लिए दोहरी चुनौती खड़ी कर दी है — एक ओर विचारधारा की विश्वसनीयता, दूसरी ओर संगठनात्मक अनुशासन।
वी.डी. सतीशन की प्रतिक्रिया: मौन समर्थन या कूटनीतिक बचाव?
केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन से जब पत्रकारों ने थरूर के लेख पर प्रतिक्रिया मांगी, तो उन्होंने किसी भी प्रकार की सीधी आलोचना से परहेज किया। उन्होंने कहा:
“मैंने थरूर का लेख पढ़ा है, और मेरी एक निजी राय है, जिसे मैं फिलहाल सार्वजनिक नहीं करना चाहता। थरूर कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य हैं। केरल कांग्रेस का कोई भी नेता उनके विरुद्ध सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करेगा। अगर किसी कार्यकर्ता को आपत्ति है, तो वह AICC से संपर्क कर सकता है।”
यह प्रतिक्रिया स्पष्ट रूप से एक संतुलन साधने की कोशिश है — पार्टी अनुशासन बनाए रखना, लेकिन थरूर जैसे लोकप्रिय नेता को खुलकर चुनौती न देना।
सियासी पृष्ठभूमि: केरल कांग्रेस में पहले से असहजता
शशि थरूर का यह लेख ऐसे समय आया है जब केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी (KPCC) पहले ही आंतरिक विवादों में उलझी हुई है। ‘कप्तान विवाद’ (Captain Controversy) अभी शांत भी नहीं हुआ था कि थरूर का एक और राजनीतिक ‘बोल्ड स्टेप’ सामने आ गया।
“कप्तान विवाद” क्या था?
नीलाम्बूर उपचुनाव में UDF की शानदार जीत के बाद मीडिया ने वी.डी. सतीशन को कांग्रेस की जीत का ‘कप्तान’ बताया। इससे पार्टी के वरिष्ठ नेता और सतीशन के पूर्ववर्ती रमेश चेन्निथला नाराज़ हो गए। उन्होंने कहा:
“जब मैं विपक्ष का नेता था और UDF ने कई उपचुनाव जीते, तब मुझे किसी ने ‘कप्तान’ नहीं कहा।”
ऐसे माहौल में थरूर का लेख और एक हालिया मुख्यमंत्री सर्वेक्षण पोस्ट पार्टी नेतृत्व के लिए असहजता का कारण बन गया है।
थरूर की सीएम पोस्ट: असहज समय पर साहसिक दांव
कुछ ही दिन पहले थरूर ने एक स्वतंत्र सर्वेक्षण साझा किया था, जिसमें उन्हें केरल का सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री उम्मीदवार बताया गया था — न केवल कांग्रेस के अन्य चेहरों से आगे, बल्कि वर्तमान मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और CPI(M) की लोकप्रिय विधायक के.के. शैलजा से भी।
हालांकि वी.डी. सतीशन ने इस सर्वे को ‘तवज्जो न देने लायक’ करार दिया और कहा:
“ऐसे सर्वे हर दिन होते हैं। पार्टी नेतृत्व इन पर प्रतिक्रिया नहीं देता।”
फिर भी, यह सर्वे ऐसे समय आया जब कांग्रेस का ध्यान संगठनात्मक एकता और चुनावी रणनीति पर केंद्रित था। थरूर की यह पोस्ट स्पष्ट रूप से उन्हें वैकल्पिक नेतृत्व के रूप में प्रस्तुत करती है।
थरूर बनाम कांग्रेस हाईकमान: वैचारिक अंतर या सत्ता संघर्ष?
यह पहली बार नहीं है जब शशि थरूर पार्टी लाइन से अलग जाकर बयान दे रहे हैं। पूर्व में भी:
- उन्होंने बीजेपी सरकार की विदेश नीति की कुछ पहलियों की सराहना की थी।
- केंद्र और राज्य की CPI(M) सरकारों की आलोचना के दौरान पार्टी के रुख से अलग स्वर अपनाया था।
ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि थरूर और कांग्रेस हाईकमान के बीच संबंध ‘सौहार्दपूर्ण लेकिन तनावपूर्ण’ रहे हैं।
कुछ हलकों में यह भी चर्चा है कि:
“थरूर पार्टी नेतृत्व से विमुख हो सकते हैं, विशेषकर अगर आगामी विधानसभा चुनावों में उन्हें नेतृत्व का मौका नहीं दिया गया।”
हालांकि थरूर ने सार्वजनिक रूप से कभी विद्रोह की भाषा नहीं अपनाई, लेकिन उनके लेख, सर्वेक्षण साझा करना और विचारधारात्मक मतभेद — इन सबको मिलाकर देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि वह कांग्रेस में “फ्री थिंकर” की भूमिका निभा रहे हैं।
दीपिका का प्रकाशन: थरूर का संदेश किसे?
थरूर का मूल लेख एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया पोर्टल पर प्रकाशित हुआ था। लेकिन जब सीरियन कैथोलिक समुदाय से जुड़ी पत्रिका दीपिका ने इसका अनुवाद कर मलयालम में प्रमुखता से छापा, तब यह सिर्फ एक विचार लेख नहीं रहा — यह एक राजनीतिक संदेश बन गया।
सीरियन ईसाई समुदाय केरल की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता है, और थरूर इस समुदाय के लोकप्रिय प्रतिनिधि माने जाते हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि:
- थरूर अपनी वैचारिक स्थिति स्पष्ट कर रहे हैं।
- साथ ही यह संदेश दे रहे हैं कि उन्हें सिर्फ पार्टी के अलंकरण में नहीं, बल्कि नेतृत्व में स्थान चाहिए।
भविष्य की दिशा: कांग्रेस के लिए चुनौती या अवसर?
थरूर का लेख एक वैचारिक मंथन का अवसर भी हो सकता है, बशर्ते कांग्रेस इसके प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाए। इंदिरा गांधी और संजय गांधी की आपातकालीन नीतियों पर खुले विचार-विमर्श से पार्टी अपनी विचारधारा को नए युग के अनुरूप ढाल सकती है।
लेकिन अगर पार्टी इसे “अनुशासनहीनता” मानती है, तो यह संभावित नेतृत्व संघर्ष का बीज बन सकता है — विशेषकर तब जब केरल विधानसभा चुनाव 2026 नजदीक हैं और कांग्रेस को एक प्रभावशाली चेहरा चाहिए।
निष्कर्ष: क्या थरूर कांग्रेस के ‘मोदी’ बन सकते हैं — अंदर से उदय?
डॉ. शशि थरूर एक अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त बुद्धिजीवी, चार बार के सांसद और युवा वर्ग में लोकप्रिय चेहरा हैं। कांग्रेस के लिए वह अवसर भी हो सकते हैं और संकट भी — यह इस बात पर निर्भर करता है कि पार्टी उन्हें कैसे देखती है: एक विद्रोही के रूप में या एक दूरदर्शी नेता के रूप में।
यदि कांग्रेस अपनी आंतरिक असहमतियों को लोकतांत्रिक बहस का मंच बना सके, तो थरूर जैसे नेता पार्टी को वैचारिक पुनर्जागरण की दिशा में ले जा सकते हैं। लेकिन अगर उन्हें दबाने की कोशिश की गई, तो संभव है कि कांग्रेस एक और प्रतिभाशाली चेहरा खो दे — जैसा कि पार्टी के इतिहास में कई बार हो चुका है।
अब देखना यह है कि AICC इस लेख को एक “अनुशासनहीनता” मानता है या “साहसिक आत्मालोचना”।
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