आज की सबसे संवेदनशील और भावनात्मक खबर उन छात्रों से जुड़ी है, जो संघर्षग्रस्त ईरान से सफलतापूर्वक तो भारत लौट आए, लेकिन उन्हें अपने ही घर लौटने में जिस उपेक्षा और लापरवाही का सामना करना पड़ा, उसने केंद्र और राज्य सरकारों की संवेदनशीलता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
हम बात कर रहे हैं ईरान से निकाले गए भारतीय छात्रों की, जिनमें से ज़्यादातर – करीब 90 छात्र – जम्मू-कश्मीर से ताल्लुक रखते हैं। भारत सरकार की त्वरित कार्रवाई की वजह से ये छात्र चार दिनों के लंबे, थकाऊ और तनावपूर्ण सफर के बाद आखिरकार दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे। लेकिन यहां पहुंचने के बाद इन छात्रों के साथ जो व्यवहार हुआ, उसने उनकी भावनाओं को झकझोर कर रख दिया।
दिल्ली से जम्मू की यात्रा बनी दूसरी अग्निपरीक्षा
विदेश से निकलकर सुरक्षित मातृभूमि पर पहुंचना जितना सुकून देने वाला था, उतनी ही थकावट और निराशा से भरी रही दिल्ली से जम्मू-कश्मीर की यात्रा। क्योंकि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने इन छात्रों के लिए जो बसें भेजीं, उनकी हालत बेहद खराब थी। न तो बसें वातानुकूलित थीं, न उनमें बेसिक सुविधा थी। SRCTC (स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन) की ये पुरानी और जर्जर बसें थक चुके छात्रों की उम्मीदों पर पानी फेरती नज़र आईं।
वीडियो वायरल—X (ट्विटर) पर फूटा छात्रों का गुस्सा
जम्मू-कश्मीर स्टूडेंट यूनियन ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक वीडियो साझा किया, जिसमें इन बसों की दुर्दशा साफ देखी जा सकती है। कैप्शन में तीखा तंज कसते हुए लिखा गया:
“चार दिन की कष्टदायक यात्रा के बाद छात्र दिल्ली पहुँचे, लेकिन उन्हें घर भेजने के लिए मिलती हैं जर्जर बसें। बाकी राज्यों के छात्रों को एयरपोर्ट से स्वागत-सहित फ्लाइट्स मिलती हैं, जबकि कश्मीरी छात्र उपेक्षित रह जाते हैं।”
उन्होंने यह भी कहा—
“क्या ये हमारी दृढ़ता का पुरस्कार है? अगर सरकार के पास फंड नहीं है, तो बताइए, हम खुद क्राउडफंडिंग कर लेंगे।”
छात्रों की भावनात्मक प्रतिक्रिया
निकाले गए छात्रों में से एक अमान अज़हर ने ANI से बातचीत में कहा:
“मैं बहुत खुश हूं कि अपने परिवार से मिलूंगा, लेकिन यह भी कहूंगा कि युद्ध किसी का भला नहीं करता। वहाँ भी लोग हमारे जैसे हैं, मासूम बच्चे हैं जो मर रहे हैं। और अब जब हम घर लौटे हैं, तो हमें कम से कम इंसान की तरह ट्रीट किया जाए।”
जम्मू-कश्मीर प्रशासन की प्रतिक्रिया
छात्रों के इस आक्रोश के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के कार्यालय ने इस मामले पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने आश्वासन दिया कि उनकी चिंताओं को “ध्यान में लिया गया है” और अब छात्रों को डीलक्स बसों के माध्यम से यात्रा करवाने की व्यवस्था की जा रही है।
लेकिन सवाल ये उठता है कि पहले से इस तरह की व्यवस्था क्यों नहीं की गई?
क्या सरकार को नहीं पता था कि इतनी लंबी विदेश यात्रा से लौटे छात्र मानसिक और शारीरिक रूप से थके होंगे?
सस्ती शिक्षा और ईरान की अहमियत
गौरतलब है कि ईरान, खास तौर पर उर्मिया मेडिकल यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान, कश्मीरी छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का पसंदीदा केंद्र बन चुके हैं। वहां करीब 4,000 से अधिक भारतीय छात्र पढ़ते हैं, जिनमें से लगभग 50% जम्मू-कश्मीर से हैं। कम खर्च, सांस्कृतिक समानता और उच्च गुणवत्ता वाले मेडिकल कोर्सेज इस रुचि के पीछे की वजहें हैं।
सरकार की कार्रवाई: विदेश में सराहनीय, देश में शर्मनाक
भारत सरकार ने तेजी से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। तेहरान स्थित भारतीय दूतावास ने 15 जून को ही एक एडवाइजरी जारी कर दी थी, जिसमें भारतीय नागरिकों से गैर-ज़रूरी यात्रा से बचने और दूतावास के संपर्क में रहने की अपील की गई थी। छात्रों को तेहरान से आर्मेनिया, फिर दोहा, और अंततः दिल्ली एयरपोर्ट लाया गया।
लेकिन इसी गंभीरता की ज़रूरत थी दिल्ली से जम्मू तक की यात्रा में भी—जहाँ सरकार और प्रशासन पूरी तरह फेल साबित हुए।
राजनीतिक और प्रशासनिक असंवेदनशीलता का चेहरा
छात्रों के साथ जो व्यवहार हुआ, वो सिर्फ एक ट्रांसपोर्टेशन की नाकामी नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र के युवा नागरिकों के प्रति कितनी कम संवेदनशीलता बरती जाती है।
जब देश के अन्य राज्यों के छात्रों को एयरलाइंस और स्वागत-सुविधाएं मिल रही हैं, तो जम्मू-कश्मीर के छात्रों को पुरानी बसों में बिठाना आखिर क्या संदेश देता है?
अब सवाल जनता का है—क्या बदलेगा रवैया?
यह घटना सिर्फ एक खबर नहीं है, यह प्रशासनिक संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का आईना है।
केंद्र सरकार के राहत प्रयासों की जितनी सराहना की जाए कम है, लेकिन राज्य प्रशासन का गैर-जिम्मेदाराना रवैया छात्रों की भावनाओं को आहत करता है।
हमारी अपील है कि इस तरह की घटनाओं से सबक लिया जाए और जिन्होंने अपनी पढ़ाई और भविष्य के लिए संघर्ष किया है, उन्हें कम से कम इज्ज़त और सम्मान तो दिया जाए।
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