6 जुलाई 2025 को पूरा देश डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 124वीं जयंती मना रहा है। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें “राष्ट्र की एकता के निर्भीक प्रहरी”, “आदर्श राष्ट्रवादी विचारक” और “औद्योगिक स्वावलंबन के मार्गदर्शक” के रूप में भावभीनी श्रद्धांजलि दी। लखनऊ स्थित सिविल अस्पताल परिसर में स्थित डॉ. मुखर्जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए मुख्यमंत्री ने उनके संपूर्ण जीवन और योगदान को याद किया।
डॉ. मुखर्जी: असाधारण प्रतिभा के धनी, अल्पायु में कुलपति बनने वाले पहले भारतीय
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को कोलकाता में हुआ था। वे भारतीय राजनीति के उन गिने-चुने नेताओं में से एक हैं जिन्होंने बहुत कम उम्र में ही शिक्षा, प्रशासन और सार्वजनिक जीवन में असाधारण उपलब्धियाँ हासिल कीं।
योगी आदित्यनाथ ने इस अवसर पर कहा:
“महज़ 33 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बनकर उन्होंने भारतीय शिक्षा जगत को गौरवांवित किया।”
उन्होंने ब्रिटिश शासनकाल में भी भारतीयता और सांस्कृतिक चेतना को शिक्षा व्यवस्था में बनाए रखने के लिए संघर्ष किया। उनका दृष्टिकोण केवल एक शिक्षक या प्रशासक का नहीं, बल्कि एक राष्ट्रनिर्माता का था।
बंगाल अकाल के दौरान मानवीय नेतृत्व का उदाहरण
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने डॉ. मुखर्जी के बंगाल अकाल (1943) के समय किए गए कार्यों को याद करते हुए कहा:
“उनका मानवीय नेतृत्व उस संकट के समय व्यापक रूप से सम्मानित हुआ। उन्होंने लाखों लोगों की जान बचाने और राहत व्यवस्था में प्रभावशाली भूमिका निभाई।”
उस समय डॉ. मुखर्जी न केवल प्रशासनिक सहयोग कर रहे थे बल्कि राशन, शरण और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सार्वजनिक अभियान चला रहे थे। उन्होंने ब्रिटिश प्रशासन की विफलताओं को आड़े हाथों लिया और बंगाल में राहत की गति को तेज करने में मदद की।
स्वतंत्र भारत के पहले उद्योग एवं खाद्य मंत्री: आत्मनिर्भरता की नींव रखने वाले विचारक
स्वतंत्र भारत में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में डॉ. मुखर्जी को उद्योग एवं खाद्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया। इस पर योगी आदित्यनाथ ने कहा:
“डॉ. मुखर्जी ने उस समय देश के औद्योगिक और खाद्य सुरक्षा की नींव रखी, जब भारत विभाजन की त्रासदी से उबरने की कोशिश कर रहा था।”
उनकी नीतियों ने आत्मनिर्भर भारत की दिशा में प्रारंभिक रूप से आधारशिला रखी — विशेषकर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों, खाद्य वितरण प्रणाली और स्थानीय उत्पादकता के संदर्भ में।
नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा: सिद्धांतों के लिए सत्ता का त्याग
हालांकि, राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रति अपनी निष्ठा के चलते डॉ. मुखर्जी ने नेहरू सरकार से इस्तीफा दे दिया। योगी आदित्यनाथ ने इस निर्णय को “राजनीतिक साहस और सिद्धांतवादी सोच का उदाहरण” बताया।
“उन्होंने धारा 370 और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने का कड़ा विरोध किया। वे मानते थे कि देश में एक ही संविधान, एक ही प्रधानमंत्री और एक ही झंडा होना चाहिए।”
उनकी यह भावना “एक देश, एक विधान, एक प्रधान, एक निशान” के नारे के रूप में उभरी, जो आगे चलकर भारतीय जनसंघ और भाजपा की वैचारिक धुरी बन गई।
जम्मू-कश्मीर में बलिदान: देश की एकता के लिए प्राणों का अर्पण
डॉ. मुखर्जी का विरोध केवल राजनीतिक नहीं था, वह सशरीर जम्मू-कश्मीर जाने और सत्याग्रह करने तक पहुंचा।
11 मई 1953 को जब वे बिना परमिट जम्मू पहुंचे, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में श्रीनगर जेल में उनका निधन हो गया।
मुख्यमंत्री योगी ने इस पर कहा:
“श्यामा प्रसाद मुखर्जी देश के पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने धारा 370 को चुनौती दी। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसी आदर्श को साकार करते हुए 2019 में अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया।”
मोदी सरकार द्वारा डॉ. मुखर्जी के सपनों को साकार करना
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ. मुखर्जी की “एक भारत, अखंड भारत” की परिकल्पना को वास्तविकता में बदला।
- 2019 में अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह भारत के संविधान के अधीन लाया गया।
- आज जम्मू-कश्मीर में तेज़ी से विकास, निवेश और सामाजिक समावेशन हो रहा है।
- “एक राष्ट्र – एक संविधान” की भावना अब केवल नारा नहीं, सरकारी नीति की आधारशिला बन चुकी है।
डॉ. मुखर्जी के औद्योगिक स्वप्न और ‘मेक इन इंडिया’ की परिणति
योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आज के ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्टअप इंडिया’ और वैश्विक निवेश केंद्र के रूप में भारत की पहचान को डॉ. मुखर्जी के औद्योगिक दृष्टिकोण की परिणति बताया।
“डॉ. मुखर्जी ने देश में भारी उद्योगों की स्थापना का सपना देखा था। आज वह सपना मैन्युफैक्चरिंग से लेकर डिजिटल इंडिया तक हर क्षेत्र में फलीभूत हो रहा है।”
मुख्यमंत्री ने कहा कि आज भारत विश्व के सबसे तेज़ी से उभरते औद्योगिक और डिजिटल राष्ट्रों में गिना जाता है।
कोविड काल और कल्याणकारी राज्य की संकल्पना
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कोविड महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया संकट में थी, तब भारत ने 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त राशन देकर यह सिद्ध किया कि कल्याणकारी राज्य की अवधारणा अब केवल किताबों तक सीमित नहीं है।
“डॉ. मुखर्जी ने गरीबों के लिए आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय की बात की थी। मोदी सरकार ने उसी भावना को नीतियों में बदला।”
राजनीतिक विचारधारा की विरासत: भारतीय जनसंघ से भाजपा तक
डॉ. मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी, जो आज की भारतीय जनता पार्टी का वैचारिक मूल है।
- वे भारत की राजनीतिक पटल पर राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक एकता की पहली मजबूत आवाज़ थे।
- उन्होंने कांग्रेस के सेकुलर-तुष्टीकरण की नीति का विरोध करते हुए हिन्दू समाज के सम्मान और राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।
- आज भाजपा जिस वैचारिक आधार पर खड़ी है, उसका बीज डॉ. मुखर्जी ने ही बोया था।
कार्यक्रम में प्रमुख हस्तियों की उपस्थिति
इस अवसर पर कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे, जिनमें शामिल थे:
- राज्यसभा सांसद डॉ. दिनेश शर्मा
- लखनऊ की महापौर सुषमा खर्कवाल
- भाजपा नेता नीरज सिंह
- विभिन्न सामाजिक संगठनों और युवाओं के प्रतिनिधि
कार्यक्रम में वक्ताओं ने डॉ. मुखर्जी के चित्रों के सामने दीप प्रज्वलन और पुष्पांजलि अर्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
निष्कर्ष: युगद्रष्टा के विचार आज भी प्रासंगिक
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी केवल एक नेता नहीं थे, वे एक विचारधारा, एक आंदोलन और एक युग की शुरुआत थे।
उनकी शिक्षा, त्याग और राष्ट्रवाद की भावना ने भारत को आत्मनिर्भरता, एकता और गौरव की दिशा दी।
योगी आदित्यनाथ ने अपने भाषण का समापन करते हुए कहा:
“आज जब हम न्यू इंडिया की बात करते हैं, तो वह डॉ. मुखर्जी के राष्ट्रवादी चिंतन और बलिदान से ही संभव हो सका है।”
उनकी जयंती पर यह अवसर केवल श्रद्धांजलि देने का नहीं, बल्कि उनके विचारों को जीवन में अपनाने का है — ताकि भारत सचमुच एक सशक्त, समृद्ध और अखंड राष्ट्र बने।
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