हिमाचल प्रदेश एक बार फिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में है। बुधवार को राज्य के कांगड़ा और कुल्लू जिलों में बादल फटने और अचानक आई बाढ़ ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस भयावह घटना में अब तक पांच लोगों के शव बरामद किए जा चुके हैं जबकि छह लोग अब भी लापता हैं, जिनकी तलाश शुक्रवार सुबह फिर से शुरू की गई। राहत-बचाव कार्य में राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF), पुलिस और होम गार्ड की टीमें संयुक्त रूप से जुटी हुई हैं।
घटना का विवरण: कैसे हुई त्रासदी?
बुधवार को भारी बारिश के चलते हिमाचल के कांगड़ा जिले के मनूनी खड्ड और आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ आ गई। इसी दौरान पास में चल रहे हाइड्रो प्रोजेक्ट साइट पर काम कर रहे मजदूर अपने अस्थायी शिविरों में आराम कर रहे थे, क्योंकि मौसम खराब होने के कारण परियोजना का काम रोका गया था। अचानक खड्ड और ड्रेनों का पानी इन शिविरों की ओर मुड़ गया और कई मजदूर बाढ़ की चपेट में आ गए।
कुल्लू जिले के रेहला बिहाल गांव में भी एक बादल फटने की घटना हुई, जहां तीन लोग लापता बताए जा रहे हैं। यह दोनों घटनाएं एक ही दिन हुईं और इनकी तीव्रता इतनी अधिक थी कि किसी को संभलने का मौका तक नहीं मिला।
राहत-बचाव कार्य: ज़िंदगी की जंग
शुक्रवार सुबह से फिर से शुरू हुए सर्च ऑपरेशन में विशेष रूप से प्रशिक्षित टीमें जुटी हुई हैं। NDRF कमांडेंट बलजिंदर सिंह ने बताया कि कांगड़ा जिले में प्रोजेक्ट साइट से बहकर गए लोगों को खोजने के लिए टीमें जंगलों, खड्डों और नदी किनारों की छानबीन कर रही हैं।
चंबा जिले की रहने वाली ‘लवली’ नामक एक महिला को जंगल से बचाया गया है। उसने बताया कि उस समय कैंप में कुल 13 लोग मौजूद थे, जिनमें से पांच लोग पहाड़ियों की ओर भाग निकले जबकि बाकी पानी के बहाव में बह गए। यह जानकारी इस त्रासदी की भयावहता को उजागर करती है।
एक अन्य मजदूर दयाकिशन ने बताया, “हमने जब बाढ़ आते देखी तो नीचे काम कर रहे लोगों को चिल्लाकर आगाह किया और फिर खुद भी सुरक्षित स्थान की ओर भागे।”
प्रशासन की भूमिका और चूक के आरोप
धर्मशाला से बीजेपी विधायक सुधीर शर्मा ने इस हादसे के पीछे प्रशासनिक लापरवाही का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि शिविर एक नाले के पास बनाए गए थे और जब मौसम खराब होने लगा तो मजदूरों को सुरक्षित स्थान पर नहीं ले जाना एक बड़ी चूक थी, जिसकी जांच होनी चाहिए।
उनका कहना था कि जब मौसम विभाग ने पहले ही भारी बारिश की चेतावनी दी थी, तब प्रशासन को पहले से तैयार रहना चाहिए था। शिविरों को सुरक्षित ऊंचाई पर शिफ्ट न करना, और समय रहते मजदूरों को सतर्क न करना एक गंभीर प्रशासनिक विफलता है।
मजदूरों की स्थिति और पीड़ितों की आपबीती
इस हादसे में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए वे मजदूर हैं जो दूर-दराज़ के इलाकों से आकर परियोजना स्थल पर काम कर रहे थे। इन मजदूरों के पास न तो पक्के घर थे और न ही कोई त्वरित सूचना प्रणाली जिससे वे बाढ़ जैसे खतरे को समय रहते समझ पाते।
पीड़ितों में से अधिकांश गरीब तबके से आते हैं, जिनके परिजनों को अब चिंता सता रही है कि वे ज़िंदा हैं या नहीं। जिनके शव बरामद हुए हैं, उनके परिवारों में कोहराम मचा हुआ है। सरकार ने अब तक मुआवजे की कोई ठोस घोषणा नहीं की है, जिससे प्रभावित परिवारों की चिंता और बढ़ गई है।
हाइड्रो प्रोजेक्ट और पर्यावरणीय जोखिम
यह हादसा यह भी सवाल खड़ा करता है कि पहाड़ी इलाकों में हाइड्रो प्रोजेक्ट्स को कैसे प्लान और मैनेज किया जा रहा है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि अंधाधुंध निर्माण कार्य, जंगलों की कटाई और नदियों के प्राकृतिक मार्गों में हस्तक्षेप हिमालयी राज्यों को आपदा की ओर धकेल रहे हैं। इस क्षेत्र में जल निकासी की व्यवस्था पर्याप्त नहीं है और परियोजना के आसपास बनाए गए अस्थायी शिविर खतरनाक स्थानों पर स्थित थे।
मौसम की चेतावनी: क्या थी तैयारी?
भारतीय मौसम विभाग ने पहले ही भारी बारिश और बादल फटने की आशंका जताई थी। इसके बावजूद सवाल यह है कि क्या जिला प्रशासन ने उचित कदम उठाए? क्या परियोजना प्रबंधन ने अपने मजदूरों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने की व्यवस्था की? इन सवालों के जवाब अब जांच और रिपोर्ट में मिलने की उम्मीद है, लेकिन तब तक कई परिवार अपने परिजनों के लौटने की राह ताक रहे हैं।
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
हादसे के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं और विपक्षी दलों ने सरकार को घेरा है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इस घटना को सरकार की “लापरवाह नीति” का परिणाम बताया है और पीड़ितों को शीघ्र मुआवजा देने की मांग की है। वहीं स्थानीय संगठनों ने हाइड्रो प्रोजेक्ट प्रबंधन पर आपराधिक लापरवाही का केस दर्ज करने की मांग की है।
आगे की राह
राहत-बचाव कार्य अभी जारी है, लेकिन यह घटना हिमाचल सरकार और आपदा प्रबंधन एजेंसियों के लिए एक चेतावनी है। राज्य को अपने पर्वतीय इलाकों में निर्माण कार्यों को लेकर नए मानक तय करने होंगे, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान से बचाया जा सके, बल्कि मजदूरों और आम नागरिकों की जान भी सुरक्षित रह सके।
सरकार को चाहिए कि:
- सभी हाइड्रो प्रोजेक्ट्स का ऑडिट कराया जाए कि उनके पास आपदा से निपटने की क्या व्यवस्था है।
- श्रमिकों के लिए सुरक्षित आश्रयस्थल बनाए जाएं, विशेषकर मानसून के महीनों में।
- आपदा चेतावनी तंत्र को मजबूत किया जाए ताकि भविष्य में इस प्रकार की त्रासदियों से बचा जा सके।
निष्कर्ष
कांगड़ा और कुल्लू में हुई यह त्रासदी केवल एक प्राकृतिक आपदा नहीं है, यह मानव लापरवाही और कमजोर आपदा प्रबंधन का परिणाम है। अब समय है कि राज्य और केंद्र सरकारें इन संकेतों को गंभीरता से लें और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए ठोस कदम उठाएं। पीड़ितों के परिवारों को न्याय, मुआवजा और संवेदनशील प्रशासन की ज़रूरत है—केवल बयानबाज़ी से दर्द कम नहीं होता।
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