बिहार विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) अभियान को लेकर सियासी तूफान खड़ा हो गया है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से स्पष्ट जवाब मांगा है और चेतावनी दी है कि यह कवायद करोड़ों नागरिकों के अस्तित्व और अधिकारों को संकट में डाल सकती है।
❝अगर नाम छूट गया, तो सिर्फ वोट नहीं, ज़िंदगी छिन जाएगी❞
चुनाव आयोग के दफ्तर से बाहर आते हुए ओवैसी ने कहा:
“हम SIR के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसकी समयसीमा और प्रक्रिया को लेकर गंभीर आपत्ति है। अगर 15-20% लोग छूट गए, तो वे सिर्फ वोट का हक़ नहीं खोएंगे, बल्कि उनकी नागरिकता भी संदेह के घेरे में आ जाएगी।”
उन्होंने सवाल उठाया कि अगर कथित अवैध प्रवासी पहले से वोट डालते आ रहे थे, तो उन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों में क्यों नहीं रोका गया?
BJP-RSS पर लगाए आरोप
ओवैसी ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर “बांग्लादेशी घुसपैठियों” की झूठी कहानी फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा:
“1971 के युद्ध के बाद भारत ने खुद उन्हें शरण दी थी। अब अचानक वे घुसपैठिए कैसे बन गए?”
उन्होंने यह भी कहा कि “वोटर लिस्ट से नाम हटाना केवल वोट न डाल पाने की बात नहीं, बल्कि राशन, स्वास्थ्य, शिक्षा और योजनाओं से वंचित होने का मुद्दा है।”
कागज़ नहीं, तो हक़ नहीं?
AIMIM प्रमुख ने इस बात पर ज़ोर दिया कि लाखों प्रवासी मज़दूर, जो लॉकडाउन या बेरोज़गारी के कारण बिहार लौटे, उनके पास पते या पहचान के कागज़ नहीं हैं। बाढ़ और विस्थापन जैसी परिस्थितियों में ये दस्तावेज़ खो गए हैं।
“उनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं है। अगर नाम हटा दिया गया तो ये लोग शून्य में चले जाएंगे। यह सर्वाइवल का सवाल है।”
SIR प्रक्रिया में जल्दबाज़ी का आरोप
ओवैसी का कहना है कि बूथ स्तर के अधिकारी (BLOs) को अभी तक ठीक से ट्रेनिंग या हैंडबुक तक नहीं दी गई है, फिर भी इतनी बड़ी प्रक्रिया शुरू कर दी गई। यह जनभागीदारी के बिना चल रही एक ‘अधूरी और खतरनाक कवायद’ है।
“ऐसे में लाखों ग़रीब, पिछड़े, और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग मतदाता सूची से गायब हो सकते हैं।”
कानूनी लड़ाई का संकेत
हालांकि ओवैसी ने कोर्ट जाने की बात से स्पष्ट इनकार नहीं किया, लेकिन उन्होंने कहा कि “देखना होगा आगे क्या होता है।” उन्होंने विपक्षी दलों से भी अपील की है कि वे मिलकर इस मसले पर संयुक्त रुख अपनाएं।
AIMIM के बिहार अध्यक्ष और विधायक अख्तरुल ईमान ने भी कहा कि चुनाव आयोग को या तो समय सीमा बढ़ानी चाहिए या इस अभियान को स्थगित करना चाहिए, क्योंकि राज्य के ज़्यादातर ग़रीब और मज़दूरों के पास पर्याप्त दस्तावेज़ नहीं हैं।
“बिहार में केवल 2% लोगों के पास पासपोर्ट है और 14% ग्रेजुएट हैं। इनमें से अधिकतर लोगों के पास कागज़ात नहीं हैं। बाढ़ में भी उनके दस्तावेज़ नष्ट हो चुके हैं।”
ECI का पक्ष: पारदर्शिता के लिए SIR
चुनाव आयोग ने 24 जून को राज्य की मतदाता सूची के “विशेष तीव्र पुनरीक्षण अभियान” की घोषणा की थी। इसके तहत मृत मतदाताओं, दोहरी प्रविष्टियों और कथित अवैध प्रवासियों के नाम हटाने की योजना है। आयोग का कहना है कि “तेज़ शहरीकरण, जनसंख्या बदलाव, और मृतकों के नाम के अद्यतन में कमी” के कारण यह ज़रूरी हो गया था।
किरन रिजिजू को भी घेरा
ओवैसी ने अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू को भी आड़े हाथों लिया। रिजिजू के इस बयान पर कि अल्पसंख्यकों को ज़्यादा सरकारी सुविधाएं मिलती हैं, ओवैसी ने कहा:
“आप राजा नहीं, संविधानिक मंत्री हैं। अल्पसंख्यकों के अधिकार दया नहीं, मौलिक अधिकार हैं। क्या रोज़ पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, जिहादी या रोहिंग्या कहे जाने को ‘फायदा’ कहेंगे?”
उन्होंने कहा कि सरकार ने मुसलमान छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्तियाँ बंद कर दीं — जैसे मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप, प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप, और मेरिट-कम-मीन्स स्कीम।
निष्कर्ष: क्या SIR प्रक्रिया सुधार या विस्थापन का ज़रिया बनेगी?
बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची की विशेष समीक्षा न सिर्फ तकनीकी मुद्दा है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों से जुड़ा गंभीर विषय बन गया है। AIMIM और अन्य विपक्षी दलों की आपत्तियों से साफ़ है कि यह मुद्दा आने वाले हफ्तों में राष्ट्रीय बहस का केंद्र बन सकता है।
क्या चुनाव आयोग सभी पक्षों को संतुष्ट कर पाएगा? क्या यह कवायद ‘सच्चे नागरिकों की पहचान’ का माध्यम बनेगी या फिर ‘वोट बैंक सफाई अभियान’?
फिलहाल, जवाब हवा में है — लेकिन सवाल बहुत भारी हैं।
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