14 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में एक बेहद संवेदनशील और व्यापक जनचर्चा से जुड़ा मामला सुनवाई के लिए आया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के कार्यकर्ताओं पर आधारित एक कथित आपत्तिजनक कार्टून को लेकर मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा एक कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर पर बहस हुई। यह मामला केवल एक कार्टून या सोशल मीडिया पोस्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसकी सीमाओं की भी गहन परीक्षा बन चुका है।
मामला क्या है?
हेमंत मालवीय नाम के एक कार्टूनिस्ट के खिलाफ मई 2025 में मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के लसूडिया थाने में एफआईआर दर्ज की गई। शिकायत एक अधिवक्ता और आरएसएस कार्यकर्ता विनय जोशी द्वारा की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि मालवीय द्वारा सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक कार्टून, वीडियो, फोटो और टिप्पणियाँ साझा की गईं जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, आरएसएस कार्यकर्ता और भगवान शिव जैसे धार्मिक पात्रों को अपमानजनक रूप में चित्रित किया गया।
एफआईआर में यह भी आरोप था कि इन पोस्ट्स के माध्यम से हेमंत मालवीय ने हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई और साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की। साथ ही उन्होंने समाज में घृणा और उन्माद फैलाने वाली भाषा का प्रयोग किया।
आरोपों के अंतर्गत कानून
हेमंत मालवीय के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की निम्नलिखित धाराएं लगाई गईं:
- धारा 196: समुदायों के बीच सौहार्द बिगाड़ने वाले कार्य
- धारा 299: धार्मिक भावनाएं आहत करने के उद्देश्य से किया गया जानबूझकर और द्वेषपूर्ण कार्य
- धारा 352: शांति भंग करने के इरादे से किया गया अपमान
- आईटी अधिनियम की धारा 67-A: इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से यौन रूप से स्पष्ट सामग्री का प्रकाशन अथवा संप्रेषण
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
मुख्य न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें हेमंत मालवीय ने अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) की मांग की थी। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 3 जुलाई को अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके विरुद्ध मालवीय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।
सुनवाई के दौरान अदालत ने बेहद स्पष्ट और कड़े शब्दों में टिप्पणी करते हुए कहा:
“जो कुछ भी हो रहा है, वह निश्चित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग है।”
न्यायमूर्ति धूलिया ने वकील से पूछा:
“आप ये सब क्यों करते हैं?”
हेमंत मालवीय की ओर से दलीलें
हेमंत मालवीय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने पैरवी की। उन्होंने अदालत के सामने यह तर्क रखा कि:
- संबंधित कार्टून वर्ष 2021 में COVID-19 महामारी के समय बनाया गया था।
- यह पोस्ट भले ही ‘poor taste’ (अप्रिय) हो सकती है, लेकिन वह अपराध नहीं बनती।
- कोई भी व्यक्ति उस पोस्ट को आपत्तिजनक मान सकता है, लेकिन कानूनन इसे दंडनीय नहीं ठहराया जा सकता।
- मालवीय ने सिर्फ एक कार्टून साझा किया था, उस पर अन्य लोगों ने जो टिप्पणियाँ कीं, उनकी जिम्मेदारी वहन करना उचित नहीं।
वृंदा ग्रोवर ने कहा:
“यह केवल कानून का प्रश्न है। मैं इसे उचित ठहराने की कोशिश नहीं कर रही, लेकिन यह अपराध नहीं है। यह एक कार्टून था, कोई भड़काऊ भाषण नहीं।”
क्या पोस्ट हटाया जाएगा?
सुनवाई के दौरान वृंदा ग्रोवर ने यह भी कहा कि उनके मुवक्किल पोस्ट को हटाने को तैयार हैं। इस पर अदालत ने संतोष जताया लेकिन यह भी टिप्पणी की कि:
“भले ही हम इस केस में कोई भी निर्णय लें, लेकिन यह निश्चित है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग हो रहा है।”
सरकारी पक्ष की प्रतिक्रिया
मध्यप्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने अदालत में पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि:
“इस तरह की गतिविधियाँ बार-बार हो रही हैं और यह केवल परिपक्वता का सवाल नहीं, इससे अधिक गहरी बात है।”
नटराज ने यह भी संकेत दिया कि सोशल मीडिया पर किसी भी सामग्री का प्रभाव व्यापक होता है और उसका सामाजिक-सांस्कृतिक दायरा बेहद संवेदनशील है।
अदालत का रवैया और अगली सुनवाई
वृंदा ग्रोवर ने अदालत से याचिकाकर्ता को तब तक के लिए अंतरिम राहत देने की मांग की जब तक कि अंतिम सुनवाई न हो जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“हम इसे कल देखेंगे।”
अब इस मामले की अगली सुनवाई 15 जुलाई को होनी है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसकी सीमाएं
यह मामला एक बार फिर भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उसकी वैधानिक सीमाओं पर राष्ट्रीय बहस को जन्म देता है। संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) प्रत्येक नागरिक को बोलने और अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता देता है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) में कुछ प्रतिबंध भी निर्धारित किए गए हैं, जैसे:
- भारत की संप्रभुता और अखंडता
- राज्य की सुरक्षा
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
- सार्वजनिक व्यवस्था
- शालीनता या नैतिकता
- अदालत की अवमानना
- मानहानि
- किसी अपराध को उकसाना
इस संदर्भ में, अदालत को यह तय करना होता है कि क्या कोई कथित आपत्तिजनक सामग्री इन प्रतिबंधों की श्रेणी में आती है या नहीं।
सामाजिक मीडिया का प्रभाव और संवेदनशीलता
सोशल मीडिया आज की दुनिया में अभिव्यक्ति का एक प्रमुख माध्यम बन चुका है, लेकिन उसी के साथ यह भी चुनौती बन गया है कि किसी पोस्ट की व्याख्या कैसे की जाती है। एक व्यंग्यात्मक कार्टून, जो किसी के लिए ‘हास्य’ हो सकता है, वह किसी अन्य के लिए ‘धार्मिक अपमान’ का कारण बन सकता है।
इस मामले में प्रश्न यह नहीं है कि कार्टून उचित था या नहीं, बल्कि यह कि क्या उसे साझा करना ‘दंडनीय अपराध’ की श्रेणी में आता है या नहीं।
निष्कर्ष
हेमंत मालवीय बनाम मध्यप्रदेश सरकार का यह केस आने वाले समय में भारत की न्यायपालिका के लिए एक कसौटी बनेगा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच कैसे संतुलन बनाती है। अदालत को यह तय करना होगा कि:
- क्या एक व्यंग्यात्मक कार्टून, चाहे वह अनुचित हो, उसे आपराधिक कार्रवाई योग्य माना जाए?
- क्या सरकार की प्रतिक्रिया ‘overreach’ (अतिरिक्त हस्तक्षेप) थी?
- क्या सोशल मीडिया पर साझा की गई सामग्री के लिए लेखक को तीसरे पक्ष की टिप्पणियों का उत्तरदायी ठहराया जा सकता है?
15 जुलाई को होने वाली सुनवाई पर देशभर की निगाहें टिकी हैं। यह फैसला न केवल एक कार्टूनिस्ट की स्वतंत्रता, बल्कि देशभर के कलाकारों, व्यंग्यकारों और अभिव्यक्ति से जुड़े हर व्यक्ति की दिशा तय कर सकता है।
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