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गांभीरा पुल त्रासदी: एक मां की चीख, टूटता पुल और गुजरात मॉडल पर उठते सवाल

Gambhira bridge tragedy: A mother's scream, collapsing bridge and questions raised on Gujarat model

गुजरात के वडोदरा ज़िले से तक़रीबन 280 किलोमीटर दूर स्थित भावनगर ज़िले के बगदाणा बापा सीताराम मंदिर की ओर एक परिवार कृतज्ञता व्यक्त करने जा रहा था। उनके जीवन में भगवान से मांगी गई मन्नत पूरी हुई थी—चार बेटियों के बाद उन्हें एक बेटा नसीब हुआ था। लेकिन यह आध्यात्मिक यात्रा एक भीषण त्रासदी में तब्दील हो गई।

चार साल की वेदिका, एक साल का नैतिक, उनकी मां सोनल पाधियार और पिता रमेश पाधियार—चार लोगों का यह खुशहाल परिवार एक ही झटके में उजड़ गया। उनके साथ जा रहे अन्य रिश्तेदारों की भी मौत हो गई। एकमात्र बचने वाली थीं सोनल पाधियार, जिनकी चीखें, दुख और मातम इस त्रासदी की गवाही बन गईं।


क्या हुआ गांभीरा पुल पर?

8 जुलाई की सुबह करीब 7 बजे, गांभीरा नदी पर बना 40 साल पुराना पुल अचानक ढह गया। पुल से गुजर रही एक वैन और अन्य वाहन नीचे नदी में गिर गए। वैन में बैठे पाधियार परिवार के सदस्य और अन्य लोग इस हादसे में डूब गए।

सोनल किसी तरह से पानी की सतह तक आईं। उन्होंने खुद वैन का दरवाज़ा खोलकर जान बचाई, लेकिन उनके पति और दोनों मासूम बच्चे पानी में समा चुके थे।

NDTV द्वारा जारी एक वीडियो में सोनल को कमर तक पानी में खड़े देखा जा सकता है। वह बुरी तरह रोती हुई अपने पति और बच्चों को बचाने की गुहार लगाती हैं। पुल पर खड़े लोग उन्हें मदद का भरोसा देते हैं—जो अंततः बहुत देर से पहुंची।


सोनल की कहानी: “मेरे बच्चे बचा लो…”

बचाव के बाद सोनल ने NDTV को बताया:

“हमारे गांव के कुछ परिवारों ने एक वैन किराए पर ली थी। हम बगदाणा मंदिर जा रहे थे। सामने वाली गाड़ी पुल से गिर गई और हमारी वैन भी उसके पीछे-पीछे नदी में समा गई। जब मैं सतह पर आई, तो मैंने लोगों से चिल्लाकर मदद मांगी, लेकिन कोई नहीं आया। एक घंटे बाद मदद आई, लेकिन तब तक मेरी दुनिया उजड़ चुकी थी।”

सोनल की चीखों से भरा वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जिसने लाखों लोगों की आंखें नम कर दी हैं। यह एक अकेली मां की टूटती उम्मीदों और सरकारी लापरवाही की जीवंत तस्वीर है।


गांव वालों की चेतावनी अनसुनी

गांभीरा पुल का निर्माण 1985 में हुआ था और पिछले कई सालों से इसकी हालत बेहद जर्जर हो चुकी थी। स्थानीय पंचायत सदस्य हर्षद सिंह परमार ने NDTV को बताया:

“हम पिछले कई वर्षों से इस पुल के बारे में प्रशासन को अलर्ट कर रहे थे। लोग बताते थे कि पुल हिलता है, आवाज़ करता है। हम प्रशासन से कह रहे थे कि ट्रैफिक लोड कम करें, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। अब हमारे गांव के लोग इस पुल की भेंट चढ़ गए।”

यह केवल एक हादसा नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक उदासीनता और सिस्टम की नाकामी का जीता-जागता उदाहरण है।


राजनीतिक प्रतिक्रिया: गुजरात मॉडल पर सवाल

इस हादसे के बाद जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस त्रासदी को “बेहद दुखद” बताया, वहीं विपक्ष ने इसे ‘गुजरात मॉडल’ की विफलता करार दिया है।

कांग्रेस पार्टी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा:

“यह हादसा केवल तकनीकी नहीं, बल्कि व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार और उपेक्षा का परिणाम है। यही है गुजरात मॉडल की असली तस्वीर।”

उधर राज्य के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं और कहा है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन क्या जांच ही पर्याप्त है?


राजनीति और भ्रष्टाचार का पुल

भले ही गांभीरा पुल के निर्माण की उम्र 40 साल हो चुकी थी, लेकिन उस पर यातायात लगातार जारी था। स्थानीय विधायक और बीजेपी नेता चैतन्यसिंह ज़ाला की सिफारिश पर एक नए पुल की योजना बनी थी। सर्वे भी हो चुका था और निर्माण प्रक्रिया प्रस्तावित थी। लेकिन पुराना पुल चालू रखा गया, सिर्फ मरम्मत के सहारे।

यह सवाल उठना स्वाभाविक है—जब नए पुल की योजना बन चुकी थी, तो पुराने को ट्रैफिक से क्यों नहीं रोका गया? क्या यह जानबूझकर की गई लापरवाही थी या फिर ठेकेदारों, नेताओं और अधिकारियों के बीच कोई अदृश्य गठजोड़?


सिर्फ पाधियार परिवार नहीं, 17 और मौतें

इस हादसे में कुल 17 लोगों की जान चली गई। कई लोग अब भी लापता हैं। बचाव दल लगातार नदी में शवों की तलाश कर रहे हैं। कुछ शव 10 किलोमीटर दूर तक बहते पाए गए।

हर शव सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक परिवार का उजड़ा सपना, किसी मां की ममता, किसी पिता की मेहनत और बच्चों का भविष्य था।


एक बेटे की मन्नत और टूटता सपना

गांव के पंचायत सदस्य ने बताया कि रमेश और सोनल की पहले से चार बेटियां थीं। उन्होंने बगदाणा मंदिर में मन्नत मांगी थी कि अगर बेटा हुआ तो वे परिवार समेत दर्शन करने आएंगे।
नैतिक, उनका एक साल का बेटा, उस मन्नत का फल था। अब वही बेटा, उसकी बहन और पिता—सभी इस दुर्घटना में दम तोड़ चुके हैं।


सवाल जो अभी भी अनुत्तरित हैं

  1. क्या प्रशासन को पहले से पुल की स्थिति की जानकारी नहीं थी?
  2. जब नया पुल प्रस्तावित था, तो पुराने को बंद क्यों नहीं किया गया?
  3. क्या हादसे के लिए ठेकेदार, अधिकारी या जनप्रतिनिधि ज़िम्मेदार माने जाएंगे?
  4. क्या सोनल जैसी पीड़ित महिलाओं को न्याय मिलेगा, या वे सरकारी मुआवज़े और जांच के जाल में उलझ जाएंगी?

त्रासदी से सीख या अगली लापरवाही की प्रतीक्षा?

भारत में इस तरह के हादसे कोई नई बात नहीं हैं—कभी पुल टूटता है, कभी इमारत गिरती है, कभी रेल दुर्घटना होती है। हर बार एक “जांच कमेटी” बनती है, मुआवज़ा दिया जाता है, बयान दिए जाते हैं—और फिर अगली त्रासदी तक सब कुछ भुला दिया जाता है।

लेकिन गांभीरा पुल की यह त्रासदी एक मील का पत्थर बन सकती है अगर:

  • दोषियों को सज़ा मिले,
  • पुल निर्माण और मरम्मत में पारदर्शिता आए,
  • जनता की चेतावनियों को गंभीरता से लिया जाए,
  • और सबसे अहम—सरकार अपनी ज़िम्मेदारी स्वीकार करे।

निष्कर्ष: एक मां का विलाप और टूटती व्यवस्था

गांभीरा पुल पर गिरते ही जिस तरह सोनल पाधियार की चीखें सुनाई दीं, वह किसी भी संवेदनशील समाज के लिए अंतिम चेतावनी होनी चाहिए। यह केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि हमारे सिस्टम का टूटता पुल है—जो समय रहते अगर नहीं सुधरा, तो अगली बार और बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।

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