भारत के साहित्य और सिनेमा जगत के लिए एक बेहद दुखद दिन साबित हुआ। प्रसिद्ध तेलुगु गीतकार, लेखक और चित्रकार शिव शक्ति दत्ता का सोमवार को हैदराबाद स्थित अपने घर में निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे और लंबे समय से उम्र संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे।
उनके निधन की खबर मंगलवार को सामने आई, जिसने फिल्मी और साहित्यिक जगत को स्तब्ध कर दिया। एसएस राजामौली के चाचा और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता संगीतकार एमएम कीरवाणी के पिता शिव शक्ति दत्ता को तेलुगु सिनेमा में उनके विशिष्ट संस्कृतनिष्ठ गीतों के लिए विशेष रूप से याद किया जाएगा।
■ चिरंजीवी और महेश बाबू ने दी श्रद्धांजलि
तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री के मेगास्टार चिरंजीवी ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा:
“श्री शिव शक्ति दत्ता – एक चित्रकार, संस्कृत भाषा के विद्वान, लेखक, कथाकार और बहुआयामी प्रतिभा – के दिव्य विलय की खबर सुनकर स्तब्ध हूं। ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शांति मिले। मेरे मित्र कीरवाणी गरु और उनके परिवार को मेरी गहन संवेदनाएं।”
वहीं, सुपरस्टार महेश बाबू भी व्यक्तिगत रूप से दत्ता को श्रद्धांजलि देने पहुंचे, जिससे इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इंडस्ट्री में उन्हें कितना सम्मान प्राप्त था।
■ जीवन परिचय: एक बहुआयामी रचनात्मक जीवन
शिव शक्ति दत्ता, जिनका असली नाम कोडुरी सुब्बाराव था, का जन्म 1932 में आंध्र प्रदेश के कोव्वू नामक गांव में हुआ था, जो राजमुंदरी के पास स्थित है। उनका जीवन कला के विभिन्न क्षेत्रों – साहित्य, संगीत, चित्रकला और सिनेमा – से गहराई से जुड़ा रहा।
शुरुआत में उन्होंने “कमलेश” नाम से लेखन कार्य किया। बाद में उन्होंने आध्यात्मिक रुझान और संस्कृत ज्ञान के चलते स्वयं को “शिव शक्ति दत्ता” के रूप में स्थापित किया।
■ गीतकार के रूप में योगदान
शिव शक्ति दत्ता तेलुगु फिल्मों में संस्कृतनिष्ठ गीतों के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके गीतों में आध्यात्मिकता, पौराणिकता और भावनात्मक गहराई का मेल दिखता था। उन्होंने जो प्रमुख गीत लिखे, उनमें शामिल हैं:
- “रामम राघवम” – आरआरआर
- “अंजांद्री थीम सॉन्ग” – हनुमान
- “अग्नि स्कलन” – मगधीरा
- “अम्मा अवनी” – राजन्ना
- “नल्ला नल्लानी कल्ला”, “मन्नेला तिंटिविरा” – अन्य लोकप्रिय गीत
उनके गीतों में संस्कृत और तेलुगु का जो समन्वय था, वह उन्हें अन्य गीतकारों से अलग करता था। वे गीत सिर्फ सुनने के लिए नहीं, अनुभव करने के लिए होते थे।
■ सिनेमा में शुरुआत और फिल्म निर्माण
शिव शक्ति दत्ता का सिनेमा से प्रेम उन्हें चेन्नई (तब का मद्रास) ले गया। वे शुरुआती दिनों में विभिन्न निर्देशकों के साथ सहायक लेखक के रूप में काम करने लगे और एक फिल्म बनाने का सपना देखा जिसका नाम था पिल्लनाग्रोवी। हालांकि वह फिल्म पूरी नहीं बन पाई, लेकिन इससे उनका फिल्मी करियर जरूर रफ्तार पकड़ गया।
बाद में उन्होंने 1988 में आई फिल्म जनकी रामुडु में के. राघवेंद्र राव के साथ काम किया और पटकथा लेखक के रूप में पहचान बनाई।
2007 में, उन्होंने खुद एक फिल्म का निर्देशन किया – चंद्रहास। यह फिल्म एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित थी और इसमें उन्होंने अपने लेखन, निर्देशन और सांस्कृतिक दृष्टिकोण का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया।
■ परिवार और उत्तराधिकार
शिव शक्ति दत्ता के परिवार में फिल्मी प्रतिभा की भरमार रही है:
- उनके पुत्र हैं एमएम कीरवाणी – जिन्होंने बाहुबली, आरआरआर, मगधीरा जैसी फिल्मों में संगीत दिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई।
- उनके भतीजे हैं प्रसिद्ध निर्देशक एसएस राजामौली – जिन्होंने बाहुबली और आरआरआर जैसी विश्व प्रसिद्ध फिल्मों का निर्देशन किया।
- उनके परिवार में ही एमएम श्रीकांत और काल भैरव जैसे अन्य संगीतकार भी सक्रिय हैं।
कहना गलत नहीं होगा कि कोडुरी परिवार आज भारतीय सिनेमा के साउंडस्केप और दृश्यरचना की धुरी बन चुका है, और इसकी बुनियाद कहीं न कहीं शिव शक्ति दत्ता की रचनात्मक दृष्टि और परंपरागत ज्ञान से जुड़ी रही।
■ बहुआयामी प्रतिभा: एक चित्रकार भी
बहुत कम लोग जानते हैं कि दत्ता एक कुशल चित्रकार भी थे। संस्कृत भाषा और भारतीय शास्त्रों में गहरी पकड़ होने के बावजूद, वे रंगों की दुनिया में भी समान रूप से दक्ष थे। उनके बनाए चित्रों में पौराणिक, दार्शनिक और भारतीयता से भरे प्रतीक चिन्ह देखने को मिलते हैं।
कई फिल्मी सेट्स में उनके चित्रों का इस्तेमाल किया गया और कुछ पोस्टर्स के मूल रेखाचित्र भी उन्होंने ही बनाए थे।
■ उनके निधन पर सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
उनके निधन की खबर जैसे ही बाहर आई, सोशल मीडिया पर फिल्म इंडस्ट्री से लेकर साहित्यिक जगत तक शोक की लहर दौड़ गई। ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर फैंस, कलाकारों और साहित्यप्रेमियों ने उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि दी।
कुछ प्रमुख प्रतिक्रियाएं:
- एसएस राजामौली ने लिखा: “मेरे जीवन की बुनियाद रखने वाले व्यक्ति चले गए। आप हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे।”
- नंदामुरी बालकृष्ण: “तेलुगु साहित्य और गीतों में जो योगदान शिव शक्ति दत्ता गरु ने दिया, वो अमूल्य है।”
■ अंतिम संस्कार
शिव शक्ति दत्ता का अंतिम संस्कार मंगलवार को हैदराबाद में पूरे राजकीय और सांस्कृतिक सम्मान के साथ किया गया। अंतिम दर्शन के लिए फिल्म जगत से कई दिग्गज पहुंचे, जिनमें:
- एमएम कीरवाणी और पूरा कोडुरी परिवार
- निर्देशक एसएस राजामौली
- निर्माता डीवीवी दानय्या
- अभिनेता नागा चैतन्य, राणा डग्गुबाती
- गीतकार चंद्रबोस और अन्य वरिष्ठ लेखक
■ निष्कर्ष: एक युग का अंत, लेकिन प्रेरणा शाश्वत
शिव शक्ति दत्ता केवल एक गीतकार नहीं थे, वे भारतीय संस्कृति, भाषा, और सिनेमा के संगम के प्रतीक थे। उन्होंने तेलुगु सिनेमा को एक गौरवशाली सांस्कृतिक धारा से जोड़ा और अपनी लेखनी के माध्यम से संस्कृत भाषा को सिनेमा की मुख्यधारा में फिर से स्थापित किया।
उनकी रचनाओं में जो अध्यात्म, संवेदना और सौंदर्य था, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बना रहेगा। उनका निधन भारतीय साहित्य और फिल्म संगीत के लिए अपूरणीय क्षति है।
उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि यदि कला और संस्कृति के प्रति सच्ची निष्ठा हो, तो सीमाएं स्वयं मिट जाती हैं।
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