साउथ सिनेमा के सुपरस्टार और टॉलीवुड के सबसे भरोसेमंद चेहरों में से एक, महेश बाबू, एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं।
इस बार मामला जुड़ा है एक रियल एस्टेट कंपनी साई सूर्या डेवलपर्स से, जिसे उन्होंने कुछ समय पहले ब्रांड एंबेसडर के रूप में प्रचारित किया था।
तेलंगाना के रंगारेड्डी ज़िला उपभोक्ता आयोग (Ranga Reddy District Consumer Commission) ने अब महेश बाबू को एक कानूनी नोटिस भेजा है। मामला एक 34.8 लाख रुपये की कथित ठगी से जुड़ा है, जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि अभिनेता की पब्लिक एंडोर्समेंट से ही उन्होंने निवेश का निर्णय लिया।
मामले की जड़: डॉक्टर की शिकायत, गायब प्लॉट्स और भरोसे का टूटा रिश्ता
हैदराबाद की एक महिला डॉक्टर ने आयोग में याचिका दाखिल कर बताया कि:
- उन्होंने साई सूर्या डेवलपर्स द्वारा प्रचारित “ग्रीन मीडोज़” परियोजना में 34.8 लाख रुपये खर्च कर प्लॉट खरीदा।
- लेकिन बाद में पता चला कि ऐसे कोई प्लॉट्स मौजूद ही नहीं हैं। दस्तावेज फर्जी निकले।
- उनकी शिकायत के अनुसार, महेश बाबू द्वारा किए गए प्रचार पर भरोसा कर उन्होंने निवेश किया था।
- अब उन्होंने अभिनेता को भी तीसरे प्रतिवादी (Third Respondent) के रूप में नामित किया है।
इससे साफ होता है कि केवल बिल्डर ही नहीं, प्रसिद्ध सेलिब्रिटी एंडोर्सर्स भी अब कानूनी जवाबदेही की जद में आ रहे हैं।
ब्रांड एंबेसडर की भूमिका पर सवाल
पिछले कुछ वर्षों में महेश बाबू ने साई सूर्या डेवलपर्स के साथ कई प्रिंट, डिजिटल और टेलीविज़न विज्ञापन किए थे।
उनमें वे कंपनी के वादों की पुष्टि करते नजर आए, जैसे कि:
- “आपका भविष्य, हमारी ज़मीन पर।”
- “विश्वास का प्रतीक – साई सूर्या।”
- “जहां महेश बाबू का नाम, वहां भरोसे का ठिकाना।”
इन प्रचारों ने आम उपभोक्ताओं के बीच भरोसे का एक प्रभावशाली वातावरण तैयार किया। अब वही प्रचार उनके खिलाफ कानूनी साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं।
पहले भी आ चुकी है प्रवर्तन निदेशालय की नजर
यह पहला मौका नहीं है जब महेश बाबू का नाम साई सूर्या डेवलपर्स विवाद में आया हो।
- अप्रैल 2025 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने अभिनेता से पूछताछ की थी।
- ईडी उस समय मनी लॉन्ड्रिंग जांच कर रही थी, जिसमें साई सूर्या डेवलपर्स और सुराणा ग्रुप शामिल थे।
- जांच में कंपनी के मालिक कांचरला सतीश चंद्र गुप्ता पर “ग्रीन मीडोज़” प्रोजेक्ट को लेकर करोड़ों की धोखाधड़ी का आरोप था।
ईडी ने तब स्पष्ट किया था कि महेश बाबू पर कोई आरोप तय नहीं हुआ था, और उन्होंने संभवतः “गुड फेथ” में कंपनी का प्रचार किया था।
लेकिन अब, उपभोक्ता आयोग द्वारा भेजा गया नया नोटिस उनकी सिविल जवाबदेही को लेकर गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है।
भारत में सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट की बढ़ती जिम्मेदारियां
यह मामला एक बड़ा उदाहरण बनता जा रहा है उस गंभीरता का, जो अब भारत में सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट से जुड़ी जवाबदेही को लेकर उभर रही है।
कानून की स्थिति क्या कहती है?
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 (Consumer Protection Act 2019) के तहत, कोई भी सेलिब्रिटी अगर भ्रामक विज्ञापन करता है, तो उसे वित्तीय दंड और अस्थायी प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है।
- कानून कहता है कि एंडोर्सर को प्रमोट किए गए उत्पाद/सेवा की विश्वसनीयता की जांच करनी चाहिए।
- यदि कोई उत्पाद/सेवा झूठे दावे करता है और उपभोक्ता को नुकसान पहुंचाता है, तो एंडोर्सर को भी उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।
अन्य समान मामले: याद दिलाता है सुशांत सिंह राजपूत से लेकर अमिताभ बच्चन तक
भारत में इससे पहले भी कई सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट विवाद सामने आ चुके हैं:
- सुशांत सिंह राजपूत का नाम भी एक रियल एस्टेट घोटाले में सामने आया था जिसमें कंपनी का प्रमोशन किया गया था।
- अमिताभ बच्चन को कई बार गुटखा ब्रांड के प्रमोशन को लेकर आलोचना झेलनी पड़ी।
- अक्षय कुमार, शाहरुख खान जैसे सितारे भी विभिन्न उत्पादों के प्रचार पर बाद में नैतिक या कानूनी सवालों के घेरे में आए।
अब महेश बाबू इस सूची में नया नाम हैं, और उनके केस की प्रकृति विशेष रूप से उपभोक्ता निवेश और धोखाधड़ी से जुड़ी होने के कारण अधिक संवेदनशील है।
कंपनी की स्थिति: मालिक फरार, प्रोजेक्ट अधर में
साई सूर्या डेवलपर्स के मालिक कांचरला सतीश चंद्र गुप्ता फिलहाल पुलिस जांच के घेरे में हैं।
- “ग्रीन मीडोज़” प्रोजेक्ट को लेकर सैकड़ों उपभोक्ताओं ने ठगी के आरोप लगाए हैं।
- कंपनी पर आरोप है कि उसने गैर-मौजूद या सरकारी भूमि पर प्लॉट्स बेच दिए।
- कई निवेशकों को अब तक न तो भूमि आवंटन, न ही धनवापसी मिल पाई है।
इस पृष्ठभूमि में महेश बाबू जैसे बड़े नाम के प्रचार का प्रभाव लाखों के नुकसान में तब्दील हो गया, जो अब उपभोक्ता अदालत की परिधि में है।
महेश बाबू की टीम की प्रतिक्रिया का इंतजार
इस पूरे विवाद पर अभी तक महेश बाबू या उनकी टीम की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
- कई मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि अभिनेता और उनके कानूनी सलाहकार नोटिस का अध्ययन कर रहे हैं।
- यह भी संभव है कि वे अदालत में “गुड फेथ एंडोर्समेंट” का तर्क दें, जिसमें कहा जा सकता है कि उन्होंने कंपनी के किसी भी अनैतिक या अवैध गतिविधि की जानकारी के बिना ही प्रचार किया।
हालांकि, उपभोक्ता आयोग इस तर्क को उचित सावधानी की कमी के रूप में देख सकता है।
वृहद प्रभाव: क्या सेलिब्रिटीज को जांचना चाहिए कंपनी का बैकग्राउंड?
यह मामला भारतीय मनोरंजन जगत को एक चेतावनी देता है – सिर्फ पैसे के लिए प्रचार करना अब सुरक्षित नहीं है।
- अभिनेता, क्रिकेटर, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर – सभी अब अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकते।
- कंपनियों का चयन करते समय सेलिब्रिटीज को भी बैकग्राउंड जांच, कानूनी अनुबंध और विश्वसनीयता परखने की आवश्यकता है।
महेश बाबू जैसे विश्वसनीय और पारिवारिक छवि वाले सितारे अगर ऐसे विवादों में घिरते हैं, तो इससे न केवल उनकी छवि प्रभावित होती है, बल्कि उनके ब्रांड वैल्यू पर भी असर पड़ता है।
निष्कर्ष: एक स्टार, एक प्रचार और जनता की उम्मीदें
महेश बाबू के इस विवाद से एक बात स्पष्ट होती है — कि अब भारत में उपभोक्ता न केवल उत्पाद या कंपनी से, बल्कि उस पर प्रचार करने वाले से भी जवाबदेही चाहते हैं।
कानून भी अब धीरे-धीरे प्रभावशाली नामों की जिम्मेदारी तय करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
चाहे वह रियल एस्टेट हो, हेल्थ प्रोडक्ट्स हो या फाइनेंशियल स्कीम — अब सेलिब्रिटीज को अपनी छवि के साथ-साथ जनता की भावनाओं और कानून दोनों का सम्मान करना होगा।
इस मामले की आगामी सुनवाई और महेश बाबू की प्रतिक्रिया यह तय करेगी कि सेलिब्रिटी एंडोर्समेंट की सीमा और ज़िम्मेदारी की दिशा क्या होगी।
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