हिमाचल प्रदेश का मंडी ज़िला बीते सप्ताह एक बार फिर प्राकृतिक आपदा का शिकार बना, जब थुनाग, करसोग और गोहर इलाकों में बादल फटने और अचानक आई बाढ़ ने कहर बरपा दिया। भारी बारिश और भू-स्खलन की घटनाओं ने इलाके की रफ्तार रोक दी और जनजीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया। अब तक की रिपोर्ट के अनुसार, इस आपदा में कुल 78 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें से 50 मौतें सीधे तौर पर मौसम संबंधी घटनाओं से जुड़ी हुई हैं। 121 लोग घायल हुए हैं और करीब 30 लोग अभी भी लापता हैं।
225 घर और 14 पुल तबाह, राहत और बचाव कार्य तेज़
राज्य प्रशासन के अनुसार, मंडी ज़िले में 225 घर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त, 14 पुल टूट चुके हैं और सैकड़ों सड़कें अवरुद्ध हैं। 243 मवेशी शेड, 31 वाहन, और 7 दुकानें भी प्रभावित हुई हैं। 215 पशुओं की मौत की पुष्टि की गई है।
राहत और बचाव कार्य में तेजी लाने के लिए राष्ट्रीय और राज्य आपदा मोचन बल (NDRF और SDRF) के अलावा सेना, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) और होम गार्ड्स की टीमें तैनात की गई हैं। कुल करीब 250 जवान रेस्क्यू मिशन में जुटे हैं।
स्निफर डॉग्स और ड्रोन की मदद से 30 लापता लोगों की तलाश की जा रही है। स्थानीय लोग भी प्रशासन के साथ मिलकर राहत अभियान में जुटे हैं।
494 लोगों को सुरक्षित निकाला गया
अब तक 494 लोगों को सुरक्षित रेस्क्यू किया गया है। इसके साथ ही प्रशासनिक टीमें 20 अलग-अलग क्षेत्रों में पहुंचकर राशन किट, दवाएं और अन्य सहायता पहुँचा रही हैं। अब तक 1,538 राशन किट्स वितरित की जा चुकी हैं।
तत्काल राहत राशि के तौर पर अब तक ₹12.44 लाख रुपये वितरित किए गए हैं। साथ ही थुनाग और जंजैहली क्षेत्रों में ₹5-5 लाख की अतिरिक्त सहायता राशि भेजी गई है।
परिवहन और बिजली व्यवस्था चरमराई
हिमाचल प्रदेश में 6 जुलाई की शाम तक कुल 243 सड़कें बंद थीं, जिनमें से 183 सड़कें सिर्फ मंडी ज़िले में बंद थीं। इसके अलावा, 241 ट्रांसफॉर्मर और 278 पेयजल योजनाएं भी प्रभावित हुई हैं।
राज्य के आपातकालीन संचालन केंद्र (SEOC) के अनुसार, मानसून से अब तक ₹572 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। लेकिन मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने संकेत दिया है कि यह आंकड़ा ₹700 करोड़ तक पहुंच सकता है, क्योंकि कई इलाकों से आंकड़े अब भी इकट्ठा किए जा रहे हैं।
मौसम विभाग का अलर्ट: 10 जुलाई तक भारी बारिश की चेतावनी
क्षेत्रीय मौसम विभाग ने राज्य के कई इलाकों में अलग-थलग स्थानों पर भारी बारिश को लेकर पीला अलर्ट (Yellow Alert) जारी किया है, जो 10 जुलाई तक प्रभावी रहेगा।
बीते 24 घंटों में राज्य के विभिन्न हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश रिकॉर्ड की गई। नंगल डैम में 56 मिमी, ओलिंडा में 46 मिमी, बेरठिन में 44.6 मिमी, ऊना में 43 मिमी, नैना देवी में 36.4 मिमी, गोहर में 29 मिमी, और ब्रह्मणी में 28.4 मिमी बारिश दर्ज की गई है।
मानसून की शुरुआत से लेकर अब तक 78 मौतें
20 जून को मानसून की शुरुआत के बाद से राज्य में अब तक कुल 78 मौतें दर्ज की गई हैं। इनमें से 50 मौतें सीधे बादल फटने, भूस्खलन और फ्लैश फ्लड जैसी घटनाओं से जुड़ी रही हैं। अन्य मौतें अप्रत्यक्ष रूप से बारिश से संबंधित घटनाओं में हुई हैं।
राज्य सरकार का कहना है कि यह मानसून अब तक का सबसे अधिक नुकसानदायक मौसम बनता जा रहा है। मुख्यमंत्री सुक्खू ने केंद्र सरकार से वित्तीय सहायता की मांग की है और आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की भी अपील की है।
सरकार की तैयारियां और चुनौतियाँ
राज्य सरकार ने दावा किया है कि राहत कार्यों के लिए अतिरिक्त बजट जारी किया गया है और आपदा प्रबंधन विभाग की सभी इकाइयाँ 24×7 मोड पर काम कर रही हैं। हालांकि, दुर्गम इलाकों तक पहुँचने में भू-स्खलन और सड़क अवरोध बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा:
“हमारी सरकार हर प्रभावित परिवार तक मदद पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। हमने सभी ज़िलों को निर्देश दिया है कि किसी भी हाल में किसी ज़रूरतमंद को मदद से वंचित न किया जाए।”
लोगों का गुस्सा और दर्द
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई इलाकों में अब भी राहत सामग्री समय पर नहीं पहुंच रही है। कुछ ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि बिजली और मोबाइल नेटवर्क बंद होने के कारण उन्हें मदद मांगने में दिक्कत आ रही है।
एक स्थानीय निवासी ने कहा:
“हमने अपनी पूरी ज़िंदगी की कमाई इस बारिश में खो दी। प्रशासन के लोग आ तो रहे हैं, लेकिन सबको राहत नहीं मिल पा रही।”
निष्कर्ष: हिमाचल की आपदा बन गई राष्ट्रीय चिंता
हिमाचल प्रदेश का यह संकट केवल एक राज्य की प्राकृतिक आपदा नहीं रह गई है — यह अब राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुका है। लगातार हो रही बारिश, अचानक आई बाढ़ें और अवरुद्ध संचार व्यवस्था ने साबित कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन और विकास के बीच संतुलन आज की सबसे बड़ी चुनौती है।
आने वाले दिन तय करेंगे कि प्रशासन कितना प्रभावी साबित होता है और पीड़ित लोगों तक कितनी तेज़ी से और कितनी प्रभावी मदद पहुँचाई जा सकती है।
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